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वृक्ष, वास्तु और विनाश का विज्ञान: क्यों घर में केला नहीं, तुलसी होनी चाहिए?

वृक्ष, वास्तु और विनाश का विज्ञान: क्यों घर में केला नहीं, तुलसी होनी चाहिए? आज हम वृक्षों को केवल ऑक्सीजन देने वाला तत्व मानते हैं — लेकिन हमारे ऋषियों ने उन्हें ऊर्जा, संस्कार और भाग्य-निर्माण से जोड़कर देखा। सही वृक्ष सही दिशा में न लगे, तो घर की समृद्धि, स्वास्थ्य, वंश, और यहाँ तक कि जीवन तक संकट में आ सकता है। यह कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि वास्तुशास्त्र, संहिता, पुराण, और ज्योतिषीय विवेचना से प्रमाणित तथ्य हैं। 🌳 केले का पेड़ क्यों नहीं लगाना चाहिए? > 🔍 शास्त्र कहता है...
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श्री महा-विपरीत-प्रत्यंगिरा स्तोत्र

महेश्वर उवाच शृणु देवि महाविद्यां सर्वसिद्धिप्रदायिकाम् । यस्य विज्ञानमात्रेण शत्रुवर्गा लयं गताः ॥ १ ॥ विपरीतमहाकाली सर्वभूतभयङ्करी । यस्याः प्रसङ्गमात्रेण...
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सम्राट अशोक महान और महाकाल की कथा

  सम्राट अशोक महान (मौर्य वंश) कथा: दीप्ति-युग का मौर्य सम्राट अशोक, कलिंगयुद्ध के पश्चात् अहिंसा मार्ग अवलम्बन के लिए विख्यात हुआ। परन्तु कम ही लोग जानते हैं कि दिल्ली-उत्तराखण्ड मार्ग से निकल कर जब अशोक अमलेश्वर की गुफा में पहुँचा, तब उसने स्वयं को महाकाल के चरणों में अर्पित कर दिया। उसने प्रत्येक पूर्णिमा को वहाँ ‘अमलेश्वर-स्नान’ किया। सम्राट ने आदेश दिया कि मौर्य साम्राज्य में सभी जजमानों को वार्षिक पिंडदान-पुण्यश्लोक अर्पित करे। विजय-पर्वों पर राजा अशोक महाकाल की आरती तथा नंदी-वन्दना अनिवार्य करवा कर स्वकीयं राज्य को पितृदोष-मुक्ति...
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“सर्पशाप और महाकाल: कलचुरी वंश की खोई संतानें

"सर्पशाप और महाकाल: कलचुरी वंश की खोई संतानें (एक ऐतिहासिक कथा जो आज भी खारुन के तट पर साँस लेती है) संवत् 1225 — रतनपुर का शापग्रस्त सिंहासन रतनपुर राज्य में कलचुरी वंश का पराक्रमी राजा त्रैलोक्यमल्ल सिंहासन पर आरूढ़ था। राज्य सुख-शांति से भरपूर था, परंतु एक दर्द था जो महलों की दीवारों में साँय-साँय करता था — राजा को कोई संतान नहीं थी। राजा त्रैलोक्यमल्ल ने असंख्य यज्ञ किए, ऋषियों को दान दिया, किन्तु कोई उत्तर न मिला। महलों में हर पूर्णिमा को आशा के दीप जलाए जाते,...
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महाकाल और कलचुरी राजकुमार रुद्रसेन की कथा

“भयमोचन विभूति: कलचुरी राजकुमार रुद्रसेन की कथा” भयभूमि: अभूतपूर्व आतंक संवत् 1242 — कलचुरी वंश का नितांत प्रगतिशील राजकुमार रुद्रसेन अपनी सभा में ही भयभीत दिखता था। राजमहल के आँगन में प्रत्येक शोर, पशु-मंत्र और काले बादलों के गर्जन से ही उसका हृदय कांप उठता। पुरोवासी-मंत्री भी समझ न पाए कि स्वयम् पराक्रमी रुद्रसेन को कौन-सा दैवीय भय ग्रस्त कर रहा। रातों को वह जगकर झूलते फाफूंद की छवि देखता, मानो कालरात्रि स्वयं उसका साया हो। श्लोकः (शार्दूलविक्रीट, १९ मात्राः) तमसो मे क्लिन्नचेताः क्लन्ना पथिकपादयोः क्रन्दन्ति । किमस्मिन् कालरात्रौ कर्तव्यं,...
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महाकाल कृपा की तीन कथाएं

