उपाय लेख

जानिए,क्या है कालसर्प,और इसके 12 प्रकार

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1.अनन्त नामक कालसर्पयोग-

लग्न से लेकर सप्तम भाव पर्यन्त राहु-केतु के मध्य या केतु-राहु के मध्य फंसे ग्रहों के कारण अनन्त कालसर्पयोग बनता है। ऐसे जातक को व्यक्तिक निर्माण के लिए,आगे बढ़ने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता हैं। इसका प्रभाव इनके गृहस्थ जीवन पर भी पडता है।तथा इनका वैवाहिक जीवन कष्टमय होता है। ऐसा मनुष्य अपने कुटुम्बियों से नुकसान पाता है। मानसिक परेशानी पीछा नहीं छोडती। एक के बाद एक अनन्त मुसीबत आती ही रहती है। अपने व्यक्तित्व निर्माण हेतू निरन्तर संघर्ष बना रहता है।

2.कुलिक नामक कालसर्पयोग –

द्वितीय स्थान से अष्टम पर्यन्त पडे ग्रह स्थिति के कारण कुलिक नामक कालसर्पयोग बनता है। इस योग के कारण धन को लेकर जातक के जीवन में संघर्ष रहता है। अपयश,परेशानियों तथा खर्च की बाहुल्यता रहती है। पैसा पास में टिकता नहीं। स्वास्थ्य में नरमा-गरमी बनी रहती है। यह योग ज्यादा पीडादायक है। दिमाग गर्म रहता है। निरन्तर परेशानी के कारण व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता हैं। धन प्राप्ति हेतू किये गये प्रयासों में सफलता नहीं मिलती। व्यक्ति कुलिन होते हुए भी कंगाल हो जाता है।

3.वासुकी नामक कालसर्पयोग –

तृतीय से नवम पर्यन्त वाली ग्रह-स्थिति के कारण वासुकी नामक कालसर्पयोग बनता है। इस योग के कारण जातक को कुटुम्ब,भाई-बहनों की ओर से परेशानी रहेती है। मित्रों से धोखा मिलता है।नौकरी-धन्धें में उलझने बनी रहती है। भाग्य का पूर्ण सुख नहीं मिलता। धन कमाता है पर बदनामी साथ लगी रहती है। आत्मीय परिजनो के कारण कोई न कोई मुसीबत एंव मानसिक तनाव बना रहता है। किसी काम में वंश नहीं मिलता।यश,पद -प्रतिष्ठा व पराक्रम प्राप्ति के लिए संघर्ष बना रहता है।

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4.शंखपाल नामक कालसर्पयोग –

चतुर्थ से लेकर दसम स्थान पर्यन्त राहु-केतु के मध्य कैद ग्रह-स्थिति के कारण शंखपाल नामक कालसर्पयोग बनता है। इस योग के कारण सुख में बाधा माता,वाहन,नौक-चाकर को लेकर परेशानी रहेगी। पिता या पति की ओर से कष्ट,विद्याध्ययन में तकलीफ। व्यापार-व्ययसाय में नुकशान की सम्भावना बनी रहती है। अपने ही आदमी जिस पर ज्यादा भरोसा है विश्वास घात करेगे। दिमागी परेशानी एवं तनाव की स्थिति रहेगी। कितना प्रयन्त करले पर सुख प्राप्ति में निरन्तर बाधा व संघर्ष की स्थिति रहेगी।

5.पद्म नामक कालसर्पयोग-

पंचम स्थान से लेकर एकादश पर्यन्त ग्रह स्थिति के कारण पद्म नामक कालसर्पयोग बनता है। ऐसे जातक के विद्याध्यन में रूकावट आती है। सन्तान पक्ष में रूकावट होती है। पुत्र सन्तान की चिन्ता रहती है। गुप्त शत्रु बहुत रहते है। परिवार में अपयश। जीवनसाथी विश्वासपात्र नहीं मिलता,वंशवृद्धि की चिन्ता विशेष रहती है। लाभ प्राप्ति में रूकावट,निरन्तर चिन्ता व कष्ट के कारण जीवन संघर्षमय बना रहता है। जिस कार्य में हाथ डालों असफलता हाथ लगती है।

6.महापद्म नामक कालसर्पयोग-

षष्टम स्थान से व्यय स्थान तक के ग्रहों की स्थिति के कारण महापद्म नामक कालसर्पयोग बनता है। इस योग के कारण व्यक्ति रोगी रहता है। यात्राऐं बहुत करता है पर सफलता मिलती नहीं। जातक से स्वंय का चरित्र संदेहास्पद रहता है। आत्मबल कमजोर रहता है। तथा नैराश्य की भावना विशेष बनी रहती है। चाहे कितना ईलाज कराये,बीमारी ठीक नही होती।कार्य स्थिरता नही रहती। गुप्त शत्रु सदा परेशान कराये,बीमारी ठीन नही होती। कार्य में स्थिरता नहीं रहती। गुप्त शत्रु सदा परेशान करते रहेगे। कार्य में बाधा एवं निरन्तर संघर्ष के कारण जीवन कष्टमय रहेगा।

