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सप्तम भाव में यदि शनि स्थित होता है तो जातक का विवाह में विलंब व बाधा का संकेत माना जाता है। यदि सप्तम भाव में षनि हो तो या सप्तमेष से युक्त शनि हो तो जातक का वैवाहिक जीवन पारिवारिक सदस्यों के कारण बाधित होता है। वहीं पर यदि शनि के साथ चंद्रमा हो तो जातक का अपने जीवनसाथी के प्रति लगाव ना होकर अन्य किसी से प्रेम संबंध जातक के वैवाहिक जीवन में दुख का कारण बनता है। यदि सप्तम स्थान में शनि के साथ सूर्य की युति बनती हो तो जातक का अविवाहित बनने का योग बन जाता है। यदि शनि से युत राहु हो तो जातक का वैवाहिक जीवन एक रहस्य की तरह असफल माना जाती है। सप्तम स्थान पर शनि मंगल के होने से जातक को जीवनसाथी से प्रताडित होने के योग बनते हैं। इस प्रकार सप्तम भाव व सप्तमेष का शनि से युत होने पर वैवाहिक जीवन बाधित ही होता है। किंतु सप्तमभाव में शनि शुक्र या बृहस्पति के साथ हो तो वैवाहिक जीवन में प्यार एवं आपसी समझ दिखाई देती है। यदि किसी जातक की कुंडली में वैवाहिक विलंब तथा कष्ट का कारण शनि हो तो बाधा को दूर करने हेतु सौभाग्याष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् का पाठ किसी विद्वान आचार्य के द्वारा कराया जाकर हवन, तर्पण, मार्जन आदि कराने से वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।