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क्या आप भी पढ़ बार-बार बीमार ? तो जानें कुंडली के 9 ग्रहों के दोष

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क्या आप भी पढ़ बार-बार बीमार ? तो जानें कुंडली के 9 ग्रहों के दोष

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी ग्रह एक निश्चित अंतराल पर अपनी चाल बदलते रहते हैं। ग्रह किसी जातक को उनकी कुंडली में मौजूद स्थिति के आधार पर शुभ या अशुभ फल प्रदान करते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहों का संबंध बीमारियों से भी होता है। हर एक ग्रह किसी न किसी बीमारी का कारक तत्व माना जाता है।

व्यक्ति की कुंडली में ग्रह शुभ होने पर व्यक्ति को आर्थिक लाभ के साथ सेहत भी अच्छी बनी रहती है। वहीं अगर कुंडली में ग्रहों की स्थिति शुभ नहीं है तो व्यक्ति को तरह-तरह की मानसिक और शारीरिक पीड़ा मिलती रहती है। कुंडली में किसी भी विशेष ग्रह का कमजोर होना या दूषित होना,जातक को उस ग्रह से संबंधित बीमारियां देने की आशंका बढ़ा देता हैं। आइए जानते हैं सभी 9 ग्रहों के कमजोर होने पर किस-किस तरह की बीमारियां पैदा होती हैं।

सूर्य से जनित बीमारियां
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को सभी ग्रहों का राजा और आत्मा के कारक ग्रह माना गया है। कुंडली में सूर्य ग्रह के कमजोर होने पर व्यक्ति को पित्त, पेट संबंधी रोग,आंखों से संबंधित रोग,ह्रदय रोग और रक्त संबंधी रोग पैदा होने संभावना होती है।
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चन्द्रमा से जनित बीमारियां
ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है। ऐसे में मानसिक तनाव,किडनी,मधुमेह,कफ रोग,मूत्र विकार,मुख,दांत,पीलिया, अवसाद और दिल से संबंधी किसी भी प्रकार की समस्या चन्द्रमा के कमजोर होने पर मिलती है।

मंगल से जनित बीमारियां
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल ग्रह का संबंध रक्त से है। ऐसे में कुंडली में मंगल के अशुभ होने पर व्यक्ति को खून से संबंधित बीमारियां ज्यादा होने लगती हैं। इसके आलावा विषजनित रोग, रक्तचाप संबंधित रोग,कण्ठ रोग,मूत्र रोग,ट्यूमर,कैंसर,पाइल्स और अल्सर आदि।

बुध से जनित बीमारियां
ज्योतिष में बुध ग्रह को वाणी का कारक ग्रह माना गया है। कुंडली में बुद्ध ग्रह के कमजोर होने पर सीने से जुड़े रोग, खुजली, टाइफाइड, निमोनिया,पीलिया, हकलाने की बीमारी, चर्म रोग आदि से संबंधित बीमारियां होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है।

गुरु से जनित बीमारियां
कुंडली में गुरु के कमजोर होने से व्यक्ति को मोटापे और पेट से संबंधित रोग होने लगते हैं। व्यक्ति को लीवर, किडनी आदि से संबंधित कोई रोग,मधुमेह,पीलिया और याददाश्त में कमी जैसे रोग उभरने लगते हैं।

शुक्र से जनित बीमारियां
शुक्र ग्रह संपन्नता और वैभव का कारक ग्रह है। इसके अशुभ होने पर व्यक्ति को यौन संबंधी बीमारियों से सामना करना पड़ता है। वहीं इसके अतिरिक्त व्यक्ति को पीलिया,बांझपन, वीर्य संबंधित और त्वचा संबंधित रोग देता हैं।

शनि से जनित बीमारियां
व्यक्ति की कुंडली में अगर शनि ग्रह कमजोर है तो व्यक्ति को शारीरिक थकान,चोट आदि लगने का भय रहता है। बाल से जुड़ी बीमारी भी होती हैं। शारीरिक कमजोरी,शरीर में दर्द,पेट दर्द,घुटनों या पैरों में होने वाला दर्द,दांतों अथवा त्वचा संबंधित रोग इत्यादि शनि के कारण हो सकते हैं।
कुंडली में राहु के अशुभ या कमजोर होने पर व्यक्ति को मस्तिष्क पीड़ा, बवासीर,पागलपन आदि बीमारियां होती हैं।

केतु से जनित बीमारियां 
राहु और केतु दोनों ही अशुभ और छाया ग्रह कहलाते हैं। केतु के कमजोर होने से व्यक्ति को हड्डियों से संबंधित बीमारियां,पैरों में दर्द,नसों की कमजोरी,पेशाब से जुड़ी बीमारी, आकस्मिक रोग ,परेशानी,कुत्ते का काटना,रीढ़ संबंधित समस्या,जोड़ों का दर्द,शुगर,कान,स्वप्नदोष, हर्निया और गुप्तांग संबंधी रोग।