Astrologyग्रह विशेष

राहु का प्रभाव

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ब्रह्मांड में स्थित नव-ग्रहों में से प्रमुख सात ग्रहों (सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, तथा शनि) को छोड़कर शेष दो छाया ग्रहों (राहु-केतु) में राहु का विशेष स्थान है। हालांकि इन छाया ग्रहों का कहीं भौतिक अस्तित्व नहीं है केवल आभास मात्र है लेकिन अन्य प्रमुख ग्रहों की भांति इनका भी भूतल निवासी मानवों पर सीधा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है, जिसके कारण राहु नामक छाया ग्रह भी ज्योतिष जगत में अपना विशेष स्थान रखता है। राहु एवं इसकी वक्री गति: जब चंद्रमा अपनी कक्षा में दक्षिण से उत्तर को गति करता हुआ क्रांतिवृत्त को काटता है तो वह पात बिन्दु राहु तथा जब चंद्रमा अपनी कक्षा में उत्तर से दक्षिण को गति करता हुआ पुनः क्रांतिवृत्त को 180 डिग्री पर काटता है तो वह पात बिन्दु केतु कहलाता है। चंद्र कक्षा क्रान्ति-वृत्त पर 05 डिग्री झुकी हुई है अतः यह पात बिन्दु प्रत्येक बार थोड़ा पीछे की तरफ बनता है, यही वक्री गति कहलाती है।

राहु का विभिन्न भावों में प्रभाव प्रथम भाव – प्रथम भाव में राहु होने से जातक रोगी, क्रोधी, दुखी, दुव्र्यसनी, शत्रुनाशक, अल्प-संतति, मस्तिष्क रोगी, स्वार्थी तथा सेवक वृत्ति वाला होता है। लग्न में राहु हो तो घर में सर्प अवश्य आते हंै। राहु लग्न में हो तो वह जातक अपनी बात मनवाने वाला होता है, माईक हाथ में ले ले तो छोड़ता नहीं है। द्वितीय भाव – द्वितीय भाव में राहु होने से जातक स्वाभिमानी प्रकृति, परिजनों एवं मित्रों के लिए सदैव चिंतित, कुटुंब-नाशक, अल्प-संतति, मिथ्याभाषी, कृपण, शत्रुहंता तथा परिश्रम के पश्चात् ही धन प्रदान करने वाला होता है। तृतीय भाव – तृतीय भाव के राहु से जातक विवेकी, बलिष्ठ, विद्वान, व्यवसायी भाइयों के लिए हानिकारक होता है, नीच का राहु सदैव निर्धनता देता है। स्वगृही राहु सभी सुखों की प्राप्ति कराता है तथा जातक स्त्री, पुत्र, संबंधी तथा मित्रों से युक्त रहता है।

चन्द्र राहु तृतीय भाव में हो तो सर्प-दंश अवश्य होता है। शऩि$राहु हों तो उनके द्वारा भी हानि आती है। तृतीय भाव में राहु/केतु होने से भाई-बहनों में मन-मुटाव रहता है। तृतीय भाव में राहु राज बल से युक्त, यशस्वी, प्रतिष्ठित, धनी, दानी, विजयी परंतु भाइयों से वैर करवाता है। चतुर्थ भाव – चतुर्थ भाव के राहु से जातक रोगी, बंधु हीन, निम्न वर्ग के लोगों से प्रेम अधिक रखने वाला, स्वाभाव से क्रूर, अल्प-भाषी, असंतोषी, माता को कष्टकारक होता है। पंचम भाव – पंचम भाव में राहु होने से जातक का कोई कार्य पूर्ण नही हो पाता, आर्थिक स्थिति असंतोषजनक रहने के कारण सदैव चिंतित, भाग्यवान, कर्मठ, कुलनाशक, पत्नी सदैव रोगी रहती है। राहु पंचम में सर्प-शाप दर्शाता है। अतः सर्प पूजा श्रेष्ठ होती है। पंचम में राहु/ केतु विवाहेत्तर संबंध देता है। छठा भाव – छठे भाव में राहु होने से जातक के शत्रु स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं, धन, पुत्र एवं सभी सुखों की प्राप्ति, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक, आपसी विवाद में न्यायालय में सफलता, बलवान, धैर्यवान, दीर्घायु, अनिष्टकारक, शत्रुहंता होता है।

