पति पत्नी में जीवन भर नहीं होंगे लड़ाई – झगड़े, जानें ये ज्योतिष उपाय
Totke for husband and wife relation वैवाहिक जीवन में जब कभी कोई ऐसा कारण बनता है जिसकी वजह से पति और पत्नी के बीच में तनाव उत्पन्न होता है और रिश्ता प्रभावित होता है ऐसे में पति और पत्नी के बीच संघर्ष उत्पन्न हो जाता है।कई बार ऐसा भी होता है कि पति पत्नी के छोटे-छोटे संघर्ष बड़ा रूप ले लेते हैं और अलगाव की स्थिति आ जाती है तथा कभी-कभी रिश्ते टूट भी जाते हैं वैवाहिक जीवन में अनेक संघर्ष भरे उतार-चढ़ाव व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं।
सनातन धर्म में ऐसा माना जाता है कि पति और पत्नी का जीवन पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर होता है वैवाहिक बंधन ऊनी जीवनसाथी अच्छा और बुरा उसके पूर्व जन्म के अनुसार होता है।यदि किन्ही कारणों से पति पत्नी की संबंधों में कहीं पर दरार आती है तो उनकी मजबूती करने के लिए शास्त्रों में कई प्रकार के टोने टोटके और विचार दिए गए हैं जिन्हें अपनाकर वैवाहिक बंधन को पति पत्नी के रूप में सुचारू रूप से प्रतिपादित कर सकें।
विवाह के समय वर कन्या की कुंडली के साथ-साथ गुणों पर विचार किया जाता है उसके बाद ही वैवाहिक बंधन किया जाता है। विवाह के समय पति और पत्नी की जीवन से संबंधित सुख दुख योन संबंध कर्म भोग सभी प्रकार से विचार किया जाता है.विभिन्न प्रकार से विचार करने के बावजूद भी यदि कोई समस्या आती है और पति पत्नी अलग हो जाते हैं तो ऐसे में पति पत्नी के जीवन में यदि संबंध मधुर बनाए रखना है तो कुछ टोटके यहां पर दिए जा रहे हैं जिन्हें करके आप अपने पति और पत्नी के संबंधों को अच्छे से स्थापित कर सकते हैं।पति पत्नी के रूप में वैवाहिक जीवन में यदि कभी भी किसी प्रकार की बहुत सी ऐसी बातें आती हैं जिनसे पति पत्नी के संबंध बिगड़ते हैं तो वैवाहिक जीवन में बाधाएं क्यों आती है आइए हम जानते हैं।
विवाह भारतीय संस्कृत का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसमें प्रथम कुंडली का मिलान किया जाता है विवाह का योग सप्तम भाव से प्रारंभ होता है जिसमें सुख-दुख पति पत्नी के यौन संबंध भोग विलास और विवाह के पहले या बाद में संबंधों पर विचार किया जाता है।यदि कुंडली में भाव उसका स्वामी पाप ग्रह में स्थित है और अशुभ ग्रह हैं व नवम चतुर्थ अष्टम पंचम और द्वादश स्थान भी पाप ग्रह है भाव नवांश भावेश नवांश तथा भाव कारक नवांश के स्वामी भी शत्रु राशि में हैं तो वैवाहिक संबंध में वस्तु की हानि होती है.अगर भाव अशुभ योग सप्तमेश शुभ युक्त ना होकर षष्ठ अष्टम और द्वादश भाव में है तो जातक के विवाह में बाधाएं उत्पन्न होती हैं वही षष्ठेश अष्टमेश या द्वादश और सप्तम भाव में है और ग्रह अशुभ नहीं है तो विवाह का योग शुभ माना जाता है।
इस प्रकार विचार किया जाए तो ग्रहों की ग्रह दशा के आधार पर ही वैवाहिक जीवन में विभिन्न प्रकार की बाधाएं उत्पन्न होती हैं जिसकी वजह से कभी विवाह नहीं होता है तो कभी विवाह होने के बाद वैवाहिक बंधन टूट जाता है.benefit अगर सप्तम भाव में सप्तमेश पर तथा द्वादश भाव में कोई ग्रह अशुभ दृष्टि से है तो वैवाहिक सुख में बाधाएं उत्पन्न होती हैं अगर सप्तमेश व कारक शुक्र अधिक प्रभावी है तो जातकों को वियोग झेलना पड़ता है.यदि शुक्र पाप ग्रहों के साथ सप्तमेश में है या शुक्र नीच वा सत्र नवांश में है अथवा षष्ठांश है तो जीवन साथी क्रूर स्वभाव के मिलते हैं पत्नी गलत रास्ते पर चलती है जिसकी वजह से वैवाहिक संबंध नारकी हो जाते हैं।