ग्रह विशेष

ग्रहों की दशा और मनुष्य का स्वास्थ्य

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आधुनिक युग में अधिकांश मनुष्य चिंता, उन्माद, अवसाद, भय आदि से प्रभावित है। मनोविज्ञान में इन्हें मनोरोगों के एक प्रकार मनस्ताप (न्यूरोटाॅसिज्म) के अंतर्गत रखा गया है। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकार है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएॅं उत्पन्न होती हैं। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकास है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबधी गंभीर समस्याएॅं उत्पनन होती हैं। मनस्ताप के कारण व्यक्ति का व्यक्तिगत एवं सामाजिक समायोजन कठिन हो जाता है। साथ ही इससे व्यक्ति में अंतर्द्धंद्ध एवं कुंठा उत्पन्न होती है। मतस्ताप के लक्षण बहुत तीव्र नहीं होते और इससे पीडि़त रोगियों का व्यवहार भी आक्रामक नहीं होता । अतएव इन्हें मानसिक चिकित्सालयों में भरती कराने की अपेक्षा एक मनोचिकित्सक की अधिक आवश्यकता होती है। चूॅकि इन व्यक्तियों का संबध वास्तविकता से बना रहता है, अतः इन्हें अपने दैनिक कार्यो के निष्पादन मे थोड़ी परेशानी होती है।
मानवीय जीवन मुख्यतः विचारों, भावों से संचालित होता है। इनकी दिशा जिस ओर होती है, उसी के अनुसार व्यक्ति का जीवन भी गति करता है। मानवीय जीवन पर बहुत सारे कारकों, जैसे पारिवारिक वातावरण, परिस्थितियाॅं, सामाजिक स्थिति, सदस्यों से संपर्क आदि का प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूपा उसके विचारों एवं भावों में उतार-चढ़ाव आता रहता है। इसके अलावा भी जीवन की जो सबसे अधिक प्रभावित करता है, वह है अंतग्रही दशाओं का प्रभाव। यद्यपि ये ग्रह पृथ्वी से दूर स्थित है, लेकिन व्यक्ति के जीवन को क्षण-क्षण में प्रभावित करते हैं। इनकी स्थिति-परिस्थितियाॅें का निर्धारण व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्मो के अनुसार होता है। पूर्व जन्म के पाप एवं पुण्य कर्मो के अनुसार इन ग्रहों की गति, स्थिति व प्रभाव का निर्धारण होता है। प्राचीन भारतीय विद्याओं में जयोतिष विज्ञान एक ऐसी विद्या है, जिसमें ग्रहों की दशा तथा अंतर्दशा के आधार पर शुभ व अशुभ घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। चिकित्सा ज्योतिष भी भारतीय ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण भाग है। चिकित्सा ज्योतिष के द्वारा जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति व दशा-चाल से मनुष्य को भविष्य में कौन-कौन से रोग होने की संभावना है, यह जाना जा सकता है । इसी चिकित्सा ज्योतिष के अंतर्गत मानसिक रोगों को समय से पूर्व जाना जा सकता है।
रोगी की जन्मकुंडली में वर्तमान मंे चल रही महादशा (विभिन्न समूय अंतरालों में ग्रहों की स्थिति), अंतर्दशा (उस समय अंतरालों में आने वाले ग्रहों के छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव), प्रत्यंतदशा (अंतर्दशा में ग्रहों के सूक्ष्म उतार-चढ़ाव) ज्ञात कर एवं गोचर (वर्तमान समय में ग्रहों की स्थिति) की सही स्थिति जानकर चिकित्सक रोग का सही निदान करके सफल चिकित्सा कर सकता है।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की शोधार्थी पूजा कौशिक ने सन् 2009 में ‘ग्रहों के ज्योतिषीय योगों का मनस्तापीयता पर पड़ने वाले प्रभाव का
अध्ययन‘ विषय पर शोधकार्य किया। यह शोधकार्य कुलाधिपति डाॅ0 प्रणव पण्डया के संरक्षण, प्रो0 देवीप्रसाद त्रिपाठी के निर्देशन एवं डाॅ0 प्रेरणा पुरी के सहनिर्देशन में किया गया। इस शोध अध्ययन में देहरादून के दो मनोचिकित्सालयों मे से आकस्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा 200 मनस्तापी व्यक्तियों का चयन किया गया, जिसमें 108 पुरूष प्रयोज्य एवं 92 महिला प्रयोज्य शामिल थे। इस शोध अध्ययन में ग्रहों के ज्योतिषीय शेगों के मनस्तापीय स्तर को जाॅचने के लिए ज्योतिषीय उपकरण के रूपा में जन्मकुंडली (जिसके लिए मुख्य रूप से प्रयोज्यों की जन्म तारीख, जन्म समय एवं जन्म स्थान को नोट किया गया) एवं मनोवैज्ञानिक उपकरण के रूप में न्यूरेसिस मापनी स्केल का प्रयोग किया। प्राप्त आॅकड़ो के यंख्यिकीय विश्लेषण के लिए काई-टेस्ट को प्रयुक्त किया गया।
