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संतान दोष निवारण के उपाय

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संतान दोष निवारण के उपाय

हिंदु धर्म में वैवाहिक जीवन को पूर्ण सफल तभी माना जाता हैं जब संतान प्राप्ती हो। भारतीय धर्म में गृहस्थ आश्रम को चारों आश्रमों में सर्वश्रेष्ट आश्रम कहा गया हैं। उसका सबसे बडा कारण कुल व वंश को चलाने वाले संतान की प्राप्ती इसी आश्रम में होती हैं। लेकिन कुछ ग्रहों के बुरे योग संतान होने में अनेक प्रकार की बाधायें उत्पन्न करते हैं।

ज्योतिष शास्त्र को वेदों का नैत्र कहा गया हैं, इस शास्त्र के द्वारा जीवन के विभिन्न पहलुओं को देखा व समझा जा सकता हैं। जन्म कुंडली में जिन योगों की वजह से संतान होने में बाधायें आती हैं, उनमें से प्रमुख योग हैं-

संतान दोष निवारण के उपाय
संतान ना होने पर दम्पति, मंदिर, दरगाह में मन्नत मंगाने जाते है।  श्रद्धा के साथ काम सार्थक होते है राह भी निकलती है, ऐसे में ज्योतिष उपाय करना सोने पर “सुहागा के समान” होता है।

किसी कन्या के ग्रह इस प्रकार के हो तो उसे संतान गोपाल मन्त्र के सवा लाख जप शुभ- मुहर्त पर आरम्भ करें। इसके साथ ही गोपालमुकुंद और लड्डू गोपाल जी का पूजन करें। उनको माखन- मिश्री का भोग लगा, गणपति का पूजन शुद्ध धी का दीपक जला के करें।

           “संतान प्राप्ति  के पूजन में सहायक मन्त्र-—- ॐ हिं क्ली देवकीसुत, गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे, तनयं कृष्णा त्वाहम शरणागत क्ली ॐ”

1- पंचम स्थान व षष्ट स्थान के मालिक यदि एकदूसरे की राशि में स्थित हो तो ऐसे जातक की सन्तान बार बार गर्भ पात के कारण नष्ट हो जाती हैं।
2- पंचमेश अष्टम स्थान में हो तथा पंचम स्थान पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक को सन्तान सुख प्राप्त नही हो पाता।

3- पंचम स्थान पर शनि व राहु का प्रभाव मृत संतान देता हैं या संतान सुख से हीन करता हैं।
4- मंगल का पंचम प्रभाव अत्यधिक कष्ट पूर्वक संतान देता हैं, ऐसे जातकों कि संतान ऑपरेशन के द्वारा होती हैं।यदि शुभ प्रभाव हो तो अन्यथा अशुभ प्रभाव में संतान नहीं होती। मंगल व राहु का संयुक्त प्रभाव सर्प श्राप के कारण संतान होने में दिक्क्त देता हैं।
5- सूर्य का पंचम प्रभाव संतान से वंचित करता हैं, अथवा अत्यधिक प्रयत्न करने से एक संतान की प्राप्ती करवाता हैं।
6- लग्न, पंचम व सप्तम स्थान पर सूर्य, बुध और शनि का प्रभाव संतान प्राप्ती नही होने देता।
7- शुक्र यदि पुरुष जातक की जन्म कुंडली में शनि, बुध व राहु के साथ स्थित हो तथा पंचम व सप्तम स्थान पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो शुक्र(वीर्य) दोष होता हैं ।
8- पंचम स्थान पर शनि सूर्य का प्रभाव हो तथा राहु या केतु से दृष्टि सम्बंध बनाये तो पितृदोष के कारण संतान प्राप्ती में बाधा आती हैं।
9- पंचम स्थान पर देवगुरु बृहस्पति स्थित हो तथा पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो संतान होने में अनेक बाधाये आती हैं।
10- पंचमेश व गुरु दोनो एक साथ द्वादश स्थान में स्थित हो तथा मंगल व अष्ट मेश पंचम भाव में हो तो जातक को सन्तान सुख से वंचित होना पडता हैं।

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