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स्त्री और पुरुष संतान प्राप्ति की कामना के लिए विवाह करते हैं] वंश परंपरा की वृद्धि के लिए एव परमात्मा को श्रृष्टि रचना में सहयोग देने के लिए यह आवश्यक भी हैa] पुरुष पिता बन कर तथा स्त्री माता बन कर ही पूर्णता का अनुभव करते हैं] धर्म शास्त्र भी यही कहते हैं कि संतान हीन व्यक्ति के यज्ञ दान एव अन्य सभी पुण्यकर्म निष्फल हो जाते हैंA महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है कि पुत्र ही पिता को पुत् नामक नर्क में गिरने से बचाता है] मुनिराज अगस्त्य ने संतानहीनता के कारण अपने पितरों को अधोमुख स्थिति में देखा और विवाह करने के लिए प्रवृत्त हुए प्रश्न मार्ग के अनुसार संतान प्राप्ति कि कामना से ही विवाह किया जाता है जिस से वंश वृद्धि होती है और पितर प्रसन्न होते हैंA
जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया है भाग्य में संतान सुख है या नहीं पुत्र होगा या पुत्री अथवा दोनों का सुख प्राप्त होगा एo संतान कैसी निकलेगी एo संतान सुख कब मिलेगा और संतान सुख प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं और उनका क्या उपचार है इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति और पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत व गहन विश्लेषण से प्राप्त हो सकता है
जन्म कुंडली के किस भाव से विचार करें
जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो एo उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है] भाव स्थित राशि व उसका स्वामी एo भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है] पति एव पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए] पंचम भाव से प्रथम संतान का एo उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए] उस से आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है
प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया है भाग्य में संतान सुख है या नहीं पुत्र होगा या पुत्री अथवा दोनों का सुख प्राप्त होगा एo संतान कैसी निकलेगी एo संतान सुख कब मिलेगा और संतान सुख प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं और उनका क्या उपचार है इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति और पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत व गहन विश्लेषण से प्राप्त हो सकता है
जन्म कुंडली के किस भाव से विचार करें
जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो एo उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है] भाव स्थित राशि व उसका स्वामी एo भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है] पति एव पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए] पंचम भाव से प्रथम संतान का एo उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए] उस से आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है
संतान सुख प्राप्ति के योग
पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु एo शुक्र एo बुध एo शुक्ल पक्ष का चन्द्र स्व मित्र उच्च राशि नवांश में स्थित हों या इनकी पूर्ण दृष्टि भाव या भाव स्वामी पर हो एo भाव स्थित राशि का स्वामी स्व मित्र एo उच्च राशि नवांश का लग्न से केन्द्र एo त्रिकोण या अन्य शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो एo संतान कारक गुरु भी स्व एमित्र एउच्च राशि दृ नवांश का लग्न से शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो ए गुरु से पंचम भाव भी शुभ युक्त दृदृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होती है द्य शनि मंगल आदि पाप ग्रह भी यदि पंचम भाव में स्व एमित्र एउच्च राशि दृ नवांश के हों तो संतान प्राप्ति करातें हैं द्य पंचम भाव एपंचमेश तथा कारक गुरु तीनों जन्मकुंडली में बलवान हों तो संतान सुख उत्तम एदो बलवान हों तो मध्यम एएक ही बली हो तो सामान्य सुख होता है सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में बलवान हो एo शुभ स्थान पर हो तथा सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की अनुभूति होती है द्य प्रसिद्ध फलित ग्रंथों में वर्णित कुछ प्रमुख योग निम्नलिखित प्रकार से हैं जिनके जन्मकुंडली में होने से संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती हैA
१ जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो]
२ लग्नेश पंचम भाव में मित्र एo उच्च राशि नवांश का हो]
३ पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो]
४ पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो द्य
५ जन्म कुंडली में गुरु स्व एo मित्र एउच्च राशि नवांश का लग्न से शुभ भाव में स्थित हो द्य
६ एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो कर स्थित हों द्य
संतान सुख हीनता के योग
लग्न एवम चंद्रमा से पंचम भाव में निर्बल पाप ग्रह अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में स्थित हों एपंचम भाव पाप कर्तरी योग से पीड़ित हो ए पंचमेश और गुरु अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में लग्न से 6ए8 12 वें भाव में स्थित हों ए गुरु से पंचम में पाप ग्रह हो ए षष्टेश अष्टमेश या द्वादशेश का सम्बन्ध पंचम भाव या उसके स्वामी से होता हो ए सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में 6ए8 12 वें भाव में अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में स्थित हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है द्य जितने अधिक कुयोग होंगे उतनी ही अधिक कठिनाई संतान प्राप्ति में होगी द्य
पंचम भाव में अल्पसुत राशि ; वृष एसिंह कन्या एवृश्चिक द्ध हो तथा उपरोक्त योगों में से कोई योग भी घटित होता हो तो कठिनता से संतान होती है द्
गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पंचम स्थान शुभ बिंदु से रहित हो तो संतानहीनता होती है द्य
सप्तमेश निर्बल हो कर पंचम भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है द्य
गुरु एलग्नेश एपंचमेश एसप्तमेश चारों ही बलहीन हों तो अन्पतत्यता होती है द्य
गुरु एलग्न व चन्द्र से पांचवें स्थान पर पाप ग्रह हों तो अन्पतत्यता होती है द्य
पुत्रेश पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पुत्र स्थान पर पाप ग्रह हो एशुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अन्पतत्यता होती है द्
पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु एo शुक्र एo बुध एo शुक्ल पक्ष का चन्द्र स्व मित्र उच्च राशि नवांश में स्थित हों या इनकी पूर्ण दृष्टि भाव या भाव स्वामी पर हो एo भाव स्थित राशि का स्वामी स्व मित्र एo उच्च राशि नवांश का लग्न से केन्द्र एo त्रिकोण या अन्य शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो एo संतान कारक गुरु भी स्व एमित्र एउच्च राशि दृ नवांश का लग्न से शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो ए गुरु से पंचम भाव भी शुभ युक्त दृदृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होती है द्य शनि मंगल आदि पाप ग्रह भी यदि पंचम भाव में स्व एमित्र एउच्च राशि दृ नवांश के हों तो संतान प्राप्ति करातें हैं द्य पंचम भाव एपंचमेश तथा कारक गुरु तीनों जन्मकुंडली में बलवान हों तो संतान सुख उत्तम एदो बलवान हों तो मध्यम एएक ही बली हो तो सामान्य सुख होता है सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में बलवान हो एo शुभ स्थान पर हो तथा सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की अनुभूति होती है द्य प्रसिद्ध फलित ग्रंथों में वर्णित कुछ प्रमुख योग निम्नलिखित प्रकार से हैं जिनके जन्मकुंडली में होने से संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती हैA
१ जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो]
२ लग्नेश पंचम भाव में मित्र एo उच्च राशि नवांश का हो]
३ पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो]
४ पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो द्य
५ जन्म कुंडली में गुरु स्व एo मित्र एउच्च राशि नवांश का लग्न से शुभ भाव में स्थित हो द्य
६ एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो कर स्थित हों द्य
संतान सुख हीनता के योग