अमावस्या की पार्थिव-पूजा (पिंडदान) से श्री महाकाल अमलेश्वर की साक्षात् प्रकट्‌ता होती है एवं असीम रूप से कामनाएँ पूर्ण होती हैं। निष्काम भक्ति: वृद्धा सावित्री का प्रकट्‌ दर्शन कथासार: वृद्धा सावित्री पूरे जीवन को पति-पूजन में समर्पित होकर भी विधवा-श्राद्ध से अनियंत्रित व्यथित रहती थी। अमावस्या की रात्रि उसने पार्थिव-पिंडदान किया, अंतःकरण से “महाकालो भव” मंत्र जपा। अचानक मंदिरप्रांगण की घनघोर नीरवता टूटकर, गर्भगुहा से ओजस्वी उज्जवल ज्योति प्रकट हुई। सामने खड़ी शिवलिंग के नेत्र से अमृतसलिलों का झरना गिरा और सावित्री के चरणस्पर्श कर स्वयं बोली— “नमो महाकाले, तव...
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महाकाल धाम और व्यापारी रुद्रवर्धन की कथा

व्यापारविमोचन: व्यापारी रुद्रवर्धन की कथा विनाशवृत्तः संवत् 1321 — रत्नग्राम के सुप्रिय व्यापारी रुद्रवर्धन ने वस्त्र–मसालों के व्यापार में अपना सर्वस्व लगा दिया। बड़े कर्ज़ और तीव्र प्रतिस्पर्धा के कारण उसका घर-बार दहक उठा। मित्र ही विश्वासघात कर गए; बाजार में नामोनिशान तक मिटने को आया। रुद्रवर्धन स्वयं भी निराशा की अंधेरी गहराइयों में धंस चुका था। श्लोकः (शार्दूलविक्रीट, १९ मात्राः) व्यपाद्य भावत्यथ महाप्रयासो दूरीभवतः । केन कर्मणा नश्यति वणिज्यं? कर्मश्चैव रुद्रवत् ॥ दिव्यस्वप्ननिर्देशः एक संध्या, जब रुद्रवर्धन सकरा कर्ज़ चुकाने हेतु चित्त-बेताल बैठा, तब स्वप्न में महाकाल ने वरुणागपरिधान...
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अमलेश्वर वट-ग्वाल कथा

❖ अमलेश्वर वट-ग्वाल कथा ❖   श्री महाकाल अमलेश्वर धाम, खारून नदी तट, छत्तीसगढ़ कालखंड:प्राचीन युग के उत्तरार्ध — जब ऋषियों का तप और श्राप एक साथ लोक-जीवन को आकार देते थे। कथा का प्रारंभ एक समय अमलेश्वर धाम के समीपवर्ती गांवों में कुछ ग्वाले (ग्वाल-बाल)रहते थे — चंचल, हँसमुख, परंतु धर्म-विरुद्ध कृत्यों की ओर उन्मुख। वे महाकाल की तपस्थली में नित्य शोर करते, ऋषियों की समाधि भंग करते और वटवृक्ष की शाखाओं पर क्रीड़ा करते। धाम में उस समय एक *परम तपस्वी ऋषि "वरुणकेतु"* तपस्यारत थे, जिन्होंने सात पीढ़ियों...
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“निषाद कन्या और महाकाल का वरदान”

"निषाद कन्या और महाकाल का वरदान" बहुत समय पहले, जब खारून नदी अपने तटों पर शांति बिखेरती थी और श्रीअमलेश्वर महाकाल मंदिर तपस्वियों की साधना से गुंजायमान रहता था, उस वनांचल में एक निषाद कन्या नलिनी रहती थी। निषादों का जीवन कठिन था, पर नलिनी जन्म से ही अत्यंत तेजस्विनी, परम भक्त और सरल स्वभाव की थी। उसकी भक्ति महाकाल के प्रति इतनी गहरी थी कि वह प्रतिदिन खारून नदी में स्नान कर "ॐ नमः शिवाय" का जाप करते हुए अमलेश्वर धाम की परिक्रमा करती। एक बार, आषाढ़ की अंधेरी...
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तपस्वी विश्वामित्र और अमलेश्वर की गाथा

