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भारतीय ज्योतिष में कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की विधि में मिलाएॅ जाने वाले अष्टकूटों में नाड़ी और भकूट को सबसे अधिक गुण प्रदान किये जाते हैं। नाड़ी को 8 और भकूट को 7 गुण प्रदान किय जाते हैं। मिलान की विधि में यदि नाड़ी और भकूट के गुण मिलते हैं तो गुणों को पूरे अंक और ना मिलने की स्थिति में शून्य अंक दिया जाता है। इस प्रकार से अष्टकूटों के मिलान में प्रदान किये जाने वाले 36 गुणों में 15 गुण केवल इन दो कूटों के मिलान से ही आ जाते हैं। भारतीय ज्योतिष में प्रचलित धारणा के अनुसार इन दोनों दोषों को अत्यंत हानिकारक माना जाता है। इन गुणों के ना मिलने की स्थिति में माना जाता है कि वैवाहिक जीवन में कठिनाई, संतान सुख में कमी तथा वर या वधु की मृत्यु का कारण बनता है। इन दोनों कूटों के मान का इतना महत्व माना जाता है जिसके लिए किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा की किसी नक्षत्र विषेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विषेष नक्षत्रों में चंद्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है। इसी प्रकार यदि वर-वधु की कुंडलियों में चंद्रमा परस्पर 6-8, 9-5 या 12-2 राषियों में स्थित हो तो भकूट मिलान के 0 अंक और इन स्थानों पर ना होने पर पूरे 7 अंक प्राप्त होती है। भकूट दोष होने पर संतान, समृद्धि तथा स्वास्थ्य हेतु हानिकारक माना जाता है। किंतु व्यवहारिक और ज्योतिष स्वरूप में देखा जाए तो कुंडली मिलान की यह विधि अपूर्ण होने के साथ अनुचित भी है। किसी व्यक्ति की कुंडली में नवग्रहों में सिर्फ चंद्रमा की स्थिति को देखकर दोष-अवदोष निर्धारित कर देना अव्यवहारिक ही नहीं अवैचारिक भी है। सिर्फ चंद्रमा का महत्व यदि व्यक्ति के जीवन में आधा मान लिया जाए जैसा कि 36 में से 15 गुण प्रदान करना है तो बाकि के आठ ग्रहों का व्यक्ति की कुंडली में महत्व ही नहीं माना जायेगा। जबकि देखा यह गया है कि चंद्रमा अपनी स्थिति सवा दो दिन में बदल लेती है किंतु कई ग्रह व्यक्ति की कुंडली में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं अतः व्यवहारिक तो यह माना जाता है कि किसी व्यक्ति की कुंडली में समग्र विचार करना उचित होगा। हालांकि भारतीय मत के अनुसार विवाह दो मनों का पारस्पिरिक मिलन होता है तथा चंद्रमा व्यक्ति के मन पर सीधे प्रभाव डालता है इस दृश्टि से चंद्रमा की स्थिति का महत्व माना जा सकता है किंतु किसी व्यक्ति की कुंडली में सुखमय वैवाहिक जीवन के लक्षण, सुख, संतान पक्ष, आर्थिक सुदृढ़ता, अच्छे स्वास्थ्य एवं आपस में मित्रवत् व्यवहार तथा सामंजस्य को देखा जाना ज्यादा आवष्यक है ना कि सिर्फ नाड़ी और भकूट दोष के आधार पर कुंडली के मिलान ना स्वीकारना या नाकारना। इस प्रकार कुंडली मिलान की प्रचलित रीति सुखी वैवाहिक जीवन बताने में न तो पूर्ण है और ना ही सक्षम। इस प्रकार से कुंडली मिलान को मिलान की एक विधि का एक हिस्सा मानना चाहिए न कि अपने आप में एक संपूर्ण विधि। सिर्फ चंद्रमा के अनुसार मिलान की प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्य ग्रहों की स्थिति तथा मिलान के अनुसार ग्रह दोषों के अनुसार मिलान ज्यादा सुखी तथा वैवाहिक रिष्तों की नींव होगी जिससे आज के युग में चल रही अलगाव या तलाक की स्थिति को कम कर आपसी सद्भावना तथा तनाव को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।