लग्न एवम चंद्रमा से पंचम भाव में निर्बल पाप ग्रह अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में स्थित हों एपंचम भाव पाप कर्तरी योग से पीड़ित हो ए पंचमेश और गुरु अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में लग्न से 6ए8 12 वें भाव में स्थित हों ए गुरु से पंचम में पाप ग्रह हो ए षष्टेश अष्टमेश या द्वादशेश का सम्बन्ध पंचम भाव या उसके स्वामी से होता हो ए सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में 6ए8 12 वें भाव में अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में स्थित हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है द्य जितने अधिक कुयोग होंगे उतनी ही अधिक कठिनाई संतान प्राप्ति में होगी द्य
पंचम भाव में अल्पसुत राशि ; वृष एसिंह कन्या एवृश्चिक द्ध हो तथा उपरोक्त योगों में से कोई योग भी घटित होता हो तो कठिनता से संतान होती है द्
गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पंचम स्थान शुभ बिंदु से रहित हो तो संतानहीनता होती है द्य
सप्तमेश निर्बल हो कर पंचम भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है द्य
गुरु एलग्नेश एपंचमेश एसप्तमेश चारों ही बलहीन हों तो अन्पतत्यता होती है द्य
गुरु एलग्न व चन्द्र से पांचवें स्थान पर पाप ग्रह हों तो अन्पतत्यता होती है द्य
पुत्रेश पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पुत्र स्थान पर पाप ग्रह हो एशुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अन्पतत्यता होती है द्
पुत्र या पुत्री योग
सूर्य एमंगलए गुरु पुरुष ग्रह हैं द्य शुक्र एचन्द्र स्त्री ग्रह हैं द्य बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं द्य संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र तथा स्त्री ग्रह होने पर पुत्री का सुख मिलता है द्य शनि और बुध योग कारक हो कर विषम राशि में हों तो पुत्र व सम राशि में हो तो पुत्री प्रदान करते हैं द्य सप्तमान्शेष पुरुष ग्रह हो तो पुत्र तथा स्त्री ग्रह हो तो कन्या सन्तिति का सुख मिलता है द्य गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पांचवें स्थान पर पुरुष ग्रह बिंदु दायक हों तो पुत्र स्त्री ग्रह बिंदु दायक हो तो पुत्री का सुख प्राप्त होता है द्यपुरुष और स्त्री ग्रह दोनों ही योग कारक हों तो पुत्र व पुत्री दोनों का ही सुख प्राप्त होता है द्य पंचम भाव तथा पंचमेश पुरुष ग्रह के वर्गों में हो तो पुत्र व स्त्री ग्रह के वर्गों में हो तो कन्या सन्तिति की प्रधानता रहती है द्य
पंचमेश के भुक्त नवांशों में जितने पुरुष ग्रह के नवांश हों उतने पुत्र और जितने स्त्री ग्रह के नवांश हों उतनी पुत्रियों का योग होता है द्य जितने नवांशों के स्वामी कुंडली में अस्त एनीच दृशत्रु राशि में पाप युक्त या दृष्ट होंगे उतने पुत्र या पुत्रियों की हानि होगी द्य
संतान बाधा के कारण व निवारण के उपाय
सर्वप्रथम पति और पत्नी की जन्म कुंडलियों से संतानोत्पत्ति की क्षमता पर विचार किया जाना चाहिए द्यजातकादेशमार्ग तथा फलदीपिका के अनुसार पुरुष की कुंडली में सूर्य स्पष्ट एशुक्र स्पष्ट और गुरु स्पष्ट का योग करें द्यराशि का योग 12 से अधिक आये तो उसे 12 से भाग दें द्यशेष राशि ; बीज द्धतथा उसका नवांश दोनों विषम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमताएएक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों सम हों तो अक्षमता होती है द्य इसी प्रकार स्त्री की कुंडली से चन्द्र स्पष्ट एमंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट से विचार करें द्यशेष राशि; क्षेत्र द्ध तथा उसका नवांश दोनों सम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमताएएक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों विषम हों तो अक्षमता होती है द्य बीज तथा क्षेत्र का विचार करने से अक्षमता सिद्ध होती हो तथा उन पर पाप युति या दृष्टि भी हो तो उपाय करने पर भी लाभ की संभावना क्षीण होती है एशुभ युति दृष्टि होने पर शान्ति उपायों से और औषधि उपचार से लाभ होता है द्य शुक्र से पुरुष की तथा मंगल से स्त्री की संतान उत्पन्न करने की क्षमता का विचार करें द्य पुरुष व स्त्री जिसकी अक्षमता सिद्ध होती हो उसे किसी कुशल वैद्य से परामर्श करना चाहिए द्य
सूर्यादि ग्रह नीच एशत्रु आदि राशि नवांश मेंएपाप युक्त दृष्ट एअस्त एत्रिक भावों का स्वामी हो कर पंचम भाव में हों तो संतान बाधा होती है द्य योग कारक ग्रह की पूजा एदान एहवन आदि से शान्ति करा लेने पर बाधा का निवारण होता है और सन्तिति सुख प्राप्त होता है द्य फल दीपिका के अनुसार रू.
