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संतान हानि-गर्भपात का ज्योतिषीय कारण

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विवाह के बाद प्रत्येक व्यक्ति ना सिर्फ वंष पंरपरा को बढ़ाने हेतु अपितु अपनी अभिलाषा तथा सामाजिक जीवन हेतु संतान सुख की कामना करता है। शादी के दो-तीन साल तक संतान का ना होना संभावित माना जाता है किंतु उसके उपरांत सुख का प्राप्त ना होना कष्ट देने लगता है उसमें भी यदि संतान सुख में बाधा गर्भपात का हो तो मानसिक संत्रास बहुत ज्यादा हो जाती है। कई बार चिकित्सकीय परामर्ष अनुसार उपाय भी कारगर साबित नहीं होते हैं किंतु ज्योतिष विद्या से संतान सुख में बाधा गर्भपात का कारण ज्ञात किया जा सकता है तथा उस बाधा से निजात पाने हेतु ज्योतिषीय उपाय लाभप्रद होता है। सूर्य, शनि और राहु पृथकताकारक प्रवृत्ति के होते हैं। मंगल में हिंसक गुण होता है, इसलिए मंगल को विद्यटनकारक ग्रह माना जाता है। यदि सूर्य, शनि या राहु में से किसी एक या एक से अधिक ग्रहों का पंचम या पंचमेष पर पूरा प्रभाव हो तो गर्भपात की संभावना बनती है। इसके साथ यदि मंगल पंचम भाव, पंचमेष या बृहस्पति से युक्त या दृष्ट हो तो गर्भपात का होना दिखाई देता है। आषुतोष भगवान षिव मनुष्यों की सभी कामनाएॅ पूर्ण करते हैं अतः संतानसुख हेतु पार्थिवलिंगार्चन और रूद्राभिषेक से संतान संबंधी बाधा दूर होती है।

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