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भ्रष्टाचार का विरोध करेगा कौन ???

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आज जब मैं ये लिखने बैठा हूॅ कि भ्रष्टाचार को कौन समाप्त करेगा, तब बहुत सारे प्रश्र दिमाग में लगातार कौंध रहे हैं कि क्या ऐसा सचमुच संभव है? क्या ये कभी समाप्त भी हो सकता है या हम इसे दशहरा में मनाये जाने वाले रावण वध की तरह हर बार समाप्त करेंगे और ये भस्मासुर के मुंह की तरह फिर खुला हुआ मिलेगा? इन्हीं सब प्रश्रों के साथ आज शाम जब मैं ये लिखने बैठा हूॅ तब के प्रश्र कुंडली पर विचार करने पर यह दिखता है कि अभी जबकि वृश्चिक लग्र की कुंडली में लग्रस्थ शनि तृतीयेश और चतुर्थेश होकर लग्र में अपने न्यायकारी दृढ़ता के साथ दंडाधिकारी की महती भुमिका में बैठा है और उसी के अनुरूप द्वितीयेश और पंचमेश गुरू कर्क का होकर भाग्यस्थ है अर्थात समाज और समाजिकता हेतु उॅचे मापदंड स्थापित करने हेतु प्रतिबद्व दिखता है। हालांकि यह भी सच है कि दशम भाव का कारण सूर्य राहु से पापाक्रांत होकर पंचमस्थ है अर्थात सत्तापक्ष कितनी भी विपरीत परिस्थिति और विरोधाभास के बावजूद अपना अंह और मद छोड़ नहीं सकता। किंतु मेरा मानना है कि ग्रहों के गोचरों का प्रभाव समय के कालखंड पर पड़ता है तो जब से वृश्चिक शनि और कर्क का गुरू गोचर में है, तब से ही न्याय और उॅचे मापदंड स्थापित करता रहा है और अभी जब शनि और गुरू इस स्थिति में हैं तब तक तो ये सिलसिला जारी रहेगा। भ्रष्टाचार के कारण हमारे सामाजिक जीवन के अस्तित्व में ही छिपे हैं और नेतागण महज चिल्लाते रहते हैं कि हम भ्रष्टाचार को मिटा देंगे, हमारे आते ही भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा किंतु मजे कि बात तो यह है कि जो नेता जितने जोर से मंच पर चिल्लाते हैं कि भ्रष्टाचार मिटा देंगे, वे उस मंच तक बिना भ्रष्टाचार के पहुंच नहीं पाते। जहां से भ्रष्टाचार मिटाने का व्याख्यान देना पड़ता है, उस मंच तक पहुंचने के लिए भ्रष्टाचार की सीढिय़ाँ पार करनी पड़ती हैं