एवं हि जन्म समये बहुपूर्वजन्मकर्माजितं दुरितमस्य वदन्ति तज्ज्ञाः द्य
ततद ग्रहोक्त जप दान शुभ क्रिया भिस्तददोषशान्तिमिह शंसतु पुत्र सिद्धयै द्यद्य
अर्थात जन्म कुंडली से यह ज्ञात होता है कि पूर्व जन्मों के किन पापों के कारण संतान हीनता है द्य बाधाकारक ग्रहों या उनके देवताओं का जाप एदान एहवन आदि शुभ क्रियाओं के करने से पुत्र प्राप्ति होती है द्य
सूर्य संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पितृ पीड़ा है द्य पितृ शान्ति के लिए गयाजी में पिंड दान कराएं द्य हरिवंश पुराण का श्रवण करें द्यसूर्य रत्न माणिक्य धारण करें द्य रविवार को सूर्योदय के बाद गेंहुएगुड एकेसर एलाल चन्दन एलाल वस्त्र एताम्बाए सोना तथा लाल रंग के फल दान करने चाहियें द्य सूर्य के बीज मन्त्र ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः के 7000 की संख्या में जाप करने से भी सूर्य कृत अरिष्टों की निवृति हो जाती है द्य गायत्री जाप से ए रविवार के मीठे व्रत रखने से तथा ताम्बे के पात्र में जल में लाल चन्दन एलाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य को अर्घ्य देने पर भी शुभ फल प्राप्त होता है द्य विधि पूर्वक बेल पत्र की जड़ को रविवार में लाल डोरे में धारण करने से भी सूर्य प्रसन्न हो कर शुभ फल दायक हो जाते हैं द्य
चन्द्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण माता का शाप या माँ दुर्गा की अप्रसन्नता है जिसकी शांति के लिए रामेश्वर तीर्थ का स्नान एगायत्री का जाप करें द्य श्वेत तथा गोल मोती चांदी की अंगूठी में रोहिणी एहस्त एश्रवण नक्षत्रों में जड़वा कर सोमवार या पूर्णिमा तिथि में पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप एपुष्प एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्य
सोमवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र का ११००० संख्या में जाप करें द्यसोमवार को चावल एचीनी एआटाए श्वेत वस्त्र एदूध दही एनमक एचांदी इत्यादि का दान करें द्य
मंगल संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण भ्राता का शाप एशत्रु का अभिचार या श्री गणपति या श्री हनुमान की अवज्ञा होता है जिसकी शान्ति के लिए प्रदोष व्रत तथा रामायण का पाठ करें द्यलाल रंग का मूंगा सोने या ताम्बे की अंगूठी में मृगशिरा एचित्रा या अनुराधा नक्षत्रों में जड़वा कर मंगलवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए लाल पुष्पए गुड एअक्षत आदि से पूजन कर लें
मंगलवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र का १०००० संख्या में जाप करें द्य मंगलवार को गुड शक्कर एलाल रंग का वस्त्र और फल एताम्बे का पात्र एसिन्दूर एलाल चन्दन केसर एमसूर की दाल इत्यादि का दान करें द्य
बुध संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण मामा का शाप एतुलसी या भगवान विष्णु की अवज्ञा है जिसकी शांति के लिए विष्णु पुराण का श्रवण एविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें द्यहरे रंग का पन्ना सोने या चांदी की अंगूठी में आश्लेषाएज्येष्ठा एरेवती नक्षत्रों में जड़वा कर बुधवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की कनिष्टिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए लाल पुष्पए गुड एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्य बुधवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र का ९००० संख्या में जाप करें द्य बुधवार को कर्पूरएघीए खांडए एहरे रंग का वस्त्र और फल एकांसे का पात्र एसाबुत मूंग इत्यादि का दान करें द्य तुलसी को जल व दीप दान करना भी शुभ रहता है द्य