 तपस्वी विश्वामित्र और अमलेश्वर की गाथा आत्मसम्मान बनाम अपमान प्राचीन काल में एक प्रतापी क्षत्रिय राजा थे—कौशिक, जो युद्धकला के महारथी और धर्मनिष्ठ राजर्षि थे। किंतु एक दिन उन्होंने ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के आश्रम में कामधेनु के चमत्कार देखे। वशिष्ठ के एक मन्त्र से संपूर्ण सैन्यशक्ति निष्फल हो गई। यह दृश्य कौशिक के आत्मसम्मान को चुभ गया। उनका मन भीतर तक काँप गया— “मैं सब कुछ जानता हूँ, पर क्या ब्रह्मतेज के बिना मेरी शक्ति अधूरी है?” श्लोक (शार्दूलविक्रीडित):* वशिष्ठगौकार्याद् मन्दोऽहं किंचित् भ्रान्तो हृदि मया । “कर्मज्ञोऽहं भव” इति संकल्प्य महाकालं...
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तपस्वी विश्वामित्रः महाकाल-अमलेश्वरसंनिविष्टः

तपस्वी विश्वामित्रः महाकाल-अमलेश्वरसंनिविष्टः आत्मसम्मान-अपमानः प्राचीन काल में राजर्षि विश्वामित्र पूर्वतः कौशिक नाम धनुर्धरः आसीत्। एकदा ब्रह्मर्षि वशिष्ठेण सिद्धं गौसत्त्वं दृष्ट्वा तस्यैव गायत्री-शक्त्या निरर्थकत्वं अनुभूतवान्। वशिष्ठेण निर्गतं चण्डिका-वधं न शक्यतामिति तन्महात्म्ये विषण्णः। “किं मम क्षमतां वशिष्ठं विना?” इति चिन्तया हृदय कम्पितम्। श्लोकः (शार्दूलविक्रीटछन्दः, १९ मात्राः)* वशिष्ठगौकार्याद् मन्दोऽहं किंचित् भ्रान्तो हृदि मया । “कर्मज्ञोऽहं भव” इति संकल्प्य महाकालं समाश्रितः ॥ महाकाल-अमलेश्वराय संगमनिर्देशः स्वप्ने जग्मन् विश्वामित्रः महाकालं दैववत् प्रकटितं— “यदि ब्रह्मर्षिसमनं जीवन-बलं प्रापयितुम् इच्छसि, अमलेश्वरधामे तिमिरसन्निवेशं विस्मृत्य, चतुष्पदपूजनं कुरु, दिव्यज्ञानं लभिष्यसि।” सङ्कल्पसिद्ध्यर्थं प्रातःकाले ही राजर्षिः स्वयम्प्रकाशितं रथं त्यक्त्वा खारुनतीरं पारयित्वा अमलेश्वरगिरिगुहायामपहतः। चतुष्पद-पूजनम् एवं...
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सत्यव्रत श्रीमहाकालानुग्रही – अमलेश्वर की पावन कथा

  "सत्यव्रत: श्रीमहाकालानुग्रही" – अमलेश्वर की पावन कथा श्री अमलेश्वर महाकालधाम, खारून नदी तट, प्राचीन काल। भूमिका: अमलेश्वर ग्राम में एक निर्धन ब्राह्मण दंपत्ति रहते थे — श्री हरिपाल शास्त्री और उनकी पत्नी सौम्या। वे खंडित पुरोहिती से बड़ी कठिनाई से दो वक्त का भोजन जुटाते। उनका इकलौता पुत्र *सत्यव्रत*, अत्यंत तेजस्वी, धर्मनिष्ठ और बाल्यकाल से ही श्री महाकाल का परम भक्त था। कथा आरंभ: एक दिन सत्यव्रत अपने पिता के साथ श्री महाकाल के मंदिर में गया। वहाँ उसने देखा कि कुछ बड़े आचार्य शास्त्रार्थ कर रहे हैं, परंतु...
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सत्यव्रत चरितम् श्री महाकाल के भक्त की कथा

