सम्राट अशोक महान (मौर्य वंश) कथा: दीप्ति-युग का मौर्य सम्राट अशोक, कलिंगयुद्ध के पश्चात् अहिंसा मार्ग अवलम्बन के लिए विख्यात हुआ। परन्तु कम ही लोग जानते हैं कि दिल्ली-उत्तराखण्ड मार्ग से निकल कर जब अशोक अमलेश्वर की गुफा में पहुँचा, तब उसने स्वयं को महाकाल के चरणों में अर्पित कर दिया। उसने प्रत्येक पूर्णिमा को वहाँ ‘अमलेश्वर-स्नान’ किया। सम्राट ने आदेश दिया कि मौर्य साम्राज्य में सभी जजमानों को वार्षिक पिंडदान-पुण्यश्लोक अर्पित करे। विजय-पर्वों पर राजा अशोक महाकाल की आरती तथा नंदी-वन्दना अनिवार्य करवा कर स्वकीयं राज्य को पितृदोष-मुक्ति...
"सर्पशाप और महाकाल: कलचुरी वंश की खोई संतानें (एक ऐतिहासिक कथा जो आज भी खारुन के तट पर साँस लेती है) संवत् 1225 — रतनपुर का शापग्रस्त सिंहासन रतनपुर राज्य में कलचुरी वंश का पराक्रमी राजा त्रैलोक्यमल्ल सिंहासन पर आरूढ़ था। राज्य सुख-शांति से भरपूर था, परंतु एक दर्द था जो महलों की दीवारों में साँय-साँय करता था — राजा को कोई संतान नहीं थी। राजा त्रैलोक्यमल्ल ने असंख्य यज्ञ किए, ऋषियों को दान दिया, किन्तु कोई उत्तर न मिला। महलों में हर पूर्णिमा को आशा के दीप जलाए जाते,...
“भयमोचन विभूति: कलचुरी राजकुमार रुद्रसेन की कथा” भयभूमि: अभूतपूर्व आतंक संवत् 1242 — कलचुरी वंश का नितांत प्रगतिशील राजकुमार रुद्रसेन अपनी सभा में ही भयभीत दिखता था। राजमहल के आँगन में प्रत्येक शोर, पशु-मंत्र और काले बादलों के गर्जन से ही उसका हृदय कांप उठता। पुरोवासी-मंत्री भी समझ न पाए कि स्वयम् पराक्रमी रुद्रसेन को कौन-सा दैवीय भय ग्रस्त कर रहा। रातों को वह जगकर झूलते फाफूंद की छवि देखता, मानो कालरात्रि स्वयं उसका साया हो। श्लोकः (शार्दूलविक्रीट, १९ मात्राः) तमसो मे क्लिन्नचेताः क्लन्ना पथिकपादयोः क्रन्दन्ति । किमस्मिन् कालरात्रौ कर्तव्यं,...
अमावस्या की पार्थिव-पूजा (पिंडदान) से श्री महाकाल अमलेश्वर की साक्षात् प्रकट्ता होती है एवं असीम रूप से कामनाएँ पूर्ण होती हैं। निष्काम भक्ति: वृद्धा सावित्री का प्रकट् दर्शन कथासार: वृद्धा सावित्री पूरे जीवन को पति-पूजन में समर्पित होकर भी विधवा-श्राद्ध से अनियंत्रित व्यथित रहती थी। अमावस्या की रात्रि उसने पार्थिव-पिंडदान किया, अंतःकरण से “महाकालो भव” मंत्र जपा। अचानक मंदिरप्रांगण की घनघोर नीरवता टूटकर, गर्भगुहा से ओजस्वी उज्जवल ज्योति प्रकट हुई। सामने खड़ी शिवलिंग के नेत्र से अमृतसलिलों का झरना गिरा और सावित्री के चरणस्पर्श कर स्वयं बोली— “नमो महाकाले, तव...