बृहस्पति संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गुरु एब्राह्मण का शाप या फलदार वृक्ष को काटना है जिसकी शान्ति के लिए पीत रंग का पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु एविशाखा एपूर्व भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए पीले पुष्पए हल्दी एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्यपुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं द्य केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें द्यगुरूवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र का १९००० की संख्या में जाप करें द्य गुरूवार को घीए हल्दीए चने की दाल एबेसन पपीता एपीत रंग का वस्त्र एस्वर्णए इत्यादि का दान करें द्यफलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने और गुरु की पूजा सत्कार से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं द्य
शुक्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गौ .ब्राह्मण एकिसी साध्वी स्त्री को कष्ट देना या पुष्प युक्त पौधों को काटना है जिसकी शान्ति के लिए गौ दान एब्राह्मण दंपत्ति को वस्त्र फल आदि का दान एश्वेत रंग का हीरा प्लैटिनम या चांदी की अंगूठी में पूर्व फाल्गुनी एपूर्वाषाढ़ व भरणी नक्षत्रों में जड़वा कर शुक्रवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए श्वेत पुष्पए अक्षत आदि से पूजन कर लें
हीरे की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न श्वेत जरकन भी धारण कर सकते हैं द्यशुक्रवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र का १६ ००० की संख्या में जाप करें द्य शुक्रवार को आटा एचावल दूध एदहीए मिश्री एश्वेत चन्दन एइत्रए श्वेत रंग का वस्त्र एचांदी इत्यादि का दान करें द्य
शनि संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पीपल का वृक्ष काटना या प्रेत बाधा है जिसकी शान्ति के लिए पीपल के पेड़ लगवाएंएरुद्राभिषेक करें एशनि की लोहे की मूर्ती तेल में डाल कर दान करेंद्य नीलम लोहे या सोने की अंगूठी में पुष्य एअनुराधा एउत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए नीले पुष्पए काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लेंद्य
नीलम की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न संग्लीली ए लाजवर्त भी धारण कर सकते हैं द्य काले घोड़े कि नाल या नाव के नीचे के कील का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है द्यशनिवार के नमक रहित व्रत रखें द्य ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र का २३००० की संख्या में जाप करें द्य शनिवार को काले उडद एतिल एतेल एलोहाएकाले जूते एकाला कम्बल ए काले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें द्यश्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना भी शनि दोष शान्ति का उत्तम उपाय है द्य
दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च द्यनमः कालाग्नि रूपाय कृतान्ताय च वै नमः द्यद्य
नमो निर्मोसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च द्य नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते द्यद्य
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः द्य नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट नमोस्तुतेद्यद्य