सप्तम भाव – सप्तम भाव में राहु होने से जातक अघिक खर्चीला, व्यवसाय में असफल, अधिक श्रम से कार्य में सफलता, चतुर, लोभी, वातरोगी, दुष्कर्म प्रवृत्त, एकाधिक विवाह वाला होता है। राहु सप्तम में तथा सप्तमेश शुक्र के साथ हो तो शादी देता है। सप्तम में राहु हो तथा सप्तमेश द्वादश भाव में हो तो 32 वर्ष की उम्र में शादी होती है। अष्टम भाव – अष्टम भाव के राहु से जातक रोगी के साथ-साथ पाप कर्म वाला होता है। असाध्य रोगों की उत्पत्ति (कैंसर, दमा, पथरी, बवासीर, एक्जीमा आदि) होती है। जातक कठोर, परिश्रमी, बुद्धिमान, कामी, गुप्त रोगी होता है। राहु अष्टम में तंत्र-विद्या व ज्योतिष के लिए अच्छा होता है। अष्टमस्थ राहु की दशा महाकष्टकारी होती है क्योंकि यह नवम (भाग्य, पिता, धर्म) का द्वादश (हानि) भाव है। राहु अष्टम में शुक्र के घर में हो तथा गुरु की दृष्टि न हो तो राहु/शुक्र की दशा में जातक को जेल जाना पड़ता है। यदि अष्टमेश अथवा अन्य पापी ग्रह के साथ राहु/केतु अष्टम में हो तो मृत्यु अथवा मृत्यु-तुल्य कष्ट होता है। मेष राशि का अष्टमस्थ राहु आर्थिक दृष्टि के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है।

अष्टम भाव में राहु, केतु की स्वराशि में धार्मिक दिशा देता है। नवम भाव – नवम भाव के राहु से जातक धार्मिक प्रवृत्ति वाला, निन्दित कार्य करने वाला, अच्छे कार्यों में बाधा से धन-हीन होता है, शत्रु उत्पन्न करना तथा उनसे भयभीत करवाना भी राहु का कार्य है। जातक सद्गुणी, परिश्रमी लेकिन भाग्यरहित होता है। दशम भाव – दशम भाव में राहु होने से जातक व्यवसाय एवं नौकरी में सफल, कामी प्रवृत्ति, दूसरे की धन-संपत्ति हड़पने वाला, इच्छा अपूर्ण, पारिवारिक व्यक्तियों से तनाव तथा अस्वस्थ रहना, व्यसनी, शौकीन, सुंदरियों पर आसक्त, नीच कर्म प्रवृत्त होता है। एकादश भाव – एकादश भाव के राहु से जातक व्यवसायी, नास्तिक एवं कलहकारी, मंदमति, परिश्रमी, अनिष्ट-नाशक, सतर्क होता है। द्वादश भाव = द्वादश भाव के राहु से जातक धर्म-कर्म वाला, शत्रुओं से भयभीत, दुःखी, विघ्न-ग्रस्त, खर्चीला, प्रवासी, स्त्रीहीन, मंदमति, विवेकहीन, दुर्जनों की संगति वाला होता है। राहु सम्बंधी विशिष्ट बातें – – राहु चंडाल जाति का ग्रह है। – राहु शानिवत फल देता है। – राहु बहिर्मुखी तथा केतु अंतर्मुखी ग्रह होता है। – राहु का मुख दक्षिण की ओर है। – राहु रहस्यमयी विद्याओं का कारक ग्रह है। – राहु की दशा में उच्चाटन क्रिया होती है। – राहु संदेह, संशय आदि देता है। – राहु संध्या समय में बली होता है। – राहु यश, मान, तथा राज-वैभव का कारक ग्रह है। – राहु के नक्षत्र आद्र्रा, स्वाति तथा शतभिषा हैं। – राहु से म्लेच्छ, मुसलमान व विदेशी आदि का विचार किया जाता है। – राहु दशम भाव में बली होता है तथा तृतीय भाव में अतिश्रेष्ठ होता है। – राहु की गति हमेशा वक्र है तथा यह एक राशि मंे लगभग १८ माह रहता है। – राहु की उच्च स्थिति वृषभ (२), स्वराशि कुंभ (११) तथा मूल त्रिकोण राशि मिथुन (३) है। कालिदास। – मंगल, शनि तथा शुक्र इसके मित्र राशि, सिंह, कर्क शत्रु राशि हैं।

१, ८,११,६,२,४ राशि में, दशम भाव में राहु बलवान होता है। – राहु हमेशा अपनी दशा में शादी देता है। – राहु, शुक्र, पंचमेश व नवमेश अपनी दशा में शादी देते हैं। – शुक्र/राहु की दशा में जातक अनेक संबंध बनाता है। – शुक्र व राहु का त्रिकोण संबंध प्रेम विवाह का योग देता है। – राहु व शुक्र पंचमेश व नवमेश होने पर अपनी दशा में शादी देते हैं। – 95ः स्थिति में राहु शादी देता है, यदि वह सप्तम से भी संबंधित हो (राहु = ब्याहू)। – वृषभ (2) का राहु एक पुत्र अवश्य देता है। – पंचमेश नीच का 6, 8, 12 में हो तो जातक के पुत्र नहीं होता है (पुत्र-हीन योग), यदि पंचम में राहु हो तो सर्प-दोष के कारण पुत्र का अभाव रहता है । – राहु/केतु तकनीकी शिक्षा देते हैं। – राहु की दशा में जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करने में प्रायः असमर्थ रहता है। – शनि-राहु अथवा चंद्र-मंगल की युति वाले जातक शराब पीते हैं। – राहु़ चंद्र एक साथ होने से जातक को अकेलापन अच्छा लगता है। – चंद्ऱ राहु अथवा चन्द्ऱ केतु कहीं भी हों जातक को अनचाहा भय (डर) देते हैं। – मंगल उच्च का (10) राहु के साथ हो तो जातक क्रोधवाला व युवा दिखने वाला होता है। – सूर्य से द्वितीय भाव में राहु की स्थिति सूर्य के अनिष्ट प्रभाव को नष्ट करती है । – शनि व मंगल का राहु/केतु पर गोचर होने से उस भाव की हानि होती है।

