धार्मिक दृष्टि से गुरू यानि बृहस्पति को देवो का गुरू माना जाता है। ज्योतिष विज्ञान में गुरू को व्यक्ति के भाग्य का निर्णायक माना जाता है अतः गुरूवार के व्रत का बहुत महत्व है। सावन मास में गुरूवार व्रत में बृहस्पतेष्वर महादेव की उपासना की जाती है। जिनकी भी कुंडली में गुरू राहु से पीडि़त होकर विपरीत कारक हो, उन्हें बृहस्पतेष्वर महादेव की उपासना करने से लाभ प्राप्त होता है। जिन भी जातक के जीवन में विद्या तथा धन संबंधी कष्ट दिखाई दे, उसे बृहस्पतेष्वर महादेव की इस पूजा को जरूर करना चाहिए। बृहस्पतेष्वर महादेव की पूजा के लिए प्रातःकाल स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर ब्रम्ह मूर्हुत में पूजन का विधान है, जिसमें बृहस्पति की प्रतिमा या बेसन से षिवलिंग बनाकर किसी पात्र में रखकर पीले वस्त्र, पीले फूल, चमेली के फूलों की माला अक्षत आदि से पूजन करें। पंचोपचार पूजा कर पीले फलों का भोग लगायें तथा दूध में केषर डालकर उॅ बृहस्पतेष्वराय नमः का जाप करते हुए रूद्राभिषेक करें। इसके उपरांत आरती आदि के बाद यथा संभव ब्रहम्णों को दान तथा भोज कराने के उपरंात चने या बेसन से बने मीठे खाद्य ग्रहण करें। श्रावण मास में किये गए बृहस्पतेष्वर महादेव के पूजन से गुरू ग्रहों के दोषों से मुक्ति पाई जा सकती है तथा जीवन में आ रही विद्या तथा धन संबंधी कष्टों से राहत मिल सकती है।