शास्त्र कहता है ‘अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम’ अर्थात मनुष्य को अपने किए गए शुभ-अशुभ कर्मों के फलों को अवश्य ही भोगना पड़ता है। शुभ-अशुभ कर्म मनुष्य का जन्म जन्मांतर तक पीछा नहीं छोड़ते। यही तथ्य बृहतपाराशर होरा शास्त्र के पूर्वशापफलाध्याय में स्पष्ट किया गया है। इस अध्याय में मैत्रेय जी महर्षि पाराशर से पुत्रहीनता का कारण और उसकी निवृत्ति का उपाय जानना चाहते हैं। मैत्रेय जी कहते हैं- ‘पुत्रहीन व्यक्ति को सद्गति नहीं मिलती, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। अतः कृपया कहें कि पुत्रहीनता किस पाप के कारण होती है।
जन्म कुंडली से उस पूर्वकृत पापादि का ज्ञान कैसे होगा तथा बाधा जानकर उसकी शांति कैसे होगी? पराशर मुनि बोले – ‘हे मैत्रेय ! तुमने बहुत ही उत्तम प्रश्न पूछा है। पहले पार्वती जी के पूछने पर भगवान शंकर ने जो कहा था, वही मैं यथावत् तुम्हें कहता हूं। पार्वती जी ने पूछा- ‘प्रभो ! किस पाप या किस योग में संतान हानि होती है? संतान रक्षा के लिए कृपया उपाय भी कहें।’ शंकर जी बोले- ‘देवि ! मैं तुम्हें संतान हानि के योग-दुर्योग सहित उसके फल से बचने का उपाय कहता हूं। संतान हानि योग: गुरु, लग्नेश, सप्तमेश, पंचमेश ये सारे ही बलहीन हों तो संतान नहीं होती है। सूर्य, मंगल, राहु और शनि यदि बलवान होकर पुत्र भाव में अर्थात् पंचम भाव में गए हों तो संतान हानि करते हैं। यदि ये ग्रह निर्बल होकर पंचमस्थ हों तो संतानदायक होते हैं।
पंचमेश राहु के साथ कहीं भी हो तथा पंचम में शनि हो और शनि को या मंगल को चंद्रमा देखे या उससे योग करे। संतानकारक गुरु राहु के साथ हो और पंचमेश निर्बल हो, लग्नेश और मंगल साथ-साथ हों। गुरु और मंगल एक साथ हों, लग्न में राहु स्थित हो, पंचमेश छठे, आठवें या 12 वें भाव में हो। पंचम में तीसरी या छठी राशि हो, मंगल अपने ही नवांश में हो, लग्न में राहु और गुलिक हो। पंचम में पहली या आठवीं राशि हो, पंचमेश मंगल राहु के साथ हो अथवा पंचमेश मंगल से बुध का दृष्टि या योग संबंध हो। पंचम में सूर्य, मंगल, शनि या राहु, बुध, गुरु एकत्र हों और लग्नेश और पंचमेश निर्बल हों। लग्नेश और राहु एक साथ हों, पंचमेश और मंगल भी एक साथ हों और गुरु और राहु एक साथ हों। सर्पशाप शांति विधान: सर्पसाप की निवृत्ति के लिए नागपूजा अपनी कुल परंपरानुसार करें। नागराज की मूर्ति की प्रतिष्ठा करें अथवा नागराज की सोने की मूर्ति बनवाकर प्रतिदिन पूजा करें। तत्पश्चात् गोदान, भूमिदान, तिलदान, स्वर्णदान अपनी सामथ्र्य के अनुसार करें। तब नागराज की प्रसन्नता से वंश चल पड़ता है।
पितृशाप से संतान हानि: पंचम में सूर्य तुला राशि में मकर या कुंभ नवांश में हो तथा पंचम भाव के दोनों ओर पाप ग्रह हों। पंचम में सिंह राशि हो, पांचवें या नौवें भाव में सूर्य व पाप ग्रह हों तथा सूर्य पाप दृष्ट या पाप मध्य में हो। सिंह राशि में गुरु हो तथा पंचमेश और सूर्य साथ हों। पहले तथा पांचवें भाव में पाप ग्रह हों। लग्नेश दुर्बल होकर पंचम में हो, पंचमेश सूर्ययुत हो तथा पहले और पांचवें भाव पापयुत हों। दशमेश होकर मंगल पंचमेश से युक्त हो तथा पहले, पांचवें और 10 वें भाव में पाप ग्रह हों। दशमेश छठे, आठवें या 12 वें में हो तथा संतानकारक गुरु पाप ग्रह की राशि में हो और पहला और पांचवां भावेश पापयुक्त हों। दशमेश पंचम में या पंचमेश दशम में हो तथा पहला और पांचवां भाव पापयुक्त हों।