सत्यव्रत चरितम् – द्वितीय प्रकरणम् न्यायपरायणता: सत्यव्रत की धर्मसभा राजा धनराज की सभा में एक बार दो बड़े घरानों के बीच भूमि विवाद उपस्थित हुआ। एक पक्ष का तांत्रिक गुरु, मंत्रबल और अभिचार से राजा को प्रभावित करना चाहता था। पर राजा ने निर्णय सत्यव्रत को सौंपा। सत्यव्रत ने भूमि की सीमाओं का प्राचीन शिलालेख, ऋषि-प्रदत्त नक्षत्र-गणना, और वेदाङ्ग ज्योतिष के आधार पर निर्णय सुनाया: "भूमिर्नैव मन्त्रेण न स्वप्नदर्शनेन च। प्रमाणैः सप्तभिः न्यायः, धर्मो मूलं विचक्षणैः॥" तांत्रिक की चाल विफल हुई। जनता में गूंज उठा: "सत्यव्रत न्याय incarnate है!"* 2....
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श्रृंगी महाकाव्य – १९ श्लोकों में वर्णित दिव्य जीवनकथा

१.श्रृंगी महाकाव्य – १९ श्लोकों में वर्णित दिव्य जीवनकथा मङ्गलाचरणम् श्रीशम्भवे त्रिपुरनाशनहेतवे, ज्योतिःस्वरूपसदनाय नमो नमः। येन श्रृङ्गिककण्ठदिशि क्रिपया, वेदाः स्वयं कथित एव सतां गतिः॥१॥ श्लोक २-६: बाल्यकाल और निर्धनता अमलेशग्रामणि शुद्धजातकः ब्राह्मणः स हरिपालनामकः तस्य सूनुरभवच्च सौम्यधीः सत्यव्रतः शिवभक्तिशालिनः॥२॥ भोजनार्थमपि दीनजीवनं, पुरोहित्यकृते तदेकतः। पुत्र एव तु विलोक्य दीनता, शम्भुभक्तिरतिमात्रगामिनी॥३॥ नित्यशम्भुनिकटे सपूजनं, सन्ध्यया सह जपश्च बालतः। द्वारमध्ये शयनं च तन्द्रया, स्वप्नमध्यमहिशम्भुशासनम्॥४॥ श्रृङ्गिकं शिवकरे कृताङ्गुली, दत्तमूर्धनि नवेन्दुशेखरः। श्रवणान्तिकपथे च ध्वन्यते, वेदवाणी सुधया समार्चिता॥५॥ प्रातरेव स विसृष्टबोधनः, वाक्पटुत्वमथ दर्शितं बहु। ब्रह्मसूत्रकथा पितुर्गृहे, वर्धते स तु महान् विचक्षणः॥६॥   श्लोक ७-१२: न्याय और विद्या...
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श्री महाकाल अमलेश्वर प्राकट्य कथा

श्री महाकाल अमलेश्वर प्राकट्य कथा    प्रस्तावना छत्तीसगढ़ की भूमि — जहाँ खारून की धाराएँ शिवमंत्रों सी बहती हैं, वहाँ  अमलेश्वर के तट पर  महाकाल हर 131 वर्षों में प्रकट होते हैं। उनका लिंग न केवल पृथ्वी पर प्रतिष्ठित है, बल्कि वह आग्नेय ज्योति का स्वयंभू स्वरूप है — जिसे किसी ने स्थापित नहीं किया, जिसे किसी ने गढ़ा नहीं — वह *स्वयं अग्नि में प्रकट हुए शिव हैं। १. अघोर ऋषि और प्राचीन भविष्यवाणी बहुत पुरानी बात है — जब न खारून का पुल था, न रायपुर नगर, न...
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2135 केवल एक तिथि नहीं — एक चेतावनी है, श्री महाकाल अमलेश्वर फिर होंगे भूमिशायी

