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षटतिला एकादशी का पूजा विधि, कथा, महत्व

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षटतिला एकादशी का पूजा विधि, कथा, महत्व

खटतिला एकादशी व्रत में तिल का छ: रूप में दान करना उत्तम फलदायी होता है।[क्या ये तथ्य है या केवल एक राय है?] जो व्यक्ति जितने रूपों में तिल का दान करता है उसे उतने हज़ार वर्ष स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है।[क्या ये तथ्य है या केवल एक राय है?] ऋषिवर ने जिन 6 प्रकार के तिल दान की बात कही है वह इस प्रकार हैं

1. तिल मिश्रित जल से स्नान 2. तिल का उबटन 3. तिल का तिलक 4. तिल मिश्रित जल का सेवन 5. तिल का भोजन 6. तिल से हवन। इन चीजों का स्वयं भी प्रयोग करें और किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को बुलाकर उन्हें भी इन चीज़ों का दान दें।

इस प्रकार जो षट्तिला एकादशी का व्रत रखते हैं भगवान उनको अज्ञानता पूर्वक किये गये सभी अपराधों से मुक्त कर देते हैं और पुण्य दान देकर स्वर्ग में स्थान प्रदान करते हैं।क्या ये तथ्य है या केवल एक राय है?] इस कथन को सत्य मानकर जो भग्वत् भक्त यह व्रत करता हैं उनका निश्चित ही प्रभु उद्धार करते हैं।

षट्तिला एकादशी का महत्व 

एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि हे महाराज, पृथ्वी पर मनुष्य पराए धन की चोरी, ब्रह्महत्या जैसे बड़े पाप करते हैं, इतना ही नहीं दूसरों को आगे बढ़ता देखकर ईर्ष्या करते हैं। इसके बाद भी उन्हें नरक प्राप्त नहीं होता। आखिर इसका कारण क्या है। ये लोग ऐसा कौनसा का दान और पुण्य कार्य करते हैं जिनसे उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। जरा इसके बारे में विस्तार से बताइए।
पुलस्त्य मुनि कहने लगे हे महाभाग! आपने मुझे बहुत गंभीर और महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा है। इस प्रश्न से संसार के जीवों का भला होगा। इस राज को तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश और इंद्र आदि भी नहीं जानते हैं। लेकिन मैं आपको यह गुप्त भेद जरूर बताऊंगा। उन्होने कहा कि माघ मास जैसे ही लगता है तो मनुष्य को स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। अपनी इंद्रियों को वश में करके काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए।पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे बनाने चाहिए। इसके बाद उन कंडों से 108 बार हवन करना चाहिए। इस दिन अच्छे पुण्य देने वाले नियमों का पालन करना चाहिए। एकादशी के अगले दिन भगवान को पूजा आदि करने के बाद खिचड़ी का भोग लगाएं।

षट्तिला एकादशी की व्रत कथा

इस कथा का उल्लेख श्री भविष्योत्तर पुराण में इसस प्रकार उल्लेखित किया गया है। पुराने समय में मृत्यु लोक में एक ब्राह्मण रहती थी। वह हमेशा व्रत और पूजा पाठ में लगी रहती थी। बहुत ज्यादा उपवास आदि करने से वह शारीरिक रुप से कमजोर हो गई थी। लेकिन, उसने ब्राह्मणों को अनुदान करके काफी प्रसन्न रखा। लेकिन, वह देवताओं को प्रसन्न नहीं कर पाई। एक दिन श्रीहरि स्वयं एक कृपाली का रुप धारण कर उस ब्रह्माणी के घर भिक्षा मांगने पहुंचे। ब्रह्माणी ने आक्रोश में आकर भिक्षा के बर्तन में एक मिट्टी का डला फेंक दिया।

इस व्रत के प्रभाव से जब मृत्यु के बाद वह ब्रह्माणी रहने के लिए स्वर्ग पहुंची तो उसे रहने के लिए मिट्टी से बना एक सुंदर घर मिला। लेकिन, उसमें खाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। उसने दुखी मन से भगवान से प्रार्थना की कि मैंने जीवन भर इतने व्रत आदि, कठोर तप किए हैं फिर यहां मेरे लिए खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसपर भगवान प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि इसका कारण देवांगनाएं बताएंगी, उनसे पूछो। जब ब्रह्मणी ने देवांगनाओं से जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि तुमने षट्तिला एकादशी का व्रत नहीं किया। पहले षट्तिला एकादशी व्रत का महात्म सुन लो। ब्रहामणी ने उनके कहेनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से उसके घर पर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया। मनुष्यों को भी मूर्खता आदि का त्याग करके षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिल आदि का दान करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से आपका कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

षट्तिला एकादशी का व्रत

यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। दरअसल, इस एकादशी पर छह प्रकार के तिलों का प्रयोग किया जाता है। जिसके कारण इसका नामकरण षट्तिला एकादशी व्रत पड़ा। इस व्रत को रखने से मनुष्यों को अपने बुरे पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को रखने से जीवन में सुख समृद्धि आती है।

षट्तिला एकादशी की पूजा विधि

षट्तिला एकादशी के दिन शरीर पर तिल के तेल से मालिश करना, तिल के जल में पान एंव तिल के पकवानों का सेवन करने का विधान है। सफेद तिल से बनी चीजें खाने का महत्व अधिक बताया गया है। इस दिन विशेष रुप से हरि विष्णु की पूजा अर्चना की जानी चाहिए। जो लोग व्रत रख रहें है वह भगवान विष्णु की पूजा तिल से करें। तिल के बने लड्डू का भोग लगाएं। तिलों से निर्मित प्रसाद ही भक्तों में बांटें। व्रत के दौरान क्रोध, ईर्ष्या आदि जैसे विकारों का त्याग करके फलाहार का सेवन करना चाहिए। साथ ही रात्रि जागरण भी करना चाहिए। इस दिन ब्रह्मण को एक भरा हुआ घड़ा, छतरी, जूतों का जोड़ा, काले तिल और उससे बने व्यंजन, वस्त्रादि का दान करना चाहिए।