किसी भी जातक के जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अलावा उसके ग्रह दषाओं के अनुरूप उसका व्यवहार तथा कर्म निर्धारित होता है… जिसके कारण कुंडली के विष्लेषण के समय उस जातक के ग्रह दषाओं का असर उसके जीवन मे महत्वपूर्ण होता है… चूॅकि इंसान के जीवन में ग्रहो का प्रभाव विषेष प्रभाव शाली होता है अतः उसके प्रष्न के समय चलित दषाओं के अनुरूप लाभ या हानि दृष्टि गोचर होती है… ऐसी स्थिति ग्रहों के अनुकूल और प्रतिकूल स्थान पर होने से भी प्रभावी होती है किंतु उसकी ग्रह दषाओं का पूरा असर उसके जीवन पर दिखाई देता है… सूर्य, चंद्रमा, बुध, गुरू राजसीय स्वभाव से उत्तम फल प्रदान करते हैं यदि उसकी कुंडली में स्थिति अनुकूल हो तो… साथ ही सूर्य अपनी या बुध की दषा में सात्विक गुण के कारण श्रेष्ठ फल प्रदाय करने में सक्षम होता है… बुध की महादषा में स्वयं या गुरू या चंद्रमा की दषाओं में सात्विक भाव से प्रथम या द्वितीय श्रेणी का फल प्रदाय करता है… गुरू या किसी भी सौम्य ग्रह की दषाओं में राहु या केतु की दषाओं में अषुभ फल प्रदाय करता है फिर कुंडली में ग्रहों की स्थिति कुछ भी हों कुछ मात्रा मंें अषुभ फल जरूर प्राप्त होते हैं… शुक्र, चंद्रमा या गुरू की दषाओं में मिश्रित फल प्रदाय करता है, जिसमें कोई पक्ष अच्छा तो दूसरा पक्ष विपरीत कारक होता है…. जैसे शनि की दषा में कार्यक्षेत्र में उत्तमफल प्राप्त होता है तब वहीं पर रिष्तों में मतभेद या अलगाव का कारण बनता है… गुरू या शुक्र की दषाओं में मंगलकारक फल प्रदाय करता है यदि ये ग्रह उत्तम स्थिति में हों तो…. स्वभाव से तामसिक ग्रह प्रतिकूल स्थिति में उत्तमफल प्रदाय करने में सक्षम होते हैं वहीं पर सात्विक गुण वाले ग्रह प्रतिकूल स्थिति में खराब फल प्रदाय करते हैं… इस प्रकार जीवन में ग्रह दषाओं के अनुरूप लाभ या हानि सफलता या असफलता तथा शुभ या अषुभ फल प्राप्त होता है…
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