पहले या पांचवें भाव में किसी भी प्रकार से सूर्य, मंगल और शनि स्थित हों तथा आठवें या 12 वें में राहु या गुरु हो। अष्टम भाव में सूर्य, पंचम में शनि और पंचमेश राहु के साथ पहले या पांचवें और लग्न में पाप ग्रह हों। द्वादशेश लग्न में, अष्टमेश पंचम में और दशमेश अष्टम में हो। षष्ठेश पंचम में हो, दशमेश षष्ठ में हो तथा गुरु और राहु साथ हों। उपर्युक्त योगों में पितृशाप से संतानहीनता होती है। पितृशाप शांति का उपाय: पितृदोष निवारण हेतु गया (बिहार) में श्राद्ध करें तथा एक हजार या दस हजार ब्राह्मणों को वहां भोजन कराएं। इस विधान में असमर्थ हों तो कन्यादान करें व गोदान करें।
इस तरह विधानपूर्वक शांति करने से पितृशाप से मुक्ति होती है तथा पुत्र-पौत्रादि से वंश की वृद्धि होती है। मातृशाप से संतान हानि: निम्नलिखित योगों में मातृशाप या मातृदोष से संतान हानि होती है। पंचम भाव में कर्क राशि हो और चंद्रमा भी नीचगत या पाप मध्य हो और चैथे और पांचवें भाव में पाप ग्रह हों। एकादश स्थान में शनि हो, चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो, और पंचम में नीचगत चंद्रमा हो। पंचमेश छठे, आठवें या 12वे में हो, लग्नेश नीचगत हो और चंद्रमा पापयुक्त हो। पंचमेश छठे, आठवें या 12वें में हो, चंद्रमा पाप नवांश में हो और पहले और पांचवें भावों में पाप ग्रह हों।
पंचम में कर्क राशि हो, चंद्रमा शनि, मंगल या राहु से युक्त हो और पांचवें या नौवें भाव में उक्त चंद्रमा हो। पंचम में मंगल की राशि हो तथा मंगल, शनि और राहु एक साथ हों, पहले या पांचवें भाव में चंद्र और सूर्य हों। पहला व पांचवां भावेश षष्ठ में हों, चतुर्थेश अष्टम में हो और आठवां व 10वां भावेश लग्न में हों। छठा व आठवां भावेश लग्न में हों, चतुर्थेश 12वें में हो, पंचम में चंद्र और गुरु पापयुक्त हों। लग्न पाप ग्रहों के मध्य हो, क्षीण चंद्रमा सप्तम में हो तथा राहु व शनि चैथे या पांचवें भाव में हों। अष्टमेश पंचम में हो, पंचमेश अष्टम में हो और चंद्रमा व चतुर्थेश छठे, आठवें या 12वें में हों।
कर्क लग्न में मंगल और राहु साथ हों और चंद्रमा और शनि पंचम में हों। लग्न या पंचम या अष्टम या द्वादश में मंगल, राहु, सूर्य, शनि किसी भी प्रकार से हों। पहला और चैथा भावेश छठे, आठवें या 12वें में हों। बृहस्पति अष्टम में हो तथा मंगल और राहु साथ हों, पंचम में शनि और चंद्रमा हांे। मातृशाप का निवारण: उपर्युक्त मातृशाप योगों में संतान की रक्षा हेतु शांति करनी चाहिए। रामेश्वरम में स्नान अथवा एक लाख गायत्री जप करके चांदी के पात्र में प्रतिदिन दूध पीएं। तत्पश्चात ग्रहों का दान करें एवं ब्राह्मण भोजन कराएं अथवा 1008 बार पीपल की विष्णुरूप में पूजा करके परिक्रमा करें।
इस प्रकार करने से हे पार्वति ! ‘शाप से मुक्ति और सुपुत्र की प्राप्ति होती है तथा कुल-वृद्धि होती है।’ भ्रातृशाप का ज्ञान:शंकर जी बोले, ‘हे पार्वति ! अब मैं भ्रातृशाप से संतानहीनता कहता हूं। इन योगों में प्रयत्नपूर्वक शांति करनी चाहिए। तृतीयेश पंचम में मंगल और राहु के साथ हो और पहला व पांचवां भावेश अष्टम में हों। पहले या पांचवें भाव में मंगल और शनि हों तथा नवम में तृतीयेश और अष्टम में गुरु हो। तृतीय में गुरु नीचगत हो, पंचम में शनि तथा अष्टम में चंद्र व मंगल हों। लग्न के दोनों ओर पाप ग्रह हों और पंचम भाव भी पाप मध्य हो। पहला व पांचवां भावेश अष्टम में हों।
