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जानें किस तरह हुई थी करवा चौथ व्रत की शुरुआत…
साधारण बोलचाल के भाषा में इसे करवा चैथ के नाम से भी जाना जाता है । यह व्रत कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को किया जाता है। इस दिन व्र्रत करने वाली स्त्रियाँ पूरा दिन निर्जल निराहार रहती है।शाम को फिर से स्नानकर वे सुन्दर सुन्दर आभूषण और नए वस्त्र पहनकर तैयार होती हैं। चन्द्रमा को अघ्र्य दिया जाता है। इसके पश्चात् फूल, अक्षत से पूजा कर आरती की जाती है।
उस दिन स्त्रियाँ छलनी से पहले चन्द्रमा का दर्शन करती हैं और फिर उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देखती हैं। इसके पश्चात् से पति के हाथों करवे से पानी पीती हैं । इसके पश्चात् से पति के हाथों करवे से पानी पीती हैं और पति का आशीर्वाद लेती हैं। करवा चैथ की कथा इस प्रकार है-
पाण्डव जब वनवास भोग रहे थे, तब द्रौपदी को विचार आया कि उन पर आ रहे कष्ट समाप्त होने का नाम ही नहीं लें रहे हैं। तब द्रौपदी ने कृष्ण का ध्यान किया । उनकी प्रार्थना सुनकर कृष्ण प्रकट हुए।
तब द्रोपदी ने अपने पतियों के कष्टों के निवारण का उपाए पूछा। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने बताया कि एक समय में पार्वती ने शिवजी से यही प्रश्न किया था, जिसके उत्तर में शिव जी ने उनको सर्व विघ्ननाशक करक चतुर्थी व्रत के बारे में बताया था।
कृष्ण ने कहा कि जो भी स्त्री विधिपूर्वक करक चतुुर्थी व्रत का व्रत करेगी, उसके सारे विघ्नों का नाश होगा। करवा चैथ का उपवास पति के अच्छे स्वास्थ्य और लम्बी आयु के लिए प्रायः पत्नियाँ रखती है।