Dharma Remedy ArticlesOther Articlesउपाय लेख

जानिए,नान्दीश्राद्ध के कुछ नियम…

243views

 

नान्दीश्राद्ध के कुछ नियम

इस श्राद्ध में”स्वधा्र“ की जगह ”स्वाहा“ शब्द का उच्चारण होता है। इसमें सब कर्म दक्षिण यज्ञोपवीत से करना होता है। नान्दीश्राद्ध में कुशा की जगह मूलरहित दर्भ ग्रहण करें, प्रत्येक वस्तु युग्मरूप में लेनी चाहिए। इस कार्य में यजमान उत्तराभिमुख और ब्राह्मण पूर्वाभिमुख अथवा यजमान पूर्वाभिमुख तथा यजमान ब्राह्मण उत्तराभिमुख बैठे।

इस श्राद्ध में पिण्ड़ों के विषय में दही,शुद्ध मधु ,,शहद,, बेर, दाख व आंवले काम में लिये जाते हैं। प्रथमा विभक्ति को अंत में लगाकर संकल्प किया जाता है। इसमें नाम व गोत्र का उच्चारण नहीं किया जाता है। इस श्राद्ध में अपसव्य नहीं होता,तिल एवं पितृतीर्थ जल भी काम में नही लिया जाता।

ALSO READ  “पुत्र-वियोग की पीड़ा के बाद भी अटूट ऊर्जा—पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी बने समाज के संबल और प्रतीक”

श्राद्ध का अंगरूप तर्पण भी इसमें नहीं किया जाता। नान्दीश्राद्ध में पिता,दादा और परदादा तथा माता,नाना,परनाना का स्मरण किया जाता है,उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। इस वर्ग में जीवित व्यक्ति जिसका पार्वण न हो,उस पार्वण के विषय का श्लोक एक देश न पढ़ें। नान्दीश्राद्ध में आरती नहीं होती। नान्दीश्राद्ध में यजमान पत्नी को अपने साथ न बैठाकर अपने आसन से दूर ही बैठना चाहिए।

कालसर्प योग से ग्रसित होने पर उपरोक्त आराधना एवं इष्टकृपा ही रक्षा करती है। इस योग वाले जातकों को हैरान-परेशान देखा गया है। मित्र तथा रिश्तेदार भी इन्हें धोखा देते हैं। ये लोग मन में आशंकित रहते हैं।

ALSO READ  “श्री महाधन धाम अमलेश्वर : पुण्य का जबरदस्त अवसर, आस्था और अनुष्ठान का अखंड धाम”

इन्हें अशुभ सपने आते हैं। संतान से कष्ट होना,स्वप्न में सांप दिखाई देना,स्वप्न में विधवा स्त्री या विधवा स्त्री की गोद में मृत बालक को देखना तथा नींद टूटने पर मन में कई प्रकार के संकल्प-विकल्प आना,शरीर में ऐसे रोग हो जाना जो अनेक उपचारों से भी ठीक न हों। कालसर्प योग वाली कुण्डलीयों में लगभग 60 प्रतिशत लोगों को उपरोक्त दुष्परिणामों को भोगते हुए पाया गया है।