Other Articles

कार्तिक पूर्णिमा –

138views

कार्तिक पूर्णिमा –
कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को प्रदोषव्यापिनी उत्सव विधान से मनाने का आदि काल से महत्व है। पूर्णिमा का व्रत गृहस्थों के लिए अति शुभ फलदायी होता है। प्रायः स्नान कर व्रत के साथ भगवान सत्यनारायण की पूजा कथा कर दिनभर उपवास करने के उपरांत चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अध्र्य देने के साथ खीर का भोग लगाकर मीठा भोजन ग्रहण करने का रिवाज है। इस दिन महादेव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था, इसलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार विष्णुजी इस दिन से सृष्टि चक्र का पुनः पालन शुरू करते हैं इसलिए इसे देवताओं की दीपावली भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान का मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगा, यमुना या किसी नदी का स्नान कर दीपदान करने से महापुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन कृतिका नक्षत्र होतो महाकार्तिकी होती है तथा भरणी नक्षत्र होने से विशेष फलदायी होती है। इस दिन व्रत करके चंद्रोदय होने पर दीपदान करने के उपरांत बैल या गाय करने की प्रथा प्राचीन समय में थी। ब्राम्हणों को दान तथा भोजन कराने के उपरांत व्रत का पारण करने से सर्वमनोकामना की पूर्ति होती है। साथ ही मान्यता है कि चंद्रमा मन का कारक ग्रह है अतः पूर्णिमा व्रत के करने से मानसिक शांति के साथ पारिवारिक सामंजस्य और सौहार्द बढ़ता है।
कथा –
त्रिपुर नामक एक दैत्य ने प्रयाग में रहकर इतना तप किया कि उसके तेज से लोक जलने लगा। उसको मोह में बाधने के लिए देवताओं ने अनेक अपसराएॅ भेजी किंतु वह दैत्य किसी के भी वश में नहीं आया। ऐसा देखकर ब्रम्हाजी ने प्रसन्न होकर उसे वर मांगने को कहा तब उसने अमर रहने का वर मांगा। ब्रम्हाजी ने जब उस दैत्य से कहा कि ऐसा वर संभव नहीं है तब उसने वर मांगा कि मेरी मौत ना देवता, ना मानव ना निशाचर ना स्त्री ना रोगी से हो। वर देकर ब्रम्हाजी प्रस्थान कर गए। ऐसा वर पाकर त्रिपुर को घमंड हो गया और वह सभी देवताओं तथा देवलोक के साथ सभी को बंधक बनाकर तबाह करने लगा। इससे देवताओं के साथ मानव भी हाहाकार करने लगे। जब सभी देव भी पराजित होने लगे तब ब्रम्हाजी ने कहा कि एक ऐसा है जोकि ना देव है ना मानव ना निशाचर ना स्त्री ना ही रोगी वह है तीनों लोकों का कर्ता वृषध्वज महादेव। तब सभी मिलकर महादेव की शरण में पहुॅचें। षिवजी की महिमा सुनकर दैत्य त्रिपुर भी असुरों की सेना लेकर कैलाशपर्वत पर धावा बोल दिया। तब षिवजी ने एक ही बाण से दैत्य का वध किया। उस दिन सभी देवों ने मिलकर महादेव की आरती लेने हेतु दीपदान किया। उस दिन से किसी भी प्रकार के कष्ट, रोग तथा दुख को हरने हेतु दीपदान कर चंद्रोदय के समय शिवजी की आराधना करने से सभी दुख और पाप समाप्त होते हैं ऐसी मान्यता है।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500
Feel Free to ask any questions in