गरुड़ पुराण के अनुसार किसी व्यक्ति के मरने के उपरान्त उसकी आत्मा 13 दिनों तक अपनों के बीच रहती है
किसी की मृत्यु के बारे में सुनकर एक बात हमेशा जेहन में आती है कि आत्मा कहां जाती है। हिंदू धर्म ग्रंथ गीता में भगवान कृष्ण ने भी कहा है कि आत्मा अजर है वह कभी नहीं मरती। मरता है तो यह शरीर। अगर किसी का जन्म हुआ है तो उसकी मृत्यु निश्चित है और जिसकी मृत्यु हुई है उसका फिर से जन्म लेना भी निश्चित है। अच्छे कर्म करने वाला व्यक्ति ही इस जीवन मरण के चक्र से निकलकर परलोक को जाता है। अह सवाल ये उठता है कि जब आत्मा जीवित है तो क्या वह सब कुछ देखती है? इस सवाल का जवाब गरुड़ पुराण में मिलता है। जिसके अनुसार किसी व्यक्ति के मरने के उपरान्त उसकी आत्मा 13 दिनों तक अपनों के बीच रहती है।
गरुड़ पुराण में इस बात का वर्णन मिलता है कि मृत्यु के बाद आत्मा के साथ कैसा व्यवहार करना है? यह उसके कर्मों पर आधारित होता है। जैसे ही आत्मा शरीर छोड़ती है तो वह 24 घंटों के लिए यमदूतों के साथ रहती है। जिस दौरान उसके द्वारा छोड़े गये देह को पंचतत्व में विलीन करने का कार्य किया जाता है। 24 घंटे पूरे हो जाने के बाद उस आत्मा को 13 दिनों के लिए अपनों के बीच छोड़ दिया जाता है। इन 13 दिनों तक चलने वाली रस्मों के पूरे हो जाने के बाद आत्मा फिर से यमलोक वापस चली जाती है। जहां उसे उसके कर्मों के आधार पर लोक की प्राप्ति होती है जहां उसे अपने कर्मों को भोगना पड़ता है। लोक से मतलब मृत्यु लोक, बैकुंठ या फिर नरक लोक से है।
गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि शवदाह के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। क्योंकि मृत व्यक्ति की आत्मा वहां मौजूद अपने संबंधियों को देख रही होती है और मोह के कारण वह उनके साथ वापस लौटना चाहती है। इसलिए अकसर ये बात कही जाती है कि शवदाह के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। इससे उस आत्मा को इस मोह के जाल से निकलने में आसानी होती है। मृत्यु का यह सार गीता में भी दर्ज है। जिसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कहा गया है कि आत्मा कभी भी नहीं मरती है। वह तो अजर है, अमर है। वह कहते हैं कि शरीर तो आत्मा के लिए एक वस्त्र की तरह है और आत्मा समय-समय पर अपने वस्त्र बदलती रहती है।