– राहु 3,6,11 (3 = कामनाओं पर विजय, 6 = रोगों पर नियंत्रण परन्तु शत्रु होंगे, 11 = धन का आगमन) में अच्छा होता है। – राहु तथा मंगल इत्थसाल अथवा युति में हो तो गुर्दे, पथरी, अपेंडिक्स आदि का आॅपरेशन होता है। – छठे में मंगल, सप्तम में राहु तथा अष्टम में शनि हो तो पति के लिए लखपति बनने तथा पत्नी के लिए पतिनाशक माना जाता है। – अष्टम में राहु हो तो उसकी दशा महा कष्टकारी होती है यह नवम (भाग्य-पिता-धर्म) का द्वादश भाव (हानि) है। – राहु गोचर में जन्म-राशि पर मानसिक परेशानियां पैदा करता है – विरोधी षड्यंत्र करते हैं। – राहु से अष्टम भाव में स्थित सूर्य भी कालसर्प योग जैसा परिणाम देता है। – जन्म राशि से १,३,६,९,१० तथा ११ भाव में राहु होने से पुत्रों की प्राप्ति, धन की वृद्धि तथा न्यायालय के कार्य में विजय होती है। जन्म राशि से २,४,५,७,८ तथा १२ भाव में राहु होने पर आपसी कलह, आर्थिक स्थिति कमजोर होना तथा अचानक शोक समाचारों की प्राप्ति होती है। – राहु स्वभावतः मानव को कष्ट देने वाला है। चेचक, नासूर, भूत-प्रेत बाधा, पिशाच बाधा, अरुचि, कैद, कोढ़ राहु के रोग हैं। अनिद्रा, उदर-रोग, मानसिक रोग, पागलपन आदि रोग भी राहु के कारण होते हैं। – राहु सूर्य से अधिक बलशाली, गहरे नीले रंग का तथा सर्पाकार होता है। राहु छत्र से सुशोभित है तथा इसके चारों ओर शक्तियाँ आराधना करती रहती हैं। – जातक के आध्यात्मिक विकास के लिए राहु पिछले जन्म के राहु जनित कष्टों को (देवता समान) नष्ट करता रहता है। राहु दैत्य, राक्षस, यक्ष या विषधर है। धड़ नाग या सर्प की पूंछ की भांति है। – राहु मनुष्य को जड़ता तथा अज्ञान में डुबो देता है परंतु उसमें संतोष नहीं दिलाता है। यही मानव के लिए धार्मिक संघर्ष का कारण तथा मुक्ति का द्वार बनता है।

– राहु में सूर्य तथा चंद्र के शुभत्व को नष्ट करने की शक्ति है। राहु मानव के अंदर जड़ वृत्तियों का नाश करता है, जिससे उसे पूर्व जन्म के कर्मों से मुक्ति मिल सके। – राहु तामसिक ग्रह के साथ-साथ क्रूर पापी पृथकतावादी ग्रह है। जिन राशियों पर इसका प्रभाव होता है यही जातक की मानसिक प्रवृत्ति दूषित कर देता है। – राहु बलि होने पर व्यवसाय – गांजा, अफीम, भांग, रबर का व्यापार, लाॅटरी, कमीशन एजेंट, सर्कस की नौकरी, प्रचार विभाग की नौकरी, नगरपालिका, जिला परिषद्, विधान सभा, लोक सभा आदि क्षेत्रों मंे लाभ होता है। राहु संबंधी उपाय – राहु (बहिर्मुखी) की अन्तर्दशा में तीर्थ-यात्रा, सत्संग, भजन आदि अवश्य करना चाहिए। राहु की महादशा में पक्षियों को ज्वार खिलाना चाहिए तथा प्रत्येक शनिवार को अपने ऊपर से एक नारियल उतारकर दरिया/ सागर में बहाना चाहिए। – राहु रत्न गोमेद बुधवार या शनिवार की मध्य रात्रि को आद्र्रा नक्षत्र में चांदी/सोने की अंगूठी मे धारण करना चाहिए, सफेद चंदन की माला धारण करंे। बुध व शनि को भूरे कुत्ते को मोतीचूर के लड्डू तथा भूरी गाय को गुड़, चना, घास आदि खिलाना चाहिए। राहु हेतु गेहूं, रत्न, अश्व, नीले वस्त्र, कंबल, तिल, तेल, लोहा, अभ्रक, सरसों, काले पुष्प, नारियल, कोयला, खोटे सिक्के, चाबी वाले खिलौने आद्र्रा, स्वाति, शतभिषा नक्षत्र मंे दान करना चाहिए – संतानहीन मानव, एक आँख से काणे, चेचक के दाग वाले, मकान की छत, अचानक काम आने वाले का संबंध राहु से होता है।