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chaitra navratri 2023 : चैत्र नवरात्रि के पहले दिन की व्रत कथा…

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chaitra navratri 2023 : चैत्र नवरात्रि के पहले दिन की व्रत कथा…

Navratri 2023 Maa Durga Vrat Katha In Hindi: मां की भक्ति में जो भक्त नवरात्रि के व्रत रखते हैं, उनको नवरात्र व्रत कथा पढ़नी चाहिए। मान्यता है कि इसके बिना व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है। यहां आप श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा को हिंदी में पढ़ सकते हैं। मां के भक्तों के लिए यहां प्रस्तुत है नवरात्रि व्रत । जानें क्या है नवरात्रि की पौराणिक कहानी।

Navratri 2023 Maa Durga Vrat Katha In Hindi: साल में दो बार नवरात्रि का पर्व आता है। इस वर्ष साल के पहले यानी चैत्र नवरात्र की शुरूआत 22 मार्च से हुई है। इन नौ दिनों में भक्त मां दुर्गा की उपासना पूरे श्रद्धाभाव से करेंगे। मां की पूजा को कष्ट हरने वाली और मनोकामना पूर्ति वाली माना गया है। नवरात्र में व्रत (Navratri Vrat) रखने की भी परंपरा है। अगर आप भी मां की भक्ति में व्रत रखते हैं नवरात्र की व्रत कथा जरूर पढ़ें। इसके बिना व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता – ऐसा माना जाता है। नवरात्रि व्रत कथा में मां की महिमा बताई गई है। तो आप भी यहां जानें नवरात्रि की पौराणिक कहानी (Maa Durga Vrat Katha Story) और पढ़ें नवरात्रि व्रत कथा के हिंदी लिरिक्स
नवरात्रि व्रत कथा के अनुसार, प्राचीन समय में बृहस्पति जी ने ब्रह्माजी से चैत्र और आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले नवरात्र के महत्व को जानने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा- इस व्रत का फल क्या है? इसकी विधि और इस व्रत को सर्वप्रथम किसने किया इन सब के बारे में विस्तार से कहिये?ब्रह्माजी ने जवाब देते हुए कहा- हे बृहस्पते! प्राणियों के हित के लिए तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। जो इंसान मां दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करता है, उसकी सारी मनोकामना पूर्ण होती है। इसी तरह नवरात्र व्रत समस्त कामनाओं की पूर्ती करने वाला है। इस व्रत को करने से संतान सुख, विद्या, धाम और अन्य सुखों की प्राप्ति होती है। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है। घर में समृद्धि आती है और समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है। यदि व्रत करने वाला मनुष्य नवरात्र के नौ दिनों तक उपवास नहीं कर सकते तो कम से कम एक समय भोजन ग्रहण करें और बान्धवों सहित दस दिन नवरात्र व्रत की कथा सुनें।ब्रह्मा जी ने फिर कहा- हे बृहस्पते! जिसने सबसे पहले नवरात्र महाव्रत को किया है, उसकी कथा मैं सुनाता हूं।
प्राचीन काल में मनोहर नगर में एक पीठत नामक अनाथ ब्राह्मण रहता था। वह देवी दुर्गा का परम भक्त था। उसकी एक पुत्री सुमति थी, जो अत्यन्त सुन्दर थी। उसके पिता प्रतिदिन मां दुर्गा की पूजा किया करता था। ब्राह्मण की भांति उनकी बेटी भी प्रतिदिन ये पूजा किया करती थी। एक दिन सुमति खेलने में व्यस्त हो गई। वह भगवती की पूजा में शामिल नहीं हो सकी। यह देख उसके पिता यानी ब्राह्मण को क्रोध आ गया। क्रोधवश उसके पिता ने उसका विवाह किसी दरिद्र और कोढ़ी से कराने को कहा।
पिता की ऐसी बातें सुन बेटी को बड़ा दुख हुआ। फिर भी उसने पिता के द्वारा क्रोध में कही गई बातों को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। पिता से कहने लगी- ही पिता! मैं आपकी पुत्री हूं, आपकी जो इच्छा हो वही करो। जिसके साथ करना चाहते हो वहीं कर दो। भाग्य में जो लिखा है वही होगा, उसका लिखा बदला नहीं जा सकता है। क्योंकि कर्म करना मनुष्य के अधीन है। किंतु फल देना ईश्वर का काम है।
तत्पश्चात उसके पिता ने एक कोढ़ी के साथ अपनी कन्या का विवाह करा दिया। और कहा- हे पुत्री! अब तुम अपने कर्म का फल भोगो, देखते हैं भाग्य के भरोसे तुम क्या करती हो। पिता के ऐसे कटु वचन से सुमति मन ही मन सोचने लगी- अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है, जिससे मुझे ऐसा पति मिला है। मन में सोचते हुए सुमति विवाह के बाद अपने पति के साथ चली गई।उसके पति के पास कोई घर नहीं था। इसके कारण उसे वन में ही घास के आसन पर रात बितानी पड़ी।
गरीब कन्या की इस दशा को देख माता भगवती उसके पिछले जन्म के पुण्य प्रभाव से प्रकट हुईं और सुमति से बोलीं- हे कन्या! मैं तुमपर प्रसन्न हूं, तुम्हें कुछ देना चाहती हूं, मांगों क्या मांगती हो।
इस पर सुमति ने उनसे प्रश्न किया कि आप कौन हैं और मेरी किस बात से प्रसन्न हैं? तब देवी कहने लगी- मैं आदिशक्ति भगवती हूं। मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूं। मैं प्रसन्न होने पर प्राणियों का दुख दूर कर उन्हें खुशियां देती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं।