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरिक्ष्याय वै नमःद्य नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने द्यद्य
नमस्ते सर्व भक्षाय बलि मुख नमोस्तुतेद्यसूर्य पुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च द्यद्य
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुतेद्य नमो मंद गते तुभ्यम निंस्त्रिशाय नमोस्तुते द्यद्य
तपसा दग्धदेहाय नित्यम योगरताय चद्य नमो नित्यम क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमःद्यद्य
ज्ञानचक्षुर्नमस्ते ऽस्तु कश्यपात्मजसूनवे द्यतुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात द्यद्य
देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा द्य त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतःद्यद्य
प्रसादं कुरु में देव वराहोरऽहमुपागतः द्यद्य
पद्म पुराण में वर्णित शनि के दशरथ को दिए गए वचन के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक शनि की लोह प्रतिमा बनवा कर शमी पत्रों से उपरोक्त स्तोत्र द्वारा पूजन करके तिल एकाले उडद व लोहे का दान प्रतिमा सहित करता है तथा नित्य विशेषतः शनिवार को भक्ति पूर्वक इस स्तोत्र का जाप करता है उसे दशा या गोचर में कभी शनि कृत पीड़ा नहीं होगी और शनि द्वारा सदैव उसकी रक्षा की जायेगी द्य
राहु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण सर्प शाप है जिसकी शान्ति के लिए नाग पंचमी में नाग पूजा करें एगोमेद पञ्च धातु की अंगूठी में आर्द्राएस्वाती या शतभिषा नक्षत्र में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए नीले पुष्पए काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लेंद्यरांगे का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है द्य ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र का १८००० की संख्या में जाप करें द्य शनिवार को काले उडद एतिल एतेल एलोहाएसतनाजा एनारियल ए रांगे की मछली एनीले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें द्य मछलियों को चारा देना भी राहु शान्ति का श्रेष्ठ उपाय है द्य
केतु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण ब्राह्मण को कष्ट देना है जिसकी शान्ति के लिए ब्राह्मण का सत्कार करें ए सतनाजा व नारियल का दान करें और ॐ स्रां स्रीं स्रों सः केतवे नमः का १७००० की संख्या में जाप करें द्य
संतान बाधा दूर करने के कुछ शास्त्रीय उपाय
जन्म कुंडली में अन्पत्तयता दोष स्थित हो या संतान भाव निर्बल एवम पीड़ित होने से संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो निम्नलिखित पुराणों तथा प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित शास्त्रोक्त उपायों में से किसी एक या दो उपायों को श्रद्धा पूर्वक करें द्य आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी द्य
1ण् संकल्प पूर्वक शुक्ल पक्ष से गुरूवार के १६ नमक रहित मीठे व्रत रखें द्य केले की पूजा करें तथा ब्राह्मण बटुक को भोजन करा कर यथा योग्य दक्षिणा दें द्य १६ व्रतों के बाद उद्यापन कराएं ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं गुरुवे नमः का जाप करें द्य
2ण् पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी में गुरु रत्न पुखराज स्वर्ण में विधिवत धारण करें द्य
3ण् यजुर्वेद के मन्त्र दधि क्राणों ; २३ध्३२द्ध से हवन कराएं द्य
