मेषः यदि दसवें स्थान में मेष राशि हो तो जातक घूमने-फिरने का शौकीन, दौड़ने का शौक रखने वाला, चाल कुछ टेढ़ी हुआ करती है। यदि विवाह योग कुंडली में न हो तो भी वह सुख भोगता है। नम्रता से हीन, चुगलखोर, क्रोधी होता है और शीघ्र ही लोगों का अप्रिय बन जाता है। ऐसा जातक कई कार्यों को एक साथ शुरू कर देता है। यदि कुंडली में मंगल शुभ हो तो निश्चित ही करियर बहुत अच्छा, धन, पद व अधिकार प्राप्ति होती है। माता-पिता, गुरुजनों, मित्रों व पत्नी से सत्य व सौम्य व आदर का व्यवहार करना चाहिए।
वृषभ: कुंडली में दशम घर में वृषभ राशि होने से जातक पिता का प्यार पाने वाला, वाली, स्नेही, विनम्र, धनी, व्यापार में कुशल, बड़े लोगों से मित्रता करने वाला, आत्मविश्वासी और राजपुरुषों से कार्य लेने वाला होता है। यदि शुक्र शुभ अंशों में बलवान हो तो जातक अच्छा व्यापारी व मैनेजर बन सकता है।
मिथुनः ऐसा जातक कर्म को ही प्रधान मानता है। समाज का हितैषी, मन्दिर निर्माण करने वाला, दुर्गा जी का भक्त, देवी दर्शन करने वाला, भगवान को मानने वाला, व्यापार या कृषि कर्म से आजीविका चलाने वाला, बैंक, बीमा कपंनी, कोषाध्यक्ष, अध्यापक की नौकरी करने वाला होता है।
कर्कः यदि कुंडली के दसवें घर में कर्क राशि हो तो जातक कई सगुणों से युक्त, यदि चतुर्थ चन्द्रमा हो तो राजनीति में रूचि रखने वाला व राज्य सत्ता प्राप्त करके समाज की भलाई करने वाला, पापों से डरने वाला, स्नेहवान, अन्याय के विरुद्ध लड़ने वाला होता है। वह आत्मविश्वासी भी होता है।
सिंहः ऐसा जातक अहंकार से घिरा होता है। यदि अहंकार को त्याग दे तो जीवन को जगमगा सकते हैं। संर्कीण विचारधारा के कारण कभी-कभी अपयश के पात्र होते हैं। यदि गुरु, शनि, सूर्य, मगंल, चंद्रमा अति शुभ हो तो जातक पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। पिता धनी होता है, बहुत बड़े उद्योग स्थापित करता है।
कन्याः वाकपटुता के कारण लोकप्रिय प्रोफेसर, दुखी व्यक्तियों की सहायता करने वाला, अपने प्राणों को संकट में डालकर दूसरों की रक्षा में तत्पर, स्वाभिमानी होता है। बुध बलवान होने से राज्य में सम्मान होता है। यदि गुरु भी शुभ हो तो जातक अच्छा पद, प्रतिष्ठा प्राप्त जरूर प्राप्त करता है।
तुलाः दशम भाव में तुला राशि हो तो जातक मानव-भाग की भलाई में लगा रहता है। धर्म प्रचारक, धर्म के गूढ़ मर्म को समझने वाला आदर्श व्यक्ति होता है। नौकरी की बजाय व्यापार हितकारी व पसंदीदा होता है। युवावस्था में ही ऐसा जातक अपनी कार्यक्षमता कौशल के बल पर पूर्णतया स्थापित हो जाता है।
वृश्चिकः सौम्य व्यवहार व बुद्धि कौशल के बल पर परिस्थितियों को अनुकूल बनाना इन्हें अच्छी तरह आता है। धार्मिक व सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। यदि मंगल बलवान हो या लग्नेश शनि स्वयं दसवे घर में हो तो जातक धनी होता है। खेलकूद, राजनीति, पुलिस अधिकारी होता है। इसकी सूर्य, गुरु की स्थिति भी अच्छी रहती है।
धनुः यदि बृहस्पति उच्च का हो या नवांश, दशमांश कुण्डली में शुभ हो तो जातक धनी भी हो सकता है। पिता की सेवा करने वाला, सुंदर वस्तुओं को एकत्र करने वाला, उपकारी होता है। व्यापार में विशेष उन्नति प्राप्त करता है।
मकरः कर्म हो ही धर्म समझने वाला, स्वार्थी, मानसिक शक्ति वाला, समयानुकूल कार्य करने वाला, दया से हीन होता है। जीवन के मध्यकाल में सुखी होता है। ऐसा जातक खोजी, आविष्कारक होता है और अपनी खोज से लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है। इसका काम हटकर होता है।
कुंभः यदि दसवे घर में कुंभ राशि हो तो जातक कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ विरोधियों से भी काम निकालने वाला, आस्तिक होता है। आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। शनि की स्थिति अच्छी होने पर खूब धन, पद प्रतिष्ठा मिलती है। पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते। नौकरी करते हैं यदि कुण्डली में शुभ योग हो तो शानदार प्रगति करते हैं।
मीनः मीन राशि दशम में होने से जातक गुरु आशा पालन करने वाला, गौ, ब्राह्मण व देव उपासक होता है। जल से संबंधित कार्यों से जीविका चलाने वाला, सम्मानित होता है। यदि गुरु बलवान हो तो राज्य पद, धन, आयु का दाता होता है।
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किसी भी जातक की कुंडली में चार केंद्र स्थान प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव होता है। दशम भाव कर्म भाव भी कहलाता है। अतः जातक के जीवन में इसका विशेष प्रभाव होता है। कुंडली में दशम घर से कर्म, आत्मविश्वास, आजीविका, करियर, राज्य प्राप्ति, कीर्ति, व्यापार, पिता का सुख, गोद लिए पुत्र का विचार, विदेश यात्रा आदि का विचार किया जाता है। कहा जा सकता है कि दशम भाव किसी के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।परंतु आजीविका की अच्छी स्थिति जानने के लिए मुख्यतः चंद्रमा, गुरु-सूर्य व शनि की स्थिति का अवलोकन भी करना चाहिए। यदि दशम भाव व भाग्य भाव मजबूत है तो निश्चित रूप से अच्छा करियर होता है। साथ ही आपका भविष्य सुनहरा होता है।