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7.तक्षक नामक कालसर्पयोग-

सप्तम स्थान से लग्न प्रथम भाव तक राहु-केतु के बीच फंसे ग्रहों के कारण तक्षक नामक कालसर्पयोग बनता है। ऐसे व्यक्ति का वैवाहिक जीवन तनावपूर्ण रहता है। जीवन साथी से बिछोह। प्रेम प्रसंग में असफलता मिलती है। बनते कार्यों में रूकावट आती है। बडा पद मिलते-मिलते रह जाता है। गुप्त प्रसंग एंव भागीदारों से धोखा होने की संभावना अधिक रहती है। कोई कारण से मानसिक परेशानी व चिन्ता पीछा नहीं छोड़ती।

8.कर्कोटक नामक कालसर्पयोग –

अष्टम स्थान से लेकर धनस्थान तितीय भाव तक पडने वाली ग्रहस्थिति के कारण कर्कोटक नामक कालसर्पयोग बनता है। इस योग के कारण जातक को अल्पआयु,दुर्घटना का भय रहता है। स्वास्थ्य की चिन्ता बनी रहती है। बात-बात पर धनहानि तथा उधार हुआ पैसा डूब जाता है। शत्रु बहुत होते है। वाणी पर नियन्त्रण रहता है। वाणी दूषित रहती है। परिश्रम बहुत करते है। पर उनका फल मिलता नहीं। कुटुम्ब में अपयश एवं आत्मीय परिजनों में सन्मान नहीं मिलता।

9.शंखचुड नामक कालसर्पयोग-

नवम स्थान से तृतीय स्थान पर्यन्त पडने वाली ग्रह स्थिति के कारण शंखचुड नामक कालसर्पयोग बनता है। इसके कारण भाग्योदय में परेशाानी,नौकरी व आगे बढने में रूकावटे। मित्रों द्वारा कपट-व्यवहार,व्यापार में घाटा,राज्यच्युत,नौकरी में अवन्नति का भय बना रहता है। अदालत से दण्ड की स्थिति भी बन सकती है। बहनोई या मामापक्ष से कपट व्यवहार होगा। कोई न कोई चिन्ता एवं परेशानी शरीर को लगी रहेगी। फूटे घडे में जिस प्रकार से पानी नहीं रहता उसी प्रकार से भाग्योदय हेतु किये गये प्रयत्नों में सफलता नहीं मिलती।

10.घातक नामक कालसर्पयोग –

दसम स्थान से चतुर्थ स्थान पर्यन्त ग्र्रसित ग्रहों के कारण घातक नामक कालसर्पयोग की सृष्टि होती है। इस योग के कारण व्यापार में घाटा,भागीदारी में मनमुटाव,सरकारी अधिकारियों से अनबन तथा सुख प्राप्ति के लिए भारी संघर्ष करना पड़ता है। परिवार में विग्रह रहता है। निरन्तर चिन्ता व परेशानी के कारण व्यक्ति का व्यवसायिक एवं गृहस्थ जीवन कष्टमय रहता है।

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11. विषधर नामक कालसर्पयोग –

एकादश स्थान से पंचम स्थान पर्यन्त राहु/केतु के मध्य होने वाली ग्रहस्थिति से ‘विषधर‘ नामक कालसर्पयोग की निष्पत्ति होती है। इस योग के कारण ज्ञानार्जन मेें दुविधा होती है। उच्चशिक्षा में बाधा,स्मरण शक्ति का हृास होता है। दादा-दादी,नाना-नानी,से पूर्व लाभ की आशा होते हुये भी हानि होती है। काका व चचेरे भाईयों से झगड़ा रहता है। सन्तान बीमार रहते है। लाभ में भयंकर बाधा रहती है। व्यक्ति चिन्तातुर रहता है। तथा धन के मामले को लेकर बदनामी या संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। परिवार में विग्रह रहता है।

12.शेषनाग नामक कालसर्पयोग –

द्वादश स्थान से षष्टम स्थान पर्यन्त पडने वाले ग्रह योग के कारण ‘शेषनाग‘ नामक कालसर्पयोग की सृष्टि होती है। इस योग के कारण जन्मस्थान व देश से दुरी,सदैव संधर्षशील की स्थिति,नेत्रपीडा,निंदा न आना तथा अन्तिम जीवन रहस्यपूर्ण बना रहता है। ऐसे जातक के गुप्त शत्रु बहुत होते है। परन्तु ऐसे जातक को मृत्यु के उपरान्त की ख्याति मिलती है। निराशा अधिक रहती है। मनचाहा काम पूरा नहीं होता है। यदि कार्य होता है तो बहुत देरी से होता है। मानासिक उद्विग्नता के कारण दिल-दिमाग परेशान रहता है। धन की भारी चिन्ता एवं कर्जा उतारने हेतू किये गये प्रयासों में सफलता नहीं मिलती।