4ण् अथर्व वेद के मन्त्र अयं ते योनि ; ३ध्२०ध्१द्ध से जाप व हवन कराएं द्य
5 संतान गोपाल स्तोत्र
ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः द्य
उपरोक्त मन्त्र की १००० संख्या का जाप प्रतिदिन १०० दिन तक करें द्य तत्पश्चात १०००० मन्त्रों से हवनए१००० से तर्पण ए१०० से मार्जन तथा १० ब्राह्मणों को भोजन कराएं द्य
6 संतान गणपति स्तोत्र
श्री गणपति की दूर्वा से पूजा करें तथा उपरोक्त स्तोत्र का प्रति दिन ११ या २१ की संख्या में पाठ करें द्य
7ण् संतान कामेश्वरी प्रयोग
उपरोक्त यंत्र को शुभ मुहूर्त में अष्ट गंध से भोजपत्र पर बनाएँ तथा षोडशोपचार पूजा करें तथा ॐ क्लीं ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवति संतान कामेश्वरी गर्भविरोधम निरासय निरासय सम्यक शीघ्रं संतानमुत्पादयोत्पादय स्वाहा एमन्त्र का नित्य जाप करें द्य ऋतु काल के बाद पति और पत्नी जौ के आटे में शक्कर मिला कर ७ गोलियाँ बना लें तथा उपरोक्त मन्त्र से २१ बार अभिमन्त्रित करके एक ही दिन में खा लें तो लाभ होगा द्य द्य
8ण्पुत्र प्रद प्रदोष व्रत ; निर्णयामृत द्ध
शुक्ल पक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार हो उस दिन से साल भर यह प्रदोष व्रत करेंद्यप्रातःस्नान करके पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत का संकल्प करें द्य सूर्यास्त के समय शिवलिंग की भवाय भवनाशाय मन्त्र से पूजा करें जौ का सत्तू एघी एशक्कर का भोग लगाएं द्य आठ दिशाओं में दीपक रख कर आठ .आठ बार प्रणाम करें द्य नंदी को जल व दूर्वा अर्पित करें तथा उसके सींग व पूंछ का स्पर्श करें द्य अंत में शिव पार्वती की आरती पूजन करें द्य
9ण् पुत्र व्रत ;वराह पुराण द्ध
भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को उपवास करके विष्णु का पूजन करें द्य अगले दिन ओम् क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी जन वल्लभाय स्वाहा मन्त्र से तिलों की १०८ आहुति दे कर ब्राह्मण भोजन कराएं द्य बिल्व फल खा कर षडरस भोजन करें द्य वर्ष भर प्रत्येक मास की सप्तमी को इसी प्रकार व्रत रखने से पुत्र प्राप्ति होगी
स्त्री की कुंडली में जो ग्रह निर्बल व पीड़ित होता है उसके महीने में गर्भ को भय रहता है अतः उस महीने के अधिपति ग्रह से सम्बंधित पदार्थों का निम्न लिखित सारणी के अनुसार दान करें जिस से गर्भ को भय नहीं रहेगा
गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनका दान
गर्भाधान से नवें महीने तक प्रत्येक मास के अधिपति ग्रह के पदार्थों का उनके वार में दान करने से गर्भ क्षय का भय नहीं रहता द्य गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनके दान निम्नलिखित हैं कृकृ
प्रथम मास कृ दृ शुक्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा शुक्रवार को द्ध
द्वितीय मास कृमंगल ; गुड एताम्बा एसिन्दूर एलाल वस्त्र ए लाल फल व दक्षिणा मंगलवार को द्ध
तृतीय मास कृ गुरु ; पीला वस्त्र एहल्दी एस्वर्ण ए पपीता एचने कि दाल ए बेसन व दक्षिणा गुरूवार को द्ध
चतुर्थ मास कृ सूर्य ; गुड ए गेहूं एताम्बा एसिन्दूर एलाल वस्त्र ए लाल फल व दक्षिणा रविवार को द्ध
पंचम मास कृ. चन्द्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को द्ध
षष्ट मास कृ दृ.शनि ; काले तिल एकाले उडद एतेल एलोहा एकाला वस्त्र व दक्षिणा शनिवार को द्ध
सप्तम मास कृदृ बुध ; हरा वस्त्र एमूंग एकांसे का पात्र एहरी सब्जियां व दक्षिणा बुधवार को द्ध