2135 में हो सकता है कि: विश्व एक बार फिर आध्यात्मिक भूलभुलैया में फँसा होगा भारत के प्राचीन तीर्थों को भुलाया जा रहा होगा और तब खारून तट पर मौन वटवृक्षों के बीच, महाकाल पुनः अंतर्धान हो जाएंगे यह असंवत्सरकाल कहलाएगा — जब साधकों को केवल भीतर जाकर शिव को खोजना पड़ेगा, बाहर नहीं।  क्या 2135 में जागरण भी होगा? हाँ – यदि किसी सत्यव्रती साधक, योगिनी कन्या, निष्कलंक बालक, या किसी तपस्वी कुल के वंशज का जन्म उस युग में हो, जो सच्चे भाव से श्री महाकाल का आह्वान...
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हर 131 वर्षों में जब धरती के पाताल में छिपे पाप प्रबल होंगे, तब मैं भूमिशयन कर कुछ काल तक लुप्त रहूंगा

श्री महाकाल अमलेश्वर के भूमिशयन का गूढ़ रहस्य (विशेषतः 2004 की श्रावण प्रतिपदा पर जागृति की ऐतिहासिक घटना के संदर्भ में)  प्राकट्य की महागाथा: पुराकाल में खारून तट पर तप कर रहे एक महान अघोर ऋषि — सप्तऋषियों के परंपरा-वंशज — ने इस क्षेत्र को महाकाल की स्थली घोषित किया था। कहा जाता है कि महाकाल स्वयं उनके आह्वान पर तीव्र अग्निकुण्ड से प्रकट हुए थे। यह प्रकट्य अद्भुत था — ना शिवलिंग भूमिपृष्ठ पर था, ना कोई प्रतिमा — बल्कि अग्नि में स्वयं प्रकट हुए ज्वालामय महाकाल। तब स्वयं...
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सम्राट लक्ष्मिकार्ण का जीवन महाकालधाम अमलेश्वर से अभिन्न था

  वीर लोकमणि: कलचुरी सम्राट लक्ष्मिकार्ण की कथा संवत् 1098 (ई. सन् 1041) — मध्य भारत की कलचुरी वंशीय धरा पर एक नूतन नक्षत्र उदित हुआ, जिसका नाम था लक्ष्मिकार्ण। महाकाल की नगरी उज्जैन से लेकर गोदावरी तट तक फैले उनके साम्राज्य में वीरता, संस्कृति और धर्म की ज्योति उज्ज्वल हो उठी। बाल्य से पराक्रम तक लखनऊपुरी (आज का खड़गपुर, छत्तीसगढ़) में जन्मे लक्ष्मिकार्ण बचपन से ही मेष राशि के गुणों से युक्त थे—दृढ़निश्चयी, साहसी और न्यायप्रिय। केवल 15 वर्ष की अवस्था में माता-पिता का सान्निध्य खोकर सिंहासन संभाला। प्रथम...
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पितृमोक्ष महायात्रा: श्री महाकाल धाम अमलेश्वर

पितृमोक्ष महायात्रा: श्री महाकाल धाम अमलेश्वर संवत् 1278 — जब वंश धमनियों में थम रहा था* अमलेश्वर का क्षेत्र कलकत्ते नगर के समीप स्वतंत्र राज्य हुआ करता था। वहाँ के राजवंश की मध्यमा पीढ़ी में अचानक संतानहीनता ने घर-घर को शोकविहीन कर दिया। पीढ़ियों से चलती परम्परा अचानक टूटने लगी—राजा, राजकुमार और राज्याभिषेक की आशाएँ सब मलिन हो चलीं। श्राद्धहीनि पूर्णिमा और अपूर्ण चंद्र हर पूर्णिमा को मंदिर के प्रधान पुरोहित श्लोकमालाएँ जपता, पर पिण्डदान के बिना श्राद्ध अपूर्ण रह जाता। अमावस्या पर चंद्रमा छिपने लगता, और महाकाल मंदिर के...
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पितृदोष और उसकी शांति का विधान का शास्त्र प्रमाण

