घर में कहां और किस दिशा में होना चाहिए मंदिर
ज्यादातर घरों में मंदिर जरूर होता है, जहां नियमित रूप से धूप बत्ती और पूजा होती है। दरअसल पूजा स्थान घर का देवस्थान होता है। जहां से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसलिए आपका पूजा घर वास्तु के हिसाब से ऐसा होना चाहिए, जो आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार बेहतर तरीके से कर पाए। दरअसल पूजा घर सही स्थान पर न होने के कारण कभी-कभी पूजा का शुभ फल प्राप्त नहीं हो पाता है। इसलिए पूजा घर बनवाते समय आपको कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए, अगर आपके घर में पूजा घर है तो उसे भी वास्तु के कुछ नियमों से ठीक करवाकर अपने घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार तेज कर सकते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार जानते हैं कि घर का मंदिर कहां होना चाहिए और इसके नियम क्या हैं…
पूजा करने वाले व्यक्ति का मुंह पश्चिम दिशा में हो तो शुभ रहता है। इसके लिए मंदिर का द्वार पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
घर के मंदिर में प्रतिदिन सुबह और शाम को अगरबत्ती और दीपक जरूर जलाएं। दीपक जलाने से घर के कई वास्तु दोष दूर होते हैं।
शौचालय और पूजा घर पास-पास नहीं होना चाहिए। अगर मंदिर के आसपास बाथरूम है तो दरवाजे हमेशा बंद रखना चाहिए। दरवाजे पर पर्दा भी लगाना चाहिए।
पूजा स्थल के पास थोड़ी जगह खुली भी होना चाहिए, जहां आसानी से बैठकर पूजा की जा सके। पूजा के बाद कुछ देर ध्यान भी करना चाहिए।
मंदिर के आसपास पूजन सामग्री, धार्मिक पुस्तकें, शुभ वस्तुएं रखनी चाहिए। घर का अन्य सामान मंदिर की जगह पर नहीं रखना चाहिए।
मंदिर को सजावट केसे करे
वास्तुशास्त्र में मंदिर की सजावट को लेकर भी सुझाव दिया गया है। ज्यादातर घरों में मंदिर जमीन पर ही बनाया जाता है, जिससे लोग आराम से बैठकर पूजा कर सकें। हालांकि वास्तुशास्त्र के अनुसार यह उचित नहीं है। वास्तु के हिसाब से मंदिर की ऊंचाई इतनी हो कि आपका सिर भगवान के पैरों की ऊंचाई के बराबर तक ही पहुंचे। क्योंकि हिंदू धर्म में भगवान का स्थान सर्वोच्च माना गया है और कहा गया है कि उन्हें जमीन की जगह, ऊंचाई पर स्थान देना चाहिए।
मंदिर का मुख
वास्तु के अनुसार, मंदिर की दिशा के साथ उसके मुख की भी दिशा सही होनी चाहिए. वास्तु के हिसाब से पूजा स्थल का द्वार पूर्व की तरफ होना चाहिए. वहीं, पूजा करने वाले व्यक्ति का मुंह पूर्व दिशा में होना श्रेष्ठ माना जाता है.
घर में मंदिर पूर्व या उत्तर दिशा के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में बनाना चाहिए। वास्तु की मान्यता है कि ईश्वरीय शक्ति ईशान कोण से प्रवेश करती है और नैऋत्य कोण (पश्चिम-दक्षिण) से बाहर निकलती है। अगर ये संभव न हो तो पश्चिम दिशा में बनवा सकते हैं, लेकिन दक्षिण दिशा में मंदिर बनवाने से बचना चाहिए।