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ज्योतिष से जानें जातक पर क्यों पढ़ता ऋण का प्रभाव…

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ज्योतिष से जानें जातक पर क्यों पढ़ता ऋण का प्रभाव…

जातक पर ऋण का प्रभाव
कहते है कि देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण का प्रभाव जन्म-जन्मांतरों तक साये की तरह पीछा करता है। इसलिए शास्त्रों में पितृदेवो भव, आचार्य देवो भव, मातृ देवो भव आदि शब्दों से इंगित किया गया है। वैसे तो परम्परागत ज्योतिष ने इन तथ्यों को अपनी जन्मकुंडली में स्थान दिया है, लेकिन ’लाल किताब’ इस मामले में विशिष्ट स्थान रखता है। तात्पर्य यह है कि पिता द्धारा लिया हुआ कर्ज पुत्र को देना पड़ता है। यहां तक कि शारीरिक, आर्थिक एवं मानसिक ऋण भी चुकाना पड़ता है। वैसे भी व्यक्ति को तीन बातें कभी नहीं भूलनी चाहिए-कर्ज, फर्ज और मर्ज। जो शख्स इनको ध्यान में रखते हुए कर्म करता है, उसे कभी असफलता का मुंह नहीं देखना पड़ता। फलस्वरूप् जीवन धन्य हो जाता है।

महाभारत में उल्लेख है कि पांडवों की गलती का परिणाम उनकी पत्नी द्रौपती को भुगतना पड़ा। इसी प्रकार श्रवण के माता-पिता के शाप के कारण महाराज दशरथ को संतान के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी थीं-शिकार खेलते समय राजा दशरथ का निशाना चूक जाने पर उनके तीर ने श्रवण को वेध दिया था। इस पर श्रवण के माता-पिता ने शाप दिया कि जैसे मेरी मृत्यु पुत्र-वियोग मे हो रही है, वैसे ही तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र-वियोग में होगी। फिर दशरथ की मृत्यु भी पुत्र-वियोग में हुई।

पिता की गलती के कारण राम को वनवास का मुंह देखना पड़ा।आदिकवि वाल्मीकि ने चिड़ीमार को शाप दिया कि तुम्हें और तुम्हारी सम्पूर्ण जाति को कभी प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी। इस शाप के कारण इतने युगों बाद भी आज तक किसी चिड़ीमार को प्रतिष्ठा नही मिली और न ही मिलेगी। यह अटल सत्य है कि माता-पिता एवं पूर्वजों के व्यभिचार का फल वंशजों को ही भुगतना पड़ता है।ज्ञातव्य है कि कौआ अमृतपायी पक्षी है। अन्य पक्षियों की तुलना में इसे दिव्यदृष्टि सम्पन्न तथा भविष्य-ज्ञानी के रूप् में प्रशंसा प्राप्त है। शकुल संबंधी विचार के लिए इस पक्षी को सर्वोत्तम माना जाता है। कहते है कि सृष्टि के आदिकाल में कौए के शरीर का रंग एकदम श्वेत था। तब यह पक्षी सबसे सुन्दर और प्रशंसनीय माना जाता था।

एक बार एक ऋषि ने कहा कि तुम तीव्र उड़ान वाले पक्षी हो, अतः दश दिशा में जाकर अमृत के स्रोत का पता लगाकर आओ। पता लगाकर सीधे मेरे पास वापस आ जाना। उस अमृत को तुम स्वयं मत पीना।निरन्तर कई वर्षो तक पता लगाने के पश्चात् कौए की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। उसने अमृत के स्रोत का पता लगा लिया था। लेकिन तभी थके हुए कौए को प्यास लगी। वह अपने आप पर संयम न रख सका और ऋषि की आज्ञा का ध्यान न रखते हुए अमृत के कुछ घूंट पी लिए। तत्पश्चात् वह ऋषि के पास गया।

उसने ऋषि को अमृत के स्रोत का पता बता दिया। उसने यह भी बता दिया कि वह अमृत-गंध को रोक नहीं पाया और कुछ घूंट पी भी लिए।इस पर ऋषि ने उसे शाप दिया कि तूने अपनी चांेच से अमृत के स्रोत को अपवित्र कर दिया है। इसलिए तू सर्व अविश्वसनीय, निन्दनीय, एवं घृणित प्राणी समझा जाएगा। तू अभक्ष्य पदार्थो का सेवन करेगा। लोग तेरी निंदा करेंगे। अन्य नभचर पक्षी तुझे अपनी बिरादरी से तिरस्कृत कर तुझसे दूर-दूर रहेंगे। चूंकि तूने अमृत के कुछ घूंट पी लिए है, अतः जरा-व्यधि से मुक्त होकर दीर्घ जीवन प्राप्त करेगा। तेरी मृत्यु केवल दुर्घटनाओं के कारण ही होगी।

तेरे शरीर का वर्ण श्वेत न रहकर काला हो जाएगा, यद्यपि अमृतपायी होने के कारण वह चमकदार बना रहेगा। उक्त घटना से समस्त काक वंश श्वेत के स्थान पर कृष्ण वर्ण का हो गया।

गौरतलब है कि कोई भी पशु-पक्षी इसके शरीर का मांस नही खाता। यानी गुनाह कोई करे, सजा कोई भुगते, मगर भुगतेगा करीबी संबंधी ही।यह धु्रव सत्य है कि पूर्वजों के दुष्कर्मों का फल उनके वंशजों को भोगना पड़ता है। इसे ही हम ऋण कहते है। जातक किस ऋण पूर्वज के पाप या शाप, देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण से पीड़ित है तथा उसका निवारण क्या है।

पितृ ऋण

यदि 5, 12, 2, 9 स्थान में कोई भी ग्रह हो तो जातक पितृ ऋण से प्रभावित होगा। अगर नौवें घर में बृहस्पति के साथ शुक्र स्थित हो, चैथे घर में शनि और केतु हो तथा चन्द्र दसवें घर में हो तो जातक पितृ ऋण से पीड़ित होगा। इसके अलावा निम्नलिखित स्थितियों में जातक पितृ ऋण से ग्रस्त होगा-

लग्न से आठवें में बुध और नौवें में बृहस्पति हो।

  •  छूसरे या सातवें में बुध और नौवें में शुक्र हो।
  • तीसरे में बुध और नौवें में राहु हो।
  • चैथे में बुध और नौवें में चन्द्र हो।
  • पांचवें में बुध और नौवें में सूर्य हो।
  • छठे में बुध और नौवें में केतु हो।
  • छसवें या ग्यारहवे मे बुध और नौवें में शनि हो।