  1. पितृदोष और उसकी शांति का विधान गरुड़ पुराण (पूर्व खंड, अध्याय 40-42): पितृदोष का कारण, संकेत, और उसके निवारण के लिए श्राद्ध, नारायण बली, पिंडदान आदि विधियों का वर्णन है। इसमें वर्णन है कि पितरों के रुष्ट होने से संतानहीनता, गर्भपात, वंश रुकावट जैसे कष्ट होते हैं। 2. सर्पशाप का प्रभाव और शमन महाभारत (आदि पर्व, सर्पसत्र प्रसंग) राजा जनमेजय द्वारा तक्षक नाग को नष्ट करने हेतु किया गया सर्पसत्र यज्ञ, जो उनके पिता परीक्षित की मृत्यु के प्रतिशोध में था। इससे संकेत मिलता है कि सर्प द्वारा...
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“श्री महाकाल धाम: जहाँ खारुन विभाजन नहीं, जीवन का प्रवाह है”

  “श्री महाकाल धाम: जहाँ खारुन विभाजन नहीं, जीवन का प्रवाह है” 📜 इतिहास में दर्ज़ एक कथा (संवत् 1124 - वर्तमान) आज से लगभग हज़ार वर्ष पूर्व, जब छत्तीसगढ़ "दक्षिण कोसल" कहलाता था और रतनपुर की गद्दी पर कलचुरी वंश के प्रतापी राजा भोजदेव का शासन था, तब उनके प्रधान पुजारी और तांत्रिक विद्वान ऋषि वेदारण्य ने एक भविष्यवाणी की थी: > "जत्र स्थिता खारुणा, तत्र स्थिरं प्राणशक्तिः। यत्र तिष्ठति महाकालः, तत्र न भूखण्डभेदः।"   (जहाँ खारुन बहती है, वहाँ प्राणशक्ति स्थिर रहती है। जहाँ महाकाल विराजते हैं, वहाँ...
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मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा के प्रमुख 13 स्टेजेस

शास्त्रों के अनुसार मृत्यु के बाद जीवात्मा के अनुभव और यात्रा के मुख्य चरण (Stages After Death as per Hindu Scriptures): यह विवरण मुख्यतः गरुड़ पुराण, बृहदारण्यक उपनिषद, कठोपनिषद, भागवत पुराण, और योगवशिष्ठ जैसे ग्रंथों पर आधारित है। मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा के प्रमुख 13 स्टेजेस (संक्षेप में): क्रम अवस्था / स्टेज विवरण 1 मृत्यु काल (प्राण-त्याग) जब प्राण (Vital Energy) शरीर छोड़ता है, अंतिम श्वास रुक जाती है। पांच प्राण वायु (प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान) शरीर से निकलती हैं। 2 शरीर से आत्मा का अलगाव आत्मा...
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हाथ में पैसे नहीं टिकते

  "दौलत और शोहरत की ख्वाहिश हर इंसान को होती है. लेकिन कई बार कुंडली और ग्रहों की खराब दशा की वजह से कुछ लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है. आपने कई बार लोगों को कहते सुना होगा कि उनके हाथ में पैसे नहीं टिकते इसकी वजह यही है. ऐसे में पैसा आता तो है लेकिन टिक नहीं पता. अगर आपके साथ भी ऐसा हो रहा है तो बिल्कुल परेशान ना हो. शास्त्रों में इस समस्या से निपटने के लिए अचूक उपाय बताए गए हैं, जिससे आपके पास...
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अकाल मृत्यु के बाद जीवात्मा को मिलने वाली सजा

गरुड़ पुराण में अकाल मृत्यु के बाद जीवात्मा को मिलने वाली सजा के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है. जानते हैं गरुड़ पुराण में अकाल मृत्यु को किस श्रेणी में रखा गया है. गरुड़ पुराण हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पुराण है, जिसमें मृत्यु के बाद की यात्रा, पाप-पुण्य का फल, यमलोक की व्यवस्था और प्रेत यात्रा का विस्तृत विवरण मिलता है। विशेष रूप से अकाल मृत्यु (जिसे समय से पूर्व मृत्यु कहा गया है) के संबंध में इसमें बहुत ही गंभीर चेतावनियाँ और दंडों का उल्लेख है। 🔱 गरुड़...
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Aaj Ka Rashifal 21 April 2023: आज इन राशियों को व्यावसायिक मामलों में मिलेगी सफलता

