सप्तम भाव विवाह और गृहस्थी के सुख की दृष्टि से बड़ा ही महत्वपूर्ण भाव है। जितना महत्व इसमें उपस्थित राशि और इसमें बैठे ग्रह का है, उतना ही महत्व इस पर दृष्टि रखने वाले ग्रहों के प्रभाव का भी होता है।
सप्तम भाव पर सूर्य की दृष्टि शुभ नहीं मानी जाती। विवाह में स्वाभाविक देरी होती ही है। जातक के वैवाहिक जीवन में हमेशा खटपट बनी रहती है। जातक और उसके पत्नी या पति के स्तर में अंतर होने से भी ये मतभेद हो सकते हैं। क्योंकि सप्तम का सूर्य होने पर जीवन साथी अपने से अच्छे स्तर वाला मिलता है और प्रभावशाली भी होता है। सप्तम का सूर्य प्रायः धनाभाव भी देता है अतः कर्ज आदि लेने की समस्या हमेशा बनी रहती है। इस कारण से भी विवाह के बाद दोनों में मतभेद बना रहता है।
सप्तम सूर्य होने पर नौकरी का ही प्रयास करें। व्यापार करने पर घाटे की आशंका बनी ही रहती है। सप्तम का सूर्य यदि शुभ प्रभाव में हो तो जातक को पक्की नौकरी जरूर दिलवाता है।
सप्तम पर चन्द्र की दृष्टि हो तो जीवन साथी बड़ा आकर्षक होता है। नरम दिल वाला, भावुक और सौम्यता से बातचीत करने वाला होता है। ऐसे जातकों को जीवन साथी से पूर्ण सहयोग मिलता है। यदि स्त्री जातक की कुंडली में सप्तम चन्द्र हो (दोष रहित) तो पति घर के कामों में भी पूरा सहयोग कराता है। इन जातकों को स्वतन्त्र व्यवसाय में रूचि लेनी चाहिए। ये धन को संग्रह करने में रूचि रखते है और कभी-कभी कंजूस भी कहे जा सकते हैं।
सप्तम भाव पर यदि मंगल की नजर हो तो ये शुभ नहीं होती। मकर या स्वराशि के मंगल के फल अधिक तीव्र मिलते हैं। लग्न के मंगल की दृष्टि पति या पत्नी को अभिमानी बनती है और विवाह सुख में कमी कराती है। दोनों ही गुस्से के तेज होते हैं अतः मतभेद बने ही रहते हैं। चतुर्थ भाव के मंगल की दृष्टि भी अशुभ फल देती है। साथी को उदर रोग होते है।
बारहवें भाव के मंगल की दृष्टि शैय्या सुख में कमी लाती है। दूसरे विवाह का भी योग बनता है। कुल मिलाकर मंगल की इन स्थितियों में कुण्डली मांगलिक ही कही जाती है अतः विवाह करते समय इस मंगल को मिला कर ही विवाह करना अच्छा रहता है अन्यथा विवाह सुख नहीं मिलना तय होता है। मंगल की दृष्टि पत्नी की कुण्डली में हो तो पति को नशे व मांसाहार की शौकीन भी बनाती है।