Astrology

धन प्राप्ति के लिए करे यह महालक्ष्मी व्रत, जाने इस व्रत के लाभ

260views

 

Mahalakshmi Vrat 2022 Katha: महालक्ष्मी व्रत आज यानी की 3 सितंबर 2022 से शुरू हो गए हैं. मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा के बाद इस व्रत की कथा जरूर पढ़ें वरना व्रत का लाभ नहीं मिलेगा.

 

Mahalakshmi Vrat 2022 Katha: धन की देवी को प्रसन्न करने के लिए ये व्रत 16 दिन तक रखे जाते हैं, उसके बाद इसका उद्यापन कर दिया जाता है. मान्यता है जो सोलह दिन तक ये व्रत रखता है उस पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है. कहते हैं कि अगर पूरे सोलह दिनों तक व्रत न कर पाएं तो शुरु के 3 या आखिरी के 3 व्रत रखने से भी मां लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है.

महालक्ष्मी व्रत की समाप्ति 17 सितंबर 2022 को होगी. शास्त्रों में महालक्ष्मी व्रत समस्त मनोकामनों को पूर्ण करने वाला बताया गया है. इस व्रत के प्रभाव से धन, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. देवी लक्ष्मी की पूजा शाम के समय बेहद फलदायी मानी गई है. मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा के बाद इस व्रत की कथा जरुर पढ़े वरना व्रत का लाभ नहीं मिलेगा. आइए जानते हैं महालक्ष्मी व्रत की कथा.

महालक्ष्मी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव में निर्धन ब्राह्मण रहता था. वो भगवान विष्णु का परम भक्त था. प्रतिदिन श्रीहरि की विधिवत पूजा करता था, ब्राह्रण की भक्ति से प्रसन्न होकर एक बार भगवान विष्णु ने उसके समक्ष प्रकट हो गए. उन्होंने भक्त से वर मांगने को कहा.  ब्राह्मण ने मां लक्ष्मी को अपने घर वास करने की इच्छा प्रकट की. तब श्रीहरि ने उसे देवी लक्ष्मी को प्राप्त करने का मार्ग बताया.

 

विष्णु जी ने बताया मां लक्ष्मी को प्राप्त करने का मार्ग

भगवान विष्णु ने ब्राह्मण से कहा कि मंदिर के बाहर एक स्त्री उपले थापने का काम करती है, उसे अपने घर पर आमंत्रित करो. वही देवी लक्ष्मी है. विष्णु जी के कहे अनुसार अगले दिन ब्राह्मण ने स्त्री को घर आने का निमंत्रण दिया. ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी को अंदेशा हो गया कि ये सब विष्णु जी के कहने पर हुआ है.

महालक्ष्मी व्रत के प्रभाव से पूर्ण हुए मनोरथ

धन की देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मण से कहा कि तुम महालक्ष्मी का व्रत करों, मैं तुम्हारे घर अवश्य पधारूंगी. 16 दिनों तक व्रत करने और सोलवें दिन रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्न देने के बाद तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी. ब्राह्मण ने ऐसा ही किया और सोलवे दिन मां लक्ष्मी का आव्हान किया. देवी लक्ष्मी ने भी ब्राह्मण को दिया अपना वचन निभाया. तब से ही इस व्रत की परंपरा शुरु हुई.