कालसर्प योग की शान्ति
यह तो कालसर्पयोग में प्रायः होने वाले रत्नों की बात थी। अब मैं पाठकों को इस बात की जानकारी देना चाहूंगा कि कालसर्प दोष की शान्ति कैसे करनी चाहिए?
शिव उपासना एवं रूद्रसूक्त से अभिमन्त्रित जल से स्नान करने पर यह योग शिथिल हो जाता है। किसी शिवलिंग में चढ़ाने योग्य ताम्बे का बड़ा सर्प लावें। उसे प्राणपतिष्ठित कर,ब्रम्बमुहूर्त में जब कोई न रखे शिवालय पर छोड़ आवें तथा चांदी से निर्मित एक सर्प-सर्पिणी के जोड़े को बहते पानी में छोड़ दें। इससे भी कालसर्पयोग की शान्ति हो जाती हैं।यह योग प्रयोग अनुभूत है।
अगर किसी स्त्री की कुण्डली इस योग से दूषित है तथा उसको संतति का अभाव है,विधि नहीं करा सकती हो तो किसी बट के वृक्ष के नित्य 108 प्रदक्षिणा लगानी चाहिए। तीन सौ दिन में जब 32,400 प्रदशिणा पूरी होंगी तो दोष दूर होकर संतति की प्राप्ति होगी। नागपंचमी का उपासना करें। नवनाग स्तोत्र का नियमित सस्वर पाठ करें। कालसर्प योग की अंगूठी प्राणप्रतिष्ठि करके,शनिवार के दिन धारण करें, उस दिन राहु की सामग्री का दान अवश्य करना चाहिए। इससे लाभ होता है।