व्यापारविमोचन: व्यापारी रुद्रवर्धन की कथा विनाशवृत्तः संवत् 1321 — रत्नग्राम के सुप्रिय व्यापारी रुद्रवर्धन ने वस्त्र–मसालों के व्यापार में अपना सर्वस्व लगा दिया। बड़े कर्ज़ और तीव्र प्रतिस्पर्धा के कारण उसका घर-बार दहक उठा। मित्र ही विश्वासघात कर गए; बाजार में नामोनिशान तक मिटने को आया। रुद्रवर्धन स्वयं भी निराशा की अंधेरी गहराइयों में धंस चुका था। श्लोकः (शार्दूलविक्रीट, १९ मात्राः) व्यपाद्य भावत्यथ महाप्रयासो दूरीभवतः । केन कर्मणा नश्यति वणिज्यं? कर्मश्चैव रुद्रवत् ॥ दिव्यस्वप्ननिर्देशः एक संध्या, जब रुद्रवर्धन सकरा कर्ज़ चुकाने हेतु चित्त-बेताल बैठा, तब स्वप्न में महाकाल ने वरुणागपरिधान...
❖ अमलेश्वर वट-ग्वाल कथा ❖ श्री महाकाल अमलेश्वर धाम, खारून नदी तट, छत्तीसगढ़ कालखंड:प्राचीन युग के उत्तरार्ध — जब ऋषियों का तप और श्राप एक साथ लोक-जीवन को आकार देते थे। कथा का प्रारंभ एक समय अमलेश्वर धाम के समीपवर्ती गांवों में कुछ ग्वाले (ग्वाल-बाल)रहते थे — चंचल, हँसमुख, परंतु धर्म-विरुद्ध कृत्यों की ओर उन्मुख। वे महाकाल की तपस्थली में नित्य शोर करते, ऋषियों की समाधि भंग करते और वटवृक्ष की शाखाओं पर क्रीड़ा करते। धाम में उस समय एक *परम तपस्वी ऋषि "वरुणकेतु"* तपस्यारत थे, जिन्होंने सात पीढ़ियों...
"निषाद कन्या और महाकाल का वरदान" बहुत समय पहले, जब खारून नदी अपने तटों पर शांति बिखेरती थी और श्रीअमलेश्वर महाकाल मंदिर तपस्वियों की साधना से गुंजायमान रहता था, उस वनांचल में एक निषाद कन्या नलिनी रहती थी। निषादों का जीवन कठिन था, पर नलिनी जन्म से ही अत्यंत तेजस्विनी, परम भक्त और सरल स्वभाव की थी। उसकी भक्ति महाकाल के प्रति इतनी गहरी थी कि वह प्रतिदिन खारून नदी में स्नान कर "ॐ नमः शिवाय" का जाप करते हुए अमलेश्वर धाम की परिक्रमा करती। एक बार, आषाढ़ की अंधेरी...
तपस्वी विश्वामित्र और अमलेश्वर की गाथा आत्मसम्मान बनाम अपमान प्राचीन काल में एक प्रतापी क्षत्रिय राजा थे—कौशिक, जो युद्धकला के महारथी और धर्मनिष्ठ राजर्षि थे। किंतु एक दिन उन्होंने ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के आश्रम में कामधेनु के चमत्कार देखे। वशिष्ठ के एक मन्त्र से संपूर्ण सैन्यशक्ति निष्फल हो गई। यह दृश्य कौशिक के आत्मसम्मान को चुभ गया। उनका मन भीतर तक काँप गया— “मैं सब कुछ जानता हूँ, पर क्या ब्रह्मतेज के बिना मेरी शक्ति अधूरी है?” श्लोक (शार्दूलविक्रीडित):* वशिष्ठगौकार्याद् मन्दोऽहं किंचित् भ्रान्तो हृदि मया । “कर्मज्ञोऽहं भव” इति संकल्प्य महाकालं...