Aaj Ka Rashifal 21 April 2023: ज्योतिष शास्त्र में राशिफल को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। राशिफल के अनुसार, आज 21 अप्रैल 2023, शुक्रवार का दिन अधिकांश राशियों के लिए शुभ रहने वाला है। लेकिन कुछ राशियां ऐसी हैं, जिन्हें आज के दिन सतर्क रहने की जरूरत है। तो आइए दैनिक राशिफल से जानते हैं, कैसा रहेगा सभी राशियों के लिए आज का दिन?मेष दैनिक राशिफल (Aries Horoscope Today) अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें , मानसिक स्थिति मजबूत रखें, कुछ चीजों को नजरअंदाज करें, अपने मन में चल रही ...
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रोहिणी व्रत

  रोहिणी व्रत महत्व जैन धर्म शास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक महीने के 27 वें दिन रोहिणी नक्षत्र पड़ता है। इस दिन जैन धर्म के अनुयायी रोहिणी व्रत मनाते हैं। रोहिणी व्रत पर परमपूज्य भगवान वासु स्वामी की पूजा-उपासना की जाती है। अतः साधक श्रद्धा भाव से परमपूज्य भगवान वासु स्वामी की भक्ति करते हैं। इस दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। शुभ मुहूर्त हिन्दू पंचांग के अनुसार, 14 जुलाई को रोहिणी व्रत देर तक 10 बजकर 27 मिनट तक है। अतः साधक अपनी सुविधा अनुसार...
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श्रीहनुमत्प्रशंसनम्

श्रीहनुमत्प्रशंसनम् मुक्तिप्रदानात् प्रतिकर्तृता मे सर्वस्य बोधो भवतां भवेत । हनूमतो न प्रतिकर्तृता स्यात् स्वभावभक्तस्य निरौषधं मे ॥ १॥ मद्भक्तौ ज्ञानपूर्तावनुपधिकबलप्रोन्नतिस्थैर्यधैर्य- स्वाभाव्याधिक्यतेजःसुमतिदमशमेष्वस्य तुल्यो न कश्चित् । शेषो रुद्रः सुपर्णोऽप्युरुगुणसमितौ नो सहस्रांशुतुल्या अस्येत्यस्मान्मदैशं पदमहममुना सार्धमेवोपभोक्ष्ये ॥ २॥ पूर्वं जिगाय भुवनं दशकन्धरोऽसा- वब्जोद्भवस्य वरतो न तु तं कदाचित् । कश्चिज्जिगाय पुरुहूतसुतः कपित्वाद्- विष्णोर्वरादजयदर्जुन एव चैनम् ॥ ३॥ दत्तो वरो न मनुजान् प्रति वानरांश्च धात्रास्य तेन विजितो युधि वालिनैषः । अब्जोद्भवस्य वरमाश्वभिभूय रक्षो जिग्ये त्वहं रणमुखे बलिमाह्वयन्तम् ॥ ४॥ बलेर्द्वास्थोऽहं वरमस्मै सम्प्रदाय पूर्वं तु । तेन मया रक्षोऽस्तं योजनमयुतं पदाङ्गुल्या ॥ ५॥ पुनश्च युद्धाय...
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श्रीवेङ्कटेश क्षमात्रयस्त्रिंशच्छ्लोकी

श्रीवेङ्कटेश क्षमात्रयस्त्रिंशच्छ्लोकी श्रीमद्वेङ्कटशैलवर्यशिखरे रत्नप्रदीपो महां त्रैलोक्यान्धतमिस्र चूषणकृते यो जाज्वलीति स्फुटम् । कल्याणव्रजरोध्यनादिसु दृढाघध्वान्त विध्वंसनं कुर्वन्मङ्गलमातनोतु नितरामात्मानुरूपं स नः ॥ १॥ महामोहमय्यां भवाब्ध्यन्तरीपे महाधन्वमह्यां मदीयं चरन्तम् । मृगं स्वान्तनामानमार्ते परीतं महांहोमृगेन्द्रै रमेशाशु रक्ष ॥ २॥ प्रभो वेङ्कटेश प्रभा भूयमी ते तमः सञ्छिनर्त्ति प्रदेशे ह्यशेषे । अहो मे हृदद्रेर्गुहागूढमन्धन् तमो नैति नाशं किमेतन्निदानम् ॥ ३॥ अथावैमि वैतन्निदानं हृदाहं सहा त्वत्सपर्याविपर्यासहेतौ । कुमार्गे महामोहमार्गे सनिष्ठः सुनिष्ठातृभावं प्रभो यद्वहामि ॥ ४॥ जनं तावकीनं किमेनं सुदीनं वृथाजातमेवं वृथोपेक्षसे त्वम् । रमेशैवमेवं वृथोपेक्षसे चेत् क्षमायाः प्रकाशो मदन्येन केन ॥ ५॥ मदन्यः क्व विप्रेषु वैश्येषु- राजस्वथो शूद्रजातिष्वथो...
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द्वादशस्तोत्राणि