लग्नेश अष्टम में हो, पंचम में मंगल और अष्टम में पापयुक्त पंचमेश हो। दशमेश तृतीय में हो, नवम भाव में पाप ग्रह हो और पंचम में मंगल हो। पंचम में मिथुन या कन्या राशि तथा शनि और राहु हों। द्वादश में बुध और मंगल हों। लग्नेश तृतीय में, तृतीयेश पंचम में और पहले, तीसरे और पांचवें भाव में पापग्रह हों। तृतीयेश अष्टम में और गुरु पंचम में हो तथा गुरु और राहु शनि से युत या दृष्ट हों। अष्टमेश पंचम में तृतीयेश के साथ हो तथा अष्टम में शनि और मंगल हों तो भ्रातृशाप से पुत्र नहीं होता है। शापमुक्ति का उपाय: भ्रातृशाप से मुक्त होने के लिए हरिवंश पुराण का विष्णु भगवान के सामने श्रवण तथा चंद्रायण व्रत करें अथवा पीपल के वृक्ष की स्थापना और पूजा करें तथा दस गायों या दशमहाधेनु का दान करें।
साथ ही पुत्रेच्छुक व्यक्ति पत्नी के हाथ से भूमि दान कराएं। इस प्रकार धर्मपत्नी सहित जो उक्त उपायों को करता है, उसे अवश्य ही पुत्र होता है और उसकी वंश वृद्धि होती है। मातुलशाप से संतानहानि: निम्नलिखित योगों में मामा के शाप से संतान नहीं होती है। पंचम में बुध, गुरु, मंगल और राहु की स्थिति हो और लग्न में शनि हो। पंचम में पहले और पांचवंे भावेश के साथ बुध, मंगल और शनि हों। पंचमेश अस्त हो और पहले या सातवें भाव में शनि, लग्नेश और बुध साथ हों।
चतुर्थेश लग्न में द्वादशेश के साथ हो और पंचम में चंद्र, बुध और मंगल हों। शापविमोचन का उपाय: इस दोष की शांति के लिए विष्णु भगवान की प्रतिमा की स्थापना करें। परोपकारार्थ बावड़ी, कुआं, तड़ागादि (जल के प्याऊ आदि या सार्वजनिक जलस्थान) तथा पुल बनवाने चाहिए। ब्रह्म (ब्राह्मण) शाप से संतानहानि निम्नलिखित योगों में ब्रह्मशाप से संतान नहीं होती है। राहु नौवें या 12वें राशि में हो पंचम में गुरु, मंगल और शनि हो और नवमेश अष्टम में हो। नवमेश पंचम में या पंचमेश अष्टम में गुरु, मंगल और राहु के साथ हो। नवमेश नीचस्थ हो, द्वादशेश पंचम में हो और राहु से युक्त या दृष्ट हो। गुरु नीच में हो, राहु लग्न में या पंचम में हो, पंचमेश छठे, आठवें या 12वे में हो।
पंचमेश होकर गुरु अष्टम में पापयुक्त हो अथवा पंचमेश सूर्य चंद्र के साथ हो। शनि के नवांश में शनि के साथ गुरु और मंगल हों तथा पंचमेश द्वादश में हो। लग्न में शनि और गुरु हों, नवम में राहु हो अथवा द्वादश में गुरु हो। शाप निवारण विधि: ब्रह्मशाप के निवारणार्थ चंद्रायण व्रत करना चाहिए और तीन प्रायश्चित ब्रह्मकूर्च करके दक्षिणा सहित गोदान करें। साथ ही स्वर्ण व पंचरत्नों का दान करें और यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन कराएं। ऐसा करने से सुपुत्र की प्राप्ति होती है तथा मनुष्य शापमुक्त होकर शुद्धात्मा व सुखी होता है। पूर्णमासी को लगातार 24 घंटे का व्रत करके अगले दिन प्रातः पंचगव्य पीकर व्रत खोलना ‘ब्रह्मकूर्च व्रत’ है।
पत्नीशाप से संतानहानि: निम्नलिखित योगों में पत्नी के शाप से (पूर्व पत्नी या पूर्वजन्मकृत पत्नी दोष) संतानहीनता होती है। नवम में शुक्र तथा अष्टम में सप्तमेश और पहले तथा पांचवें में पाप ग्रह हों। नवमेश शुक्र हो, पंचमेश षष्ठ स्थान में हो और गुरु, लग्नेश व सप्तमेश छठे, आठवें और 12वे में हों। पंचम में शुक्र की राशि हो, राहु और चंद्र पंचम में हांे तथा पहले, दूसरे और 12वें में पाप ग्रह हों। सप्तम में शुक्र और शनि हों, अष्टमेश पंचम में तथा सूर्य और राहु लग्न में हों। सप्तमेश पंचम में हो व सप्तमेश के नवांश में शनि हो और पंचमेश अष्टम में हो। सप्तमेश और पंचमेश अष्टम में हों व गुरु पापयुक्त हो।
