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पितृदोष निवारण के लिए करें विशेष उपाय और नारायणबलि-नागबलि…

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पितृदोष निवारण के लिए करें विशेष उपाय और नारायणबलि-नागबलि…

पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पण करने का पर्व है श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष, लेकिन अक्सर हम देखते हैं किकई लोगों के जीवन में परेशानियां समाप्त होने का नाम ही नहीं लेती। वे चाहे जितना भी समय औरधन खर्च कर लें लेकिन काम सफल नहीं होता। ऐसे लोगों की कुंडली में निश्चित रूप से पितृदोष होता है।

नारायण नागबलि को कौन कर सकता है?

नारायणबलि कर्म पौष तथा माघ महीने में तथा गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए।लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णय सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना हीउचित है। नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है।धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्रत्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं। इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है। पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय नारायणबलि- नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए। यह कर्म महाराष्ट्र् में नासिक के समीप स्थित प्रमुख ज्योतिर्लिंग त्रयंबकेश्वर में संपन्न कराया जाता है। संपूर्ण पूजा तीन दिनों की होती क्यों की जाती है यह पूजा शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है। यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है। यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं वे भी यह विधान कर सकते हैं। संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है। यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है। इन कारणों से की जाती है नारायणबलि पूजा जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए। प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है। परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो। आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है। क्या है नारायणबलि और नागबलि नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है।
नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एक साथ ही संपन्न करना पड़ता है।

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वो लोग जो नारायण नागबलि पूजा कर सकते हैं : जो लोग आर्थिक समस्याओं, पारिवारिक स्वास्थ्य समस्याओं, व्यापार में बुरे दौर, विवाह की समस्याओंऔर शिक्षा में बाधा जैसे समस्याओं से पीड़ित हैं।यह पूजा पत्नी, पिता, माता, भाई और यहां तक कि छोटे-मोटे कर्मचारियों के अभिशाप से दूर करने के लिए होती है।एक अच्छे और शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए एक विवाहित जोड़े द्वारा यह पूजा 3 दिनों तक होतीहै।यह अनुष्ठान पूर्वज आत्माओं की इच्छाओं को पूरा करता है और नकारात्मक प्रभावों को दूर करताहै। आत्मा सीधे या परोक्ष रूप से परिवार के सदस्यों के संपर्क में आने की कोशिश करती है और इसलिए अनुष्ठान आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए किया जाता है।

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नारायण नागबली पूजा के लाभ

नारायण नागबली एक बहुत ही आवश्यक पूजा है जो पिछली 7 पीढ़ियों के पूर्वजों को शांति और मोक्ष प्राप्त करने में मदद करती है।यह पूजा संतान प्राप्ति के लिए भी बहुत फायदेमंद है और भूत या बुरी आत्मा से किसी भी तरह की हानि को समाप्त करती है।प्रगति करने और व्यावसायिक जीवन में सफलता और प्रगति प्राप्त करने में भी मदद करती है ।यह पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण है यह चरणधाम यात्रा, पितृसुव से भी बहुत महत्वपूर्ण है।यह पूजा परिवार के सदस्य की अकाल मृत्यु के कारण किसी भी समस्या से मुक्ति दिलाने में मदद करती है। यह परिवार के किसी भी मृत व्यक्ति से परिवार को किसी भी अभिशाप से मुक्त करती है।