अष्टम मास कृ. गर्भाधान कालिक लग्नेश ग्रह से सम्बंधित दान उसके वार में द्ययदि पता न हो तो अन्न एवस्त्र व फल का दान अष्टम मास लगते ही कर दें द्य
नवं मास कृ. चन्द्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को द्ध
संतान सुख की प्राप्ति के समय का निर्धारण
पति और पत्नी दोनों की कुंडली का अवलोकन करके ही संतानप्राप्ति के समय का निर्धारण करना चाहिए द्यपंचम भाव में स्थित बलवान और शुभ फलदायक ग्रह एपंचमेश और उसका नवांशेश एपंचम भाव तथा पंचमेश को देखने वाले शुभ फलदायक ग्रहएपंचमेश से युक्त ग्रह एसप्तमान्शेष एबृहस्पति एलग्नेश तथा सप्तमेश अपनी दशा अंतर्दशा प्रत्यंतर दशा में संतान सुख की प्राप्ति करा सकते हैं द्य
दशा के अतिरिक्त गोचर विचार भी करना चाहिए द्य गुरु गोचर वश लग्न एपंचम भाव एपंचमेश से युति या दृष्टि सम्बन्ध करे तो संतान का सुख मिलता है द्य लग्नेश तथा पंचमेश के राशि अंशों का योग करें द्य प्राप्त राशि अंक से सप्तम या त्रिकोण स्थान पर गुरु का गोचर संतान प्राप्ति कराता है द्य गोचर में लग्नेश और पंचमेश का युति ए दृष्टि या राशि सम्बन्ध हो तो संतानोत्पत्ति होती है द्य पंचमेश लग्न में जाए या लग्नेश पंचम भाव में जाए तो संतान सम्बन्धी सुख प्राप्त होता है द्य बृहस्पति से पंचम भाव का स्वामी जिस राशि नवांश में है उस से त्रिकोण ;पंचम एनवम स्थान द्ध में गुरु का गोचर संतान प्रद होता है द्यलग्नेश या पंचमेश अपनी राशि या उच्च राशि में भ्रमण शील हों तो संतान प्राप्ति हो सकती है द्य लग्नेश एसप्तमेश तथा पंचमेश तीनों का का गोचरवश युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध बन रहा हो तो संतान लाभ होता है द्य
स्त्री की जन्म राशि से चन्द्र 1 ए2 ए4 ए5 ए7 ए9 ए1 2 वें स्थान पर हो तथा मंगल से दृष्ट हो और पुरुष जन्म राशि से चन्द्र 3 ए6 10 ए11 वें स्थान पर गुरु से दृष्ट हो तो स्त्री .पुरुष का संयोग गर्भ धारण कराने वाला होता है द्य आधान काल में गुरु लग्न एपंचम या नवम में हो और पूर्ण चन्द्र व् शुक्र अपनी राशि के हो तो अवश्य संतान लाभ होता है द्य
विशेष
प्रमुख ज्योतिष एवम आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार रजस्वला स्त्री चौथे दिन शुद्ध होती है द्य रजस्वला होने की तिथि से सोलह रात्रि के मध्य प्रथम तीन दिन का त्याग करके ऋतुकाल जानना चाहिए जिसमें पुरुष स्त्री के संयोग से गर्भ ठहरने की प्रबल संभावना रहती है द्यरजस्वला होने की तिथि से 4ए6ए8ए10ए12ए14ए16 वीं रात्रि अर्थात युग्म रात्रि को सहवास करने पर पुत्र तथा 5ए7ए9 वीं आदि विषम रात्रियों में सहवास करने पर कन्या संतिति के गर्भ में आने की संभावना रहती हैद्य याज्ञवल्क्य के अनुसार स्त्रियों का ऋतुकाल 16 रात्रियों का होता है जिसके मध्य युग्म रात्रियों में निषेक करने से पुत्र प्राप्ति होती है द्य
वशिष्ठ के अनुसार उपरोक्त युग्म रात्रियों में पुरुष नक्षत्रों पुष्य एहस्तएपुनर्वसु एअभिजितएअनुराधा एपूर्वा फाल्गुनी ए पूर्वाषाढ़एपूर्वाभाद्रपद और अश्वनी में गर्भाधान पुत्र कारक होता है द्य कन्या के लिए विषम रात्रियों में स्त्री कारक नक्षत्रों में गर्भाधान करना चाहिए द्य ज्योतिस्तत्व के अनुसार नंदा और भद्रा तिथियाँ पुत्र प्राप्ति के लिए और पूर्णा व जया तिथियाँ कन्या प्राप्ति के लिए प्रशस्त होती हैं अतः इस तथ्य को भी ध्यान में रखने पर मनोनुकूल संतान प्राप्ति हो सकती है
मर्त्यः पितृणा मृणपाशबंधनाद्विमुच्यते पुत्र मुखावलोकनात द्य
श्रद्धादिभिहर्येव मतोऽन्यभावतः प्राधान्यमस्येंत्य यमी रितोऽजंसा