द्वादशस्तोत्राणि ॥ द्वादश स्तोत्राणि॥ अथ प्रथमस्तोत्रम् वन्दे वन्द्यं सदानन्दं वासुदेवं निरञ्जनम् । इन्दिरापतिमाद्यादि वरदेश वरप्रदम् ॥ १॥ नमामि निखिलाधीश किरीटाघृष्टपीठवत् । हृत्तमः शमनेऽर्काभं श्रीपतेः पादपङ्कजम् ॥ २॥ जाम्बूनदाम्बराधारं नितम्बं चिन्त्यमीशितुः । स्वर्णमञ्जीरसंवीतं आरूढं जगदम्बया ॥ ३॥ उदरं चिन्त्यं ईशस्य तनुत्वेऽपि अखिलम्भरम् । वलित्रयाङ्कितं नित्यं आरूढं श्रियैकया ॥ ४॥ स्मरणीयमुरो विष्णोः इन्दिरावासमुत्तमैः । var इन्दिरावासमीशितुः इन्दिरावासमुत्तमम् अनन्तं अन्तवदिव भुजयोरन्तरङ्गतम् ॥ ५॥ शङ्खचक्रगदापद्मधराश्चिन्त्या हरेर्भुजाः । पीनवृत्ता जगद्रक्षा केवलोद्योगिनोऽनिशम् ॥ ६॥ सन्ततं चिन्तयेत्कण्ठं भास्वत्कौस्तुभभासकम् । वैकुण्ठस्याखिला वेदा उद्गीर्यन्तेऽनिशं यतः ॥ ७॥ स्मरेत यामिनीनाथ सहस्रामितकान्तिमत् । भवतापापनोदीड्यं श्रीपतेः मुखपङ्कजम् ॥ ८॥ पूर्णानन्यसुखोद्भासिं अन्दस्मितमधीशितुः ।...
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श्रीकृष्णजयन्ती निर्णयः

श्रीकृष्णजयन्ती निर्णयः रोहिण्या मध्यरात्रे तु यदा कृष्णाष्टमी भवेत् । जयन्ती नाम सा प्रोक्ता सर्वपापप्रणाशनी(नं) ॥ १॥ यस्यां जातो हरिः साक्षान्नि शेते भगवानजः । तस्मात्तद्दिनमत्यर्थं पुण्यं पापहरं शुभपरम् ॥ २॥ तस्मात्सर्वैर्रुपोश्या सा जयन्ती नाम सा(वै) सदा । द्विजातिभिर्विशेषेण तद्भक्तैश्च विशेषतः ॥ ३॥ यो भुङ्क्ते तद्दिने मोहा(लोभा)त् पूयशोणितमत्ति सः । तस्मादुपवासेन्नित्य(पुण्य)ं तद्दिने(नं) श्रद्धयान्वितः ॥ ४॥ कृत्वा शौचं यथा न्यायं स्नानं कुर्यादतंद्रितः । प्रभात काले कुर्वीत यूगायेत्यादिमन्त्रतः ॥ ५॥ नित्याह्निकं प्रकुर्वीत भगवन्तमनुस्मरन् । मध्याह्न काले च पुमान् सायङ्काले त्वतन्द्रितः ॥ ६॥ स्नायेत पूर्वमन्त्रेण वासुदेवमनुस्मरन् । ततः पूजां प्रकुर्वेत विधिवत्सुसमाहितः ॥ ७॥ यनायेति च...
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