शुक्र पंचम में हो, सप्तमेश अष्टम में हो और गुरु पापयुक्त हो। द्वितीय में कोई पाप ग्रह हो, सप्तमेश अष्टम में हो व पंचम में कोई पाप ग्रह हो। द्वितीय में मंगल, द्वादश में गुरु और पंचम में शुक्र हो तथा पंचम पर शनि व राहु का योग या दृष्टि हो। दूसरा और सातवां भावेश अष्टम में हों, पहले और पांचवें में मंगल व शनि हों और गुरु पापयुक्त हो।पहले, पांचवें व नौवें में क्रमशः राहु, शनि, मंगल हो और पांचवां तथा सातवां भावेश अष्टम में हों। दोष निवारण के उपाय: उक्त दोष का निवारण करने के लिए कन्यादान करें अथवा लक्ष्मी व विष्णु जी की सोने की मूर्ति, दस गाएं, शय्या, आभूषण व वस्त्र किसी गरीब गृहस्थ ब्राह्मण को दान करें।
ऐसा करने से संतान होती है और भाग्यवृद्धि होती है। प्रेतादिशाप से संतानहानि: पितृकार्य श्राद्ध, तर्पणादि न करने से पितर प्रेत रूप को प्राप्त हो जाते हैं। तब उनके शाप से वंश नहीं चलता। जन्मलग्न में इन योगों को देखकर यह योग कहना चाहिए।पंचम में सूर्य और शनि, सप्तम में क्षीण चंद्रमा और लग्न और द्वादश में राहु व गुरु हों।पंचमेश शनि अष्टम में हो, लग्न में मंगल और अष्टम में गुरु हो। लग्न में पाप ग्रह, व्यय में सूर्य, पंचम में मंगल, बुध और शनि और अष्टम में पंचमेश हो। लग्न में राहु, पंचम में शनि और अष्टम में बृहस्पति हो। लग्न में राहु, शुक्र और गुरु हों, चंद्रमा व शनि साथ हों और लग्नेश अष्टम में हो।पंचमेश नीचस्थ हो, गुरु भी नीचस्थ हो और किसी नीचस्थ ग्रह से गुरु दृष्ट हो। लग्न में शनि, पंचम में राहु, अष्टम में सूर्य तथा द्वादश में मंगल हो। सप्तमेश छठे, आठवें या 12वें में हो, पंचम में चंद्रमा तथा लग्न में शनि और गुलिक हों।
अष्टमेश पंचम में शनि और शुक्र के साथ हो और गुरु अष्टम में हो। (पितर) प्रेत शाप के उपाय: इस दोष की शांति के लिए गया में श्राद्ध तथा रुद्राभिषेक करें अथवा ब्रह्माजी की स्वर्णमयी मूर्ति, चांदी के वर्तन और नीलम का दान तथा गोदान करें और ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें। ऐसा करने से शाप से मुक्ति होती है तथा पुत्रोत्पत्ति एवं वंश वृद्धि होती है। ग्रह योगों से निःसंतान योग: दूसरा, पांचवां तथा सातवां भावेश पाप राशि में पापयुक्त होकर स्थित हों या इनके नवांशेश पापराशि के नवांश में पापयुक्त हों।द्वादशेश का नवांशेश अष्टम में हो और पंचमेश क्रूर षष्ट्यंश में हो।
पहला और पांचवां भावेश छठे, आठवें या 12वें में हों, गुरु नीचगत हो और पंचम में कोई नपुंसक ग्रह (बुध, शनि) हो। गुरु क्रूर षष्ट्यंश में, पंचमेश अष्टम में व अष्टमेश पंचम में हो। उपर्युक्त योगों में संतान नहीं होती है। इस प्रकार के योगों में उक्त ग्रह की शांति करनी चाहिए। ग्रह बाधा शांति: यदि संतान सुख में बुध और शुक्र बाधक हों तो शिवपूजन करें। गुरु चंद्रकृत दोष हो तो मंत्र, यंत्र और औषधि प्रयोग करें। राहु बाधक हो तो कन्यादान करें। सूर्य का दोष हो तो विष्णु जी का जप या हरिवंश पुराण का श्रवण करें। सामान्यतः अच्छी संतान प्राप्त करने के लिए और सब दोषों को दूर करने के लिए हरिवंश पुराण का भक्तिपूर्वक श्रवण करना चाहिए।