जिस देश में इतनी गरीबी हो उस देश में सदाचार हो सकता है, यह चमत्कार होगा। यह संभव नहीं है। जहां जीना इतना कठिन हो, वहां आदमी ईमानदार रह सकेगा, यह मुश्किल है। हां, एकाध आदमी जो कोई संकल्पवान हो, रह सकता है, लेकिन इतना संकल्प सबके पास नहीं है और इसके लिए उन्हें दोषी भी नहीं ठहराया जा सकता। पूंजीवाद का कोई कसूर नहीं है कि भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार का कारण दूसरा है। भ्रष्टाचार का कारण है कि भूख ज्यादा है, रोटी कम है। नंगे शरीर ज्यादा हैं, कपड़े कम हैं। आदमी ज्यादा हैं, मकान कम हैं। जीने की सुविधा कम है, और जीने वाले रोज बढ़ते चले जा रहे हैं। इसके बीच जो तनाव पैदा होगा, वह भ्रष्टाचार ले आएगा। इस भ्रष्टाचार को कोई नेता नहीं मिटा सकता। क्योंकि वह जिस ढंग से सोचते हैं, कि जाकर सारे मुल्क को समझायेंगे कि भ्रष्टाचार मत करो। तो क्या भ्रष्टाचार बंद हो जाएगा? यहां अस्तित्व खतरे में है। यह प्रवचन से हल होने वाला नहीं है कि सारे हिंदुस्तान के साधु गांव-गांव जाकर समझाएं कि भ्रष्टाचार मत करो। तो बस भ्रष्टाचार बंद हो जाएगा। यहां कोई शिक्षा कि कमी नहीं है और न प्रवचनों कि कमी है। क्योंकि भ्रष्टाचार की बुनियादी जड़ को पकडऩा पड़ेगा और अगर हम जड़ को पकड़ लें तो बहुत चीजें साफ हो जाएं।
भारत में वैसे तो अनेक समस्याएं विद्यमान हैं जिसके कारण देश की प्रगति धीमी है। उनमें प्रमुख है बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, आदि लेकिन उन सबमें वर्तमान में सबसे ज्यादा यदि कोई देश के विकास को बाधित कर रहा है तो वह है भ्रष्टाचार की समस्या। आज इससे सारा देश त्रस्त है। लोकतंत्र की जड़ो को खोखला करने का कार्य काफी समय से हो रहा है। आज जबकि कदम-कदम पर लोगों के मान-सम्मान को बेरहमी से कुचला जा रहा है। लोगों के कानूनी, संवैधानिक, प्राकृतिक एवं मानव अधिकारों का खुले आम हनन एवं अतिक्रमण हो रहा है। हर व्यक्ति को मनमानी, गैर-बराबरी, भेदभाव एवं भ्रष्टाचार का सामना करना पड रहा है। यह दयनीय स्थिति सिर्फ एक दिन में ही नहीं बनी है। यह लंबे समय से धीरे-धीरे गेंहू में घुन की तरह फैल रही थी और आज भ्रष्टाचार ने पूरे राष्ट्र को अपने आगोश में ले लिया है। वास्तव में भ्रष्टाचार के लिए आज सारा तंत्र जिम्मेदार है। ऐसी अनेकों प्रकार की नाइंसाफी, मनमानी एवं गैर-कानूनी गतिविधियाँ केवल इसलिये ही नहीं चल रही हैं कि सरकार एवं प्रशासन में बैठे लोग निकम्मे, निष्क्रिय और भ्रष्ट हो चुके हैं, बल्कि ये सब इसलिये भी तेजी से फल-फूल रहे हैं, क्योंकि हम आजादी एवं स्वाभिमान के मायने भूल चुके हैं। सच तो यह है कि हम इतने कायर, स्वार्थी और खुदगर्ज हो गये हैं कि जब तक हम स्वयं इससे प्रभावित नहीं होते, तब तक हम इनके बारे में सोचते ही नहीं। यदि हम इसी प्रकार से केवल आत्म केन्द्रित होकर स्वार्थपूर्ण सोचते रहे, तो हमारे सामने भी भ्रष्टाचार अनेक रूप में सामने आ सकता है जैसे कि
हम या हमारा कोई अपना, बीमार हो और उसे केवल इसलिये नहीं बचाया जा सके, क्योंकि उसे दी जाने वाली दवायें उन अपराधी लोगों ने नकली बनायी हों, जिनका हम विरोध नहीं कर पा रहे हैं?
हम या हमारा कोई अपना, किसी भोज में खाना खाये और खानें की वस्तुओं में मिलावट के चलते, वह असमय ही तडप कर बेमौत मारा जाए।
हम या हमारा कोई अपना, बस यात्रा में हो और बस मरम्मत करने वाले मिस्त्री द्वारा उस बस में नकली पुर्जे लगा दिये जाने के कारण, वह बस बीच रास्ते में दुर्घटना हो जाये?
हम अपने वाहन में पेट्रोल या डीजल में घातक जहरीले द्रव्यों की मिलावट के कारण बीच रास्ते में वाहन के इंजन में आग लग जाये?
जब हम या हमारा कोई आत्मीय किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण किसी अस्पताल में भर्ती हो और भ्रष्ट डॉक्टर बिना रिश्वत लिये तत्काल उपचार या ऑपरेशन करने से मना करे दे या लापरवाही, अनियमितता बरते और…?
जब हम या कोई आत्मीय रेल यात्रा करे और रेल की दुर्घटना हो जाये, क्योंकि रेल मरम्मत कार्य करने के लिये जिम्मेदार लोग मरम्मत कार्य किये एवं सुरक्षा सुनिश्चित किये बिना ही वेतन उठाते हों!
सर्वविदित है की जि़म्मेदार पदों पर कितने गैर जि़म्मेदार लोग बैठे है! भ्रष्टाचार के निरंतर बढ़ते हुए प्रभाव के बावजूद यदि हम नाइंसाफी के विरुद्ध, पूरी ताकत के साथ और बेखौफ होकर बोलना शुरू करें, अपनी बात कहने में हिचकें नहीं, तो अभी भी बहुत कुछ ऐसा बचा हुआ है, जिसे बचाया जा सकता है। भ्रष्टाचार के इस रोग के कारण हमारे देश का कितना नुकसान हो रहा है, इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है. पर इतना तो साफ़ दिखता है कि सरकार द्वारा चलाई गयी अनेक योजनाओं का लाभ जरूरतमंद लोगो तक नहीं पहुँच पाता है। इसके लिये सरकारी मशीनरी के साथ ही साथ जनता भी दोषी है। सूचना के अधिकार का कानून बनने के बाद कुछ संवेदनशील लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध सामने आये हैं, मगर इस कानून का दुरूपयोग करने वाले ब्लैकमेलर भी इसकी आड़ में अपनी दुकानदारी भी चलाने लगे हैं। हालांकि कुछ चुनिंदा लोग बढिय़ा प्रयास कर रहे है जिससे पहले की तुलना में स्थिति सुधरी है। जिस देश में लोगों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि ही लोगों का पैसा खाने के लिये तैयार बैठे हों, वहाँ इससे अधिक सुधार कानून द्वारा नहीं हो सकता है। वास्तव में देश से यदि भ्रष्टाचार मिटाना है तो आम जनता को सामने आना होगा। उन्हें यह प्रयत्न करना होगा कि उन्हें भ्रष्ट लोगों को समाज से न सिर्फ बहिष्कृत करना होगा बल्कि उच्च स्तर पर भी भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों का बहिष्कार करना होगा। अपनी आम जरूरतों को पूरा करने एवं शीघ्रता से निपटाने के लिए बंद लिफाफे की प्रवृत्ति से बचना होगा। जब तब लोकतंत्र में आम नागरिक एवं उनके नेतृत्व दोनों ही मिलकर यह नहीं चाहेंगे तब तक भ्रष्टाचार से बच पाना असंभव ही है।

Pt.P.S Tripathi