फलित कैसे करें ?
एक ही ग्रह के आधार पर किया गया फलित सन्देह उत्पन्न करता है। और फलितज्ञ और भविष्य जानने वाले को धोखे में रखता है।प्राचीन ज्योतिष से बनी जन्मकुण्डली को लेकर उसके सभी राशि अंक हटा दें,परन्तु ग्रह जिस भाव में हैं,उन्हें वहीं रहने दें। बाद में इस कुण्डली में लग्न से द्वादश भाव 1 से 12 तक के अंक स्थापित कर दें,अब जो कुण्डली नए रूप में हमारे सम्मुख होगी,वही लाल किताब की कुडली है।
अब लाल किताब के फलित सिद्धान्तों को इस कुण्डली पर व्यवहार में लाकर जातक का भविष्य निर्धारित करें। एक या एक से अधिक ग्रहों की युति होने पर उन ग्रहों का अलग-अलग एवं मिश्रित फल समन्वय से देखेंगे क्योंकि कभी-कभी ग्रह अलग-अलग अशुभ फल देते हैं,परन्तु एक साथ बैठने पर अच्छा फल देते हैं।जैसे-बुध व मंगल ग्रह अलग-अलग आठवें भाव में स्थिम होें तो शुभ फल करते हैं,परन्तु एक साथ मंगल -बुध आठवें भाव में हों तो शुभ फल करते हैं।
एक या एक से अधिक ग्रहों की युति का फल,एक साथ स्थित होने का फल एवं अलग-अलग जो फल हो उन्हें देखकर समन्वय युक्त फल कहें,अपने मन से फल न कहें।यह मान लें कि प्रत्येक भाव एक घर है। और उस घर के अनुसार ही उस घर के गुण-अवगुण होंगे। इसके अतिरिक्त उस घर पर जिस ग्रह का कारक प्रभाव है उसका भी पूर्ण प्रभाव प्रभाव होगा। इन दोनों ग्रहों की परस्पर मित्रता-शत्रुता भी उस भाव के फल पर डालती है।
यदि परस्पर शत्रुता हो तो भाव का फल अशुभ और परस्पर मित्रता है तो भाव का फल शुभ होगा। यहां तीसरा ग्रह जो उस भाव में स्थित होता है,उसका भी इनसे कैसा संबंध है इससे भी फलित प्रभावित होता है,उदाहरणतः मान लो ग्याहरवें भाव का स्वामी शनि है,यह भाव से सम्बन्धित है,यह भाव आय और सभी आवश्यकताओं का स्त्रोत है जिस पर गुरू का अधिपत्य है।
आप इस प्रकार समझ सकते हैं कि ग्याहरवें भाव की धरती शनि की है। और उस पर घर गुरू का है। यहां राहु स्थित होने के कारण उसने घर पर कब्जा कर रखा हैं। राहु शनि का दुत है और इसका अशुभ से सम्बन्ध है,इसलिए इस घर में ऐसा भूकम्प आयेगा। कि गुरू का स्वर्णिम वर्ण नीला हो जायेगा और वह घर कहां गया इसका भी पता नहीं चलेगा। गुरू नष्ट हो जाने से राहु का अशुभ धुंआ चारों ओर फैल जायेगा। यहां गुरू का प्रभाव बढ़ाने के लिए सोना धारण करना या पीला धागा धारण करना अत्यावश्यक है। इस प्रकार प्रत्येक भाव और उसमें स्थित ग्रहों का फल सम्यक विश्लेषण के बाद करना चाहिए।