गंडे, ताबीज, टोने-टोटके और यंत्र-मंत्र का ’’उद्भव काल’’
गंड़े, ताबीज, टोने-टोटके और मंत्रो का ’’उद्भव काल’’ अज्ञात है।यू तो ’’ ऋग्वेद’’ में वर्णित है कि ये सभी त्रिलोकेश्वर महादेव शिव के मुख से उत्पन्न हुए हैं, परन्तु उद्भव काल अज्ञात है। इसका प्रचलन कब से हुआ तथा ’’टोटके’’ को सृष्टि में सर्व प्रथम आरम्भ किसने किया यह वेदों में भी वर्णित नही है। क्योकिं ऋग्वेद आर्य जाति का विश्व भाषा का सबसे प्राचीन ग्रंथ है और यंत्र-मंत्र-तंत्र टोटके आदि महाशक्तियों का उसमें अति विकसित वर्णन है। अतः निश्चित ही वेदों के निर्माण से पूर्व ही उपरोक्त तत्वों की उत्पत्ति हो चुकी है।
गंडे, ताबीज, यंत्र-मंत्र व टोने-टोटकों का ज्ञान विश्व के सभी जातियों में किसी न किसी रूप् में विद्यमान था। उतना तो अब नही है, परन्तु उसका अस्तित्व आज भी सशक्त व विद्यमान हैं जितना कि पौराणिक काल में था अंतर मात्र इतना ही है कि पूर्व में प्रायः समस्त ऋषि-महर्षि इस विद्या के ज्ञाता थे और अब यह विद्या उंगली पर गिनने लायक सिद्ध प्राप्त मर्मज्ञों के पास ही सीमित रह गया है
’’गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में कहा है कि कलियुग मे जीवों के कष्टों को देखकर, उसे दूर करने के लिए जगहित की करूण कामना से प्रेरित होर श्री उमा महेश्वर ने यंत्र-मत्र व टोने-टोटकों की सृष्टि की।’’
टोने-टोटके आदि की शक्तियों का ’’चारों वेद’’ स्वतः प्रमाण है। इनको किसी से प्रमाणित होने की आवश्यकता नही। यह ’’अथर्ववेद का रहस्य है। आज इसका महत्व है कि इसका प्रयोग और परीक्षण सही विधि से अर्थात् इस पुस्तक में दर्शाए गए नियमों के अनुसार करने की जरूरत है। टोटके विज्ञान अपने में अद्भूत एवं विशाल महा-शक्तियों से सम्पन्न है, इसमें प्रकृति के वे सभी गूढ़ तत्व निहित है, जिनमें मानव जीवन की पूर्णता एवं प्रकृति का रहस्य छिपा हुआ है।