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निरंतर जीवन में उन्नति हेतु केतु प्रमुख ग्रह

निरंतर चलायमान रहने अर्थात् किसी जातक को अपने जीवन में निरंतर उन्नति करने हेतु प्रेरित करने तथा बदलाव हेतु तैयार तथा प्रयासरत रहने हेतु जो ग्रह सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है, उसमें एक महत्वपूर्ण ग्रह है केतु। ज्योतिष शास्त्र में राहु की ही भांति केतु भी एक छायाग्रह है तथा यह अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसका स्वभाग मंगल ग्रह की तरह प्रबल और क्रूर माना जाता है। केतु ग्रह विषेषकर आध्यात्म, पराषक्ति, अनुसंधान, मानवीय इतिहास तथा इससे जुड़े सामाजिक संस्थाएॅ, अनाथाश्रम, धार्मिक शास्त्र आदि से संबंधित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व...
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शुक्र का प्रभाव

शुक्र का प्रभाव  - ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को प्रमुखता प्राप्त है। कालपुरूष की कुंडली में शुक्र ग्रह दूसरे अर्थात् संपत्ति एवं सुख तथा सप्तम स्थान अर्थात् पार्टनर का स्वामी होता है। शुक्र ग्रह सुख, संपत्ति, प्यार, लाभ, यष, क्रियात्मकता का प्रतीक है। शुक्र ग्रह की उच्च तथा अनुकूल स्थिति में होने पर सभी प्रकार के सुख साधन की प्राप्ति, कार्य में अनुकूलता तथा यष, लाभ तथा सुंदरता की प्राप्ति होती है। इस ग्रह से जीवन में ऐष्वर्या तथा सुख की प्राप्ति होती है किंतु यदि विपरीत स्थिति या...
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कृष्ण जन्माष्टमी

कृष्ण जन्माष्टमी - भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि में भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में श्री विष्णु की सोलह कलाओं से पूर्ण अवतरित हुए थे। श्री कृष्ण का प्राकट्य आततायी कंस एवं संसार से अधर्म का नाष करने हेतु हुआ था। भविष्योत्तर पुराण में कृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से कहा कि मैं वासुदेव एवं देवकी से भाद्रपक्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी को उत्पन्न हुआ जबकि सूर्य सिंह राषि में एवं चंद्रमा वृषभ राषि में था और नक्षत्र रोहिणी था। जन्माष्टमी के व्रत तिथि दो प्रकार की हो सकती...
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श्रावणी पूर्णिमा – रक्षा का पावन पर्व

श्रावणी पूर्णिमा - रक्षा का पावन पर्व  - श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षा बंधन के रूप में मनाने की परंपरा हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से है। प्राचीन समय में देवताओं और दानवों में बारह वर्ष तक घोर संग्राम चला। इस संग्राम में राक्षसों की जीत हुई और देवता हार गए। दैत्यराज ने तीनों लोकों को अपने वष में कर लिया तथा अपने को भगवान घोषित किया। दैत्यों के अत्याचारों से सभी लोकों में हाहाकार मच गया। तब भगवान इंद्र ने गुरू बृहस्पति से विचार कर रक्षा विधान करने...
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नाग पंचमी

नाग पंचमी - श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी को नाग पंचमी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन नागों का पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करके सांपों को दूध पिलाया जाता है। गरूड़ पुराण में उल्लेख है कि इस दिन अपने घर के दोनों किनारों पर नाग की मूर्ति बनाकर पूजन करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि का स्वामी नाग है। अर्थात् शेषनाग आदि सर्पराजाओं का पूजन पंचमी के दिन किया जाता है। श्रावण मास को षिव का मास माना जाता है साथ ही...
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जीवनसाथी से अलगाव दूर करने का विकल्प

भगवान षिव के प्रिय मास सावन में किया गया षिव पूजन, व्रत तथा दान बहुत फलदायी होता है। शास्त्रों में षिव का मतलब कल्याण करने वाला बताया गया है। सावन मास के हर दिन में किए गए तप का अपना अलग ही महत्व होता है। श्रावण मास में सभी प्रकार के दुख दूर करने हेतु व्रत का विधान है इस हेतु जीवनसाथी से किसी बात पर अलगाव या विलगता की स्थिति को दूर करने हेतु सूर्य तथा पार्थिव पूजन का बहुत महत्व है। इसमें रविवार को ब्रम्ह मूहुर्त में स्नान...
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श्रावण में शनि की उपासना से जीवन की सफलता

श्रावण में शनि की उपासना से जीवन की सफलता- श्रावण का माह तप एवं दान का महिना माना जाता है। किसी जातक के जीवन में यदि कैरियर को लेकर भ्रम या परेषानी हो तो उसे शनि को पूजना चाहिए। शनि दया के व्यवहार से प्रसन्न होते हैं। वहीं निर्दयता, झूठ या पाखंड उनकी अप्रसन्नता का कारण होता है। श्रावण का महिना सभी प्रकार के पाप श्राप से मुक्ति कराने वाला तथा श्री की प्राप्ति कराने वाला महिना है। इस महिने में शनिवार के दिन घर की साफ-सफाई करके प्रातःकाल स्नान...
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श्रावणी चतुदर्शी व्रत की कथा

नारदजी ने एक बार भगवन से पूछा की पृथ्वीवासी आपको महादेव कृपा निधान कहते हैं किंतु इससे तो केवल आपके प्रिय भक्त ही तर पाते हैं। साधारण नर-नारी नहीं। इसलिए कोई ऐसा उपास बताइये जिससे साधारण नर-नारी भी आपकी कृपा के पात्र बन जाए। इस पर भगवान ने कहा कि नारद श्रावण मास में विषेषकर कृष्ण पक्ष की चतुर्दषी को जो नर-नारी व्रत का पालन करते हुए भक्तिपूर्वक मेरी पूजा करेंगे उनको स्वर्ग प्राप्त होगा। इस दिन जो भी किंचित मात्र भी मुझे स्मरण करेगा, उसे बैकुंठधाम प्राप्त होगा। Pt.P.S...
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