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जानें,व्रत एवं उपवास की आरतियाॅं…

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व्रत एवं उपवास की कुछ प्रमुख आरतियाॅं

श्री गणेश जी की आरती

 जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
मता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
पन चढ़े फूल चढ़ें और चढ़ें मेवा।
लडुवन का भोग लगे सन्त करे सेवा।।
एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी।
मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी।।
अन्धन को आॅंख देत कोढ़िन को काया।
बाॅंझन को पुत्र देत निर्धन मो माया।।
दीनन की लाज राखो शम्भु-सुत वारी।
कामना को पूरा करो जग बलिहारी।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
’सूरश्याम’ शरण आये सुफल कीजे सेवा।।
श्री जगन्नाथ जी की आरती
आरती श्री जगन्नाथ मंगलकारी,
चरणविन्द आपदा हारी।
निरखत मुखारविन्द आपदा हारी,
कंचन धूप ध्यान ज्योति जगमागी।
अग्नि कुण्डल घृत पाव सथरी।। आरती’’’
देवन द्वारे ठाड़े रोहिनी खड़ी,
मारकण्डे श्वेत गंगा आन करी।
गरूण खम्भ सिंह पौय यात्री जुड़ो,
यात्री की भीड़ बहुत बेंत की घड़ी।। आरती’’’
सुर नर मुनि द्वारे ठाड़े वेद उचारे,
धन्य-धन्य सूरश्याम आज की घड़ी।। आरती’’’

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श्री गंगा जी की आरती

ऊॅं जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता।
जो नर तुमको ध्याता, मनवाॅछित फल पाता।।
चन्द्र सी ज्योति तुम्हारी जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता।।
पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता
कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता।।
एक ही बार जो तेरी शरणागति आता
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता।।
आरती मातु तुम्हारी जो जन नित गाता।
दास वही सहज में मुक्ति को पाता।।

श्री पार्वती जी की आरती

जय पार्वती माता, जय पार्वती माता।
ब्रम्हा सनातन देवी शुभफल की दाता।।
अरिकुल पद्म विनासनी जय सेवकत्राता।
जगजीवन जगदम्बा हरिहर गुुण गाता।।
सिंह का वाहन साजे कुण्डल हैं साथा।
देवबंधु जस गावत नृत्य करत ता था।।
सतयुग रूप् शील अतिसुन्दर नाम सती कहलाता।
हेमांचल घर जन्मी सखियन संग राता।।
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्थाता।
सहस्त्र भुज तनु धरिके चक्र लियो हाथा।।
सृष्टिरूप तुही है जननी शिवसंग रंगराता।
नन्दी भृंगी बीन लही है हाथन मदमाता।।
देवन अरज करत तव चित को लाता।
गावत दे दे ताली मन में रंगराता।
’श्री प्रताप’ आरती मैया की जो कोई गाता।
स्दा सुखी नित रहता सुख सम्पत्ति पाता।।

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आरती श्री सरस्वती जी

आरती कीजे सरस्वती की,
जनन विद्या, बुद्धि भक्ति की। टेक
जाकी कृपा कुमति मिट जाए।
सुमिरन करत सुमित गति आए,
शुक्र सनकादि जासु गुण गाए।
वाणी रूप् अनादि शक्ति की।।
आरती कीजे’’’
नाम जपत भ्रम छूट दिए के।
दिव्य दृष्टि शिशु उधर हिय के,
मिलहिं दर्श पावन सिय पिय के।
उड़ई सुरभि युग-युग कीर्ति की।।
आरती कीजै’’’
रचित जासु बल वेद पुराणा।
जेते ग्रन्थ रचित जगनाना,
तालु छनद स्वर मिश्रित गाना।
जो आधार कवि यति सति की।।
आरती कीजै’’’
सरस्वती की वीणा वाणी कला जनति की।
आरती कीजै सरस्वती की।।