
पौष मास की अमावस्या कब है?
अमावस्या, जिसे संस्कृत में अमावास्या कहते हैं (अर्थात् “अमावस” = बिना चंद्र), हिंदू पंचांग के अनुसार चंद्रमा के अर्ध-चक्र का समाप्ति बिंदु होती है। इस दिन चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता और पृथ्वी-सूर्य-चंद्रमा की स्थिति सीधी रेखा में होती है, जिससे चंद्रमा का पक्ष पूर्णतः छाया में चला जाता है। यही कारण है कि इसे ‘नवग्रह की एकांत धारा’ माना जाता है। अमावस्या दिन का महत्व प्राचीन काल से ही मानव जीवन के रहस्य, आत्मा, मार्गदर्शन, स्मृति और मोक्ष की अनुभूति से जुड़ा हुआ है।
पौष मास 2025 : सनातन परंपरा में प्रत्येक मास, प्रत्येक दिन और प्रत्येक तिथि का अपना महत्व होता है. यदि बात करें पौष मास की तो इसके कृष्णपक्ष में पड़ने वाली पंद्रहवीं तिथि यानि पौष अमावस्या को स्नान-दान और पितृपूजा के लिए अत्यंत ही फलदायी माना गया है. हिंदू मान्यता के अनुसार पौष मास की अमावस्या के दिन यदि कोई व्यक्ति किसी जल तीर्थ पर जाकर स्नान-दान और पितरों के लिए पिंडदान आदि करता है तो उसके जीवन से जुड़ा दुख-दुर्भाग्य दूर होता है और उसके सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है. अत्यंत ही पुण्यदायी मानी जाने वाली पौष मास की अमावस्या कब पड़ेगी और इस दिन क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए, आइए इसे विस्तार से जानते हैं.
19 या 20 कब है पौष अमावस्या
अमास्या तिथि जिस दिन आसमान में चंद्र देवता के दर्शन नहीं होते हैं, उसके स्वामी पितर माने जाते हैं. पंचांग के अनुसार पितृ कार्यों के लिए श्रेष्ठ मानी जाने वाली पौष मास की अमावस्या तिथि 19 दिसंबर 2025, शुक्रवार के दिन प्रात:काल 04:59 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 20 दिसंबर 2025, शनिवार के दिन प्रात:काल 07:12 बजे तक रहेगी. ऐसे में पौष अमावस्या से जुड़ा पर्व 19 दिसंबर को मनाया जाएगा.

पौष अमावस्या के दिन क्या करना चाहिए
पौष मास की अमावस्या पर स्नान-दान का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. ऐसे में इस दिन गंगा-यमुना, गोदावरी जैसे जलतीर्थों पर जाकर स्नान और दान करना चाहिए.
पौष अमावस्या के दिन जरूरतमंद लोगों को काले कंबल, काला छाता, वस्त्र, अन्न और धन का दान देने से शुभ फल की प्राप्ति और शनि, राहु, केतु आदि ग्रहों से जुड़े दोष दूर होते हैं.
पौष अमावस्या पर क्या नहीं करना चाहिए

पौष अमावस्या 2025
हिंदू धर्म में धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पारिवारिक संतुलन, पितृ स्मरण, आत्म-मूल्यांकन और जीवन के पाप-धर्म के पुनर्मूल्यांकन का एक महान अवसर प्रदान करती है।
यह दिन हमें न केवल पितृकर्म की ओर अग्रसर करता है बल्कि मन, विचार और जीवन यात्रा की गहन समीक्षा के लिए प्रेरित करता है। इस दिन के श्रेष्ठ कर्म — स्नान, दान, पूजा-पाठ, व्रत और चिंतन — सभी व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक शांति प्रदान करते हैं।
हिंदू संस्कृति में ऐसे दिनों का लक्ष्य केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन की अंतर्दृष्टि, समर्पण, श्रद्धा और कर्म सुधार है।





