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पद्मनाथ द्वादषी पूजन – मनवांछित फल प्राप्ति का अचूक तरीका

पद्मनाथ द्वादषी पूजन - मनवांछित फल प्राप्ति का अचूक तरीका- आष्विनी शुक्ल मास भगवान विष्णु की पूजा तथा व्रत का मास माना जाता है इसकी द्वादषी में की गई पूजन, व्रत तथा दान बहुत फलदायी होता है। शास्त्रों में विष्णु की नाभी से उत्पन्न कमल को पद्मनाभ कहा गया। जिसमें तप दान से सभी कल्याण करने वाला बताया गया है। आष्विनी शुक्ल मास के हर दिन में किए गए तप का अपना अलग ही महत्व होता है। आष्विनी शुक्ल मास में मनवांछित फल प्राप्ति हेतु पद्मनाथ द्वादषी पूजन का बहुत...
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पापांकुषा एकादषी

पापांकुषा एकादषी - आष्विन मास की शुक्लपक्ष की एकादषी को पापांकुषा एकादषी के रूप में मनाया जाता है। पद्यपुराण के अनुसार पाप रूपि हाथी को महावत रूपी अंकुष से बेधने के कारण इसका नाम पापांकुषा एकादषी पड़ा। चराचर प्राणियों सहित त्रिलोक में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है, जो कष्ट से संबंधित दुखों को हर सके। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पष्चात् श्री का ध्यान करना चाहिए। सबसे पहले धूप-दीप आदि से भगवान की...
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विजयादसमी

विजयादसमी - विजय दसमी का व्रत या दषहरा का पर्व आष्विन मास की शुक्लपक्ष की दषमी को मनाया जाता है। इस पर्व को भगवती के ‘‘विजया’’ नाम पर विजय दषमी कहते हैं। इस दिन रामचंद्रजी ने लंका पर विजय प्राप्त की थी, इस लिए भी इस दिन को विजयदषमी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि आष्विन शुक्ल पक्ष की दषमी को तारा उदय होने के समय ‘‘विजय’’ नामक काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धि दायक होता है। इसलिए सायंकाल में पूजन का विधान है, जिससे जीवन में कार्यसिद्धि...
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आरोग्य और यष की देवी-माॅ कूष्माण्डा

आरोग्य और यष की देवी-माॅ कूष्माण्डा - माॅ दुर्गा के चैथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद्र हल्की हॅसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रम्हाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। देवी कूष्माण्डा ने ही अपने ‘ईषत्’ हास्य द्वारा ब्रम्हाण्ड की उत्पत्ति की थी, जिसके पूर्व सृष्टि का अस्तित्व ही नहीं था। इनकी शरीर की कांति तथा प्रभा सूर्य के समान ही देदीप्यमान और भास्वर है जिसके कारण इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता...
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माॅ दुर्गा जी के तीसरे शक्तिरूप का नाम ‘‘माॅ चंद्रघण्टा”

माॅ दुर्गा जी के तीसरे शक्तिरूप का नाम ‘‘चंद्रघण्टा’’ है। नवरात्रि उपासना में तीसरे तीन परम शक्तिदायक और कल्याणकारी स्वरूप की आराधना की जाती है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचंद्र है, इस कारण माता के इस रूप का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं तथा सभी हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित है। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा यु़द्ध के लिए उद्यत रहने की होती है। इनके घण्टे की सी भयानक चण्डध्वनि...
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स्नान -दान-श्राद्ध की अमावस्या

स्नान -दान-श्राद्ध की अमावस्या - भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आष्विन मास की प्रति तथा आष्विन मास की अमावस्या तक का समय अपने पितरों तथा पूर्वजो को पूजन, याद करने तथा उनकी मुक्ति हेतु दान करने का होता है। इस माह में किए गए दान एवं पूण्य जीवन में सुख तथा समृद्धिदायी होती है साथ ही कष्टों को दूर करने वाली होती है। आष्विन मास के अमावस्या को पितृपक्ष का अंतिम दिन माना जाता है। पूरे 15 दिवस चलने वाले इस पितरतर्पण का विसर्जन आष्विन मास की अमावस्या को किये...
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चतुर्दषी का श्राद्ध करके पायें जीवन मे आषांतित सफलता

चतुर्दषी का श्राद्ध करके पायें जीवन मे आषांतित सफलता - स्कूल षिक्षा तक बहुत अच्छा प्रदर्षन करने वाला अचानक अपने एजुकेषन में गिरावट ले आता है तथा इससे कैरियर में तो प्रभाव पड़ता ही है साथ ही मनोबल भी प्रभावित होता हैं अतः यदि आपके भी उच्च षिक्षा या कैरियर बनाने की उम्र में पढ़ाई प्रभावित हो रही हो या षिक्षा में गिरावट दिखाई दे रही हो तो सर्वप्रथम व्यवहार तथा अपने दैनिक रूटिन पर नजर डालें। इसमें क्या अंतर आया है, उसका निरीक्षण करने के साथ ही अपनी कुंडली...
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त्रयोदषी का श्राद्ध-षनि प्रदोष

त्रयोदषी का श्राद्ध-षनि प्रदोष  - ज्योतिषषास्त्र में कालपुरूष के जन्मांग में सूर्य हैं राजा, बुध हैं मंत्री, शनि हैं जज, राहु और केतु प्रशासक हैं, गुरू हैं मार्गदर्शक, चंद्रमा हैं मन और शुक्र है वीर्य। जब कभी भी कोई व्यक्ति अपराध करता है तो राहु और केतु उसे दण्डित करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। पर शनि के न्यायालय में सबसे पहला दण्ड प्राप्त होता है। इसके बाद अच्छे व्यवहार से और सदाचरण से शनि को प्रसन्न करके बचा जा सकता है। शनि के दया के व्यवहार से प्रसन्न...
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