सर्वग्रह शान्ति मन्त्र
ब्रम्हा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानुः शशि भूमि सुतो बुधश्च।
गुरूश्च शुक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहाः शांतिकरा भवंतु।।
जातक को धन-लाभ होगा। हमने वही योग देखकर ज्योतिष के आधार पर भविष्यवाणी की कि तेरे को धन-लाभ होगा। वास्तव में लाभ हुआ तो आभार हमें ज्योतिष शास्त्र का एवम् ऋषियों का मानना चाहिए तभी हम कृतज्ञ कहलाएंगे। ज्योतिष विज्ञान का पहला पाठ यह है कि ज्योतिषी को घमण्डी, अहंकारी, लालची एवम् कृतघ्न नहीं होना चाहिए।
वास्तव में हम अपने आचार्यो द्वारा परिक्षित उपाय या योग के माध्यम से जातक का कल्याण अथवा भविष्यकथन करते हैं और उससे पर्याप्त लाभ होता है तो श्रेय विद्वान को नहीं अपितु ज्योतिष विद्या को जाना चाहिए। अगर हम जातक के कष्ट का निराकरण करने में सफल होते हैं तो हमें देवी-शक्ति का आभार मानना चाहिए। हमें कभी यह नहीं भूलना चाहिए कि हम तो केवल माध्यम हैं, जब तक हम विनम्र हैं, कृतज्ञ हैं, शास्त्रों की कृपा हमारे साथ रहेगी, माॅ सरस्वती का वरदहस्त हम पर बना रहेगा।
हमज ब अनाधिकृत चेष्टा कर स्वार्थ की तुष्टि में लग जाएंगे, ज्योतिष का ज्ञान एवम् शक्ति दोनों हमारा साथ छोड़ देगी। हम केवल ’गणितज्ञ’ बनकर रह जाएंगे। जन्मपत्री बना लेंगे, दशाए निकाल देंगे, पर फलित कहने में हम नितान्त असफल रहेंगे।लग्न का निश्चय और सूर्य को सही राशि में ठीक घर में प्रस्थापित कर लेने के पश्चात् जन्मकुंणली के अन्य ग्रहों को सुनिश्चित करने के लिए पाठकों को भारतीय पंचांग अथवा पश्चिमी विधि की नक्षत्रीय तालिकाओं को देखना भी आवश्यक है।
पाठक जिन पंचांगो अथवा नक्षत्र-पत्रियों को खरीदेगा, उनमें प्रारम्भ में ही, उन वस्तुओं के विभिन्न स्तम्भों में प्रयुक्त संक्षिप्ताक्षरों और अंको की व्यख्यात्मक टिप्पणियाॅं मिलेगी। तथापि, ऐसी तालिकाओं का अनुभव पाठकों को भी हो जाए, इसी विचार से मैंने पिछले अध्यायों में नक्षत्र की तालिका पृथ्क-पृथक दे दी हैं।प्रिय पाठकों! टब उपाय प्रस्तुत है।
तनिक सोचें क्या केवल ज्योतिष के ग्रन्थ पढ़ लेने से भविष्य ज्ञान प्राप्त कर लेने से सब कुछ ठीक होने वाला है। जी नहीं, बिल्कुल नहीं आपको कुछ उपाय भी करने होंगे।आप सर्वप्रथम उन उपायों को समझें और जो भी ग्रह अनिष्ट फल प्रदान करे उसे नीचे बतलाए गए उपाय से अनुकूल करें।
किसी भी ग्रह की दशा ठीक न होने पर उसकी शान्ति के लिए निम्नलिखित प्रयोग उत्तम माने गए हैं। रत्न धारण की तरह ही वनस्पति का प्रयोग भी फलदायी कार्य करता है। जिस ग्रह की शान्ति के लिए जो जड़ बताई गई है उसे उसी वार में विधिवत् लानी चाहिए। जड़ लगभग एक इन्च लम्बी ही होनी चाहिए और केवल दाहिने हाथ में ही धारण करना चाहिए-