परिणामों में यह पाया गया कि 200 स्त्री-पुरूषोूं में से 150 स्त्री-पुरूषों की जन्मपत्रिका में ज्योतिष अध्ययन के अनुसार ग्रहयोग (चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शनि और छाया ग्रह राहु) प्रभावित कर रहे थे। विशेषतः मनस्ताप एवं ग्रहयोगों से पीडि़त स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में लग्न भाव (जिससे संपूर्ण देह एवं मस्तिष्क का विचार किया जाता है), चतुर्थ भाव (जिसमे मन एवं विचार का) तथा पंचम भाव (जिससे बुद्धि का विचार किया जाता है) विशेष रूप से प्रभावित एव पीडि़त पाए गए, किंतु 200 स्त्री-पुरूषों में से 50 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में ग्रहयोग उपयुक्त स्थानों से अन्यत्र स्थान में होने पर भी अपनी महादशा, अंतर्दशा में व्यक्ति के मन को संतापित करते हुए पााए गए तथा साथ ही यह भी पाया गया कि 173 स्त्री-पुरूषों (86.5 प्रतिशत) की कुंडली में पापग्रह शनि, राहु, केतु तथा क्षीण चंद्रमा अपनी महादशा एवं अंतर्दशा से व्यक्ति को प्रभावित कर रहे थे।
इस अध्ययन में मनस्तापी व्यक्तियों की कुंडली की विवेचना करने पर यह भी ज्ञात हुआ है कि 200 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडलियों में से 118 जन्मकुंडलियाॅं ऐसे स्त्री-पुरूषों की पाई गई, जिनका जन्म कृष्णपक्ष मे हुआ, अर्थात 59 प्रतिशत मनस्तापी व्यक्तियों का जन्म शुक्ल-पक्ष की तुलना में कृष्णपक्ष में ज्यादा हुआ। मनस्तापी व्यक्तियों की जन्मकुंडलियों की विवेचना से यह भी ज्ञात हुआ कि 200 में से 123 मनस्तापी व्यक्तियों के चतुर्थ भाव तथा पंचम भाव पापग्रह-क्षीण चंद्रमा, अस्त बुध, शनि, राहु एवं केतु से प्रभावित पाए गए, अर्थात 61.5 प्रतिशत मनस्तापी स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली का चतुर्थ एवं पंचम भाव पापग्रहों के प्रभाव से प्रभावित पाया गया।
इस अध्ययन में 200 मनस्तापी व्यक्तियों मंे से 54 प्रतिशत पुरूष एवं 46 प्रतिशत स्त्रियाॅं मनस्ताव से प्रभावित पाई गई। साथ ही युवा वर्ग (21 से 32 आयु वर्ग) में मनस्ताप एवं ग्रहों का प्रभाव सर्वाधिक पाया गया एवं शिक्षा का स्तर भी ऐसे स्त्री-पुरूषों में सामान्य पाया गया। ऐसे स्त्री-पुरूष स्नातक स्तर तक शिक्षित पाए गए एवं ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक संख्या में शहरी क्षेत्र के मध्यम वर्ग से संबधित पाए गए । इस प्रकार 200 स्त्री-पुरूषों की कुंडलियों के अध्ययन से यह पता चला कि विभिन्न ग्रहयोगों का संबध व्यक्ति के मन की विभिन्न संतप् क्रियाओं से होता है। अतः निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि मानचीय स्वास्थ्य, अंतग्रही गतिविधियों एवं परिवर्तनों से असाधारण रूप से प्रभावित होता है।
पं0 श्रीराम शर्मा आचार्या जी के अनुसार रोगों की उत्पत्ति में प्रत्यक्ष स्थूल कारणों को महत्व दिया जाता है और स्कूल उपचारों की बात सोची जाती है, यदि अदृश्य किंतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ग्रह-नक्षत्रों के ज्ञान का भी चिकित्सा अनुसंधान की कड़ी से जोड़ा जा सके, तो रोगों के कारण और निवारण में अनेक चमत्कारों, सूत्र हाथ लग सकते हैं, जिनसे अपरिचित बने रहने से रोगोपचार में चिकित्सक अपने को अक्षम पाते हैं। निदान और उपचार की प्रक्रिया में ऐसे अनेक रहस्य इस अनुसंधान-प्रक्रिया में खुलने की संभावना है। यद्यपि इस विषय पर वर्तमान में कई शोधकार्य किए जा रहे हैं और ऐसी संभावना है कि आने वाले समय में चिकित्सा विज्ञान में ज्योतिषीय चिकित्सा को स्वीकारा जाएगा और इसके लिए सर्वप्रथम वयक्ति को शुभकर्मो की ओर प्रेरित किया जाएगा। यह पूर्णतः व्यक्ति के हाथ में है।