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नान्दी श्राद्ध विधि और नियम

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नान्दी श्राद्ध

गर्भाधान आदि संस्कार, बावड़ी, देवता की प्रतिष्ठा आदि पवित्र कार्यों में संन्यासदीक्षा, काम्य वृषोत्सर्ग कर्म, गृहप्रवेश, तीर्थयात्रा, श्रावणीकर्म, सर्पबलि और आश्विण,मार्गशीर्ष की पूर्णिमा की पाकसंस्था के प्रथम आरम्भ में नान्दीमुख श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।गौरी आदि मातृकाओं का पूजन नान्दीश्राद्ध का ही अंग समझना चाहिए। जिस कर्म में नान्दीश्राद्ध न किया जाय वहां मातृका पूजन भी नहीं होता है।

नान्दी श्राद्ध पितृगणों की तृप्ति एवं वंशवृद्धि हेतू किया जाने वाला एक प्रकार का वाचिक श्राद्ध है, इसमें पिण्डदान नहीं होता। नान्दी श्राद्ध करने से पितरों का आर्शीवाद प्राप्त होता है।पितर बन्धन से छुटते हैं। पितर शक्तिशाली होकर अपनी सन्तान को वरदान देते हैं।

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आयुः कीर्ति बलं तेजो,धनं पुत्रं पशुं स्त्रियः।
ददन्ति पितरस्यतस्य,आरोग्यं नात्रं संशयः।।

नान्दीश्राद्ध के कुछ नियम –

1. इस श्राद्ध में ‘स्वधा‘ की जगह ‘स्वाहा‘ शब्द का उच्चारण होता है।
2. इसमें सब कर्म ‘सव्य‘ (दक्षिण यज्ञोपवीत ) से करना।
3. नान्दीश्राद्ध मंे कुश की जगह मूलरहित दर्भ ग्रहण करना चाहिए।
4. युग्म ब्राह्मण,युग्म दर्भ, प्रत्येक वस्तु युग्म रूप से लेना चाहिए।
5. इस कार्य में यजमान उत्तराभिमुख और ब्राह्मण पूर्वाभिमुख अथवा यजमान पूर्वाभिमुख तथा ब्राह्मण उत्तराभिमुख बैठे।
6. इस श्राद्ध में पिण्डों के विषय में दही,मधु,बेेर, दाख व आंवले काम में लिये जाते है।
7. प्रथमा विभक्ति को अन्त में लगाकर संकल्प किया जाता है।
8. सर्वत्र उच्चारण के विषय में नाम व गोत्र का उच्चारण नहीं किया जाता। गोत्र की जगह ‘कश्यप‘ गोत्र और नाम की जगह ‘नारायण‘ नाम का उच्चारण किया जाता है।
9. इस श्राद्ध में लालपुष्पों की माला काम नहीं आती। मालती,मल्लिका, केतकी और कमल ग्राह्य है।
10. इस श्राद्ध में अपसव्य नहीं होता, तिल एवं पितृतीर्थ जल भी काम में नहीं लिया जाता।
11. श्राद्ध का अंग रूप तर्पण भी इसमें नहीं किया जाता है।
12. नान्दीश्राद्ध मे पिता,दादा और परदादा ( प्रपितामह ) तथा माता, नाना, परनाना ( वृद्धप्रमातामह ) को स्मरण किया जाता है। उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। इस वर्ग में जीवित व्यक्ति जिसका पार्वण न हो, उस पार्वण के विषय का श्लोक एक देश न पढ़े।
13. नान्दीश्राद्ध में कपूर वगैरा से आरती नहीं होती।
14. जब नान्दीश्राद्ध का प्रयोग चलता हो तब यजमान पत्नी को अपने पति के साथ न बैठकर अपने आसन से उठकर अन्यत्र दूर बैठना चाहिए।