मैं तुमपर तुम्हारे पूर्व जन्म के पुण्य कार्य से प्रसन्न हूं। तुम पिछले जन्म में निषाद की पतिव्रता स्त्री थी। एक दिन तुम्हारे पति ने कहीं चोरी किया था। जिसके कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ कर जेलखाने में कैद कर दिया था। उन लोगों ने तुम दोनों को भोजन भी नहीं दिया था। इस तरह नवरात्र के दिनों में तुम और तुम्हारे पति ने न तो कुछ खाया और न ही जल ग्रहण किया था। इसलिए नौ दिनों तक नवरात्र व्रत का फल तुम्हें प्राप्त हुआ है।
ये बताते हुए देवी भगवती बोलीं- हे ब्राह्मणी, उन दिनों अनजाने में जो व्रत हुआ, उस व्रत के पुण्य प्रभाव से मैं प्रसन्न होकर आज तुम्हें मनोवांछित वरदान दे रही हूं। तुम्हारी जो इच्छा है कहो।
इतने में कन्या बोली- हे माता यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुखहरनी दुर्गे! मेरा प्रणाम स्वीकार करो और कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर कर दो। माता ने कन्या की इस इच्छा की तुरंत पूर्ति कर दी। इस तरह, माता भगवती की कृपा से ब्राह्मणी के पति का शरीर रोगहीन हो गया।अपने पति को कुष्ट रोग से रहित देखकर ब्राह्मणी देवी की स्तुति करने लगी- हे दुर्गे! आप दुर्गति को दूर करने वाली, समस्त दु:खों को हरने वाली, निरोग करने वाली, प्रसन्न हो मनोवांछित वर देने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो। हे अम्बे! मुझे मेरे पिता ने कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह करा कर घर से निकाल दिया। पिता से तिरस्कृत मैं वन में भटक रही हूं, आपने मेरे इस विपदा को दूर कर उद्धार किया है, हे देवी! मैं आपको प्रणाम करती हूं। कृपा करके मेरी रक्षा करो।
उस ब्राह्मणी की ऐसी स्तुति सुन देवी और प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से बोलीं- हे ब्राह्मणी! तुम्हें शीघ्र ही एक उदालय नामक पुत्र होगा, जो अति बुद्धिमान, कीर्तिवान, धनवान उत्पन्न होगा। इसके बाद देवी ने फिर ब्राह्मणी से कहा कि तुम्हारी जो कुछ भी इच्छा है वह सब मांगो। सुमति ने फिर कहा कि हे भगवती दुर्गे! यदि आप मुझ पर इतना प्रसन्न हैं तो कृपा करके मुझे नवरात्र व्रत की विधि के बारे में विस्तार से बताएं।
ब्राह्मणी को नवरात्रि के नियम और विधि बताते हुए मां दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें समस्त पापों को दूर करने वाले नवरात्र व्रत की विधि बतलाती हूं- चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक व्रत करें। अगर तुम दिन भर का उपवास न कर सको तो कम से कम एक समय भोजन करो। किंतु व्रत के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि को शुभ मुहूर्त में घट स्थापन करो और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सिंचो। इसके बाद महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी की मूर्तियां स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करो।
आगे बताते हुए माता ने कहा, बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। वहीं, जायफल से अर्घ्य देने पर कीर्ति, आंवले से कीर्ति व सुख की प्राप्ति, दाख से कार्य की सिद्धि होती है और केले से अर्घ्य देने से पुत्र व आभूषणों की और कमल से राज सम्मान की प्राप्ति होती है। इस प्रकार फलों और फूलों से अर्घ्य देकर व्रत का समापन करने से नवें दिन हवन जरूर करना चाहिए। हवन के लिए खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), नारियल, दाख और कदम्ब जैसी विभिन्न सामग्रियों की जरूरत होती है।
खांड, घी, जौ, नारियल, शहद, तिल और फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत के अंतिम दिन विधि विधान से होम करके आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ सिद्धि के लिए उन्हें क्षमतानुसार दक्षिणा अवश्य दें।
इस प्रकार बताई हुई विधि के अनुसार जो मनुष्य नवरात्र व्रत करता है उसके सारे मनोरथ सिद्ध होते हैं। इन नौ दिनों में दान आदि करने से करोड़ों गुना अधिक फल मिलता है। साथ ही इस व्रत से अश्वमेध यज्ञ का फल मिल जाता है। हे ब्राह्मणी! संपूर्ण कामनाओं की पूर्ति करने वाले इस उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर या घर में भी विधि पूर्वक किया जा सकता है।
ब्रह्मा जी ने बृहस्पते जी से बोला, हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को नवरात्रि व्रत विधि बताने का बाद देवी अर्न्तध्यान हो गई। अत: जो पुरुष या स्त्री इस व्रत को पूरी श्रद्धा और भक्ति से करता है वह इस लोक में अत्यंत सुखों को प्राप्त कर अंत में मोक्ष को पा लेता है। यह इस दुर्लभ व्रत का महात्म्य है जो मैंने तुम्हें बताया है। ऐसा सुनकर बृहस्पति जी आनन्द से प्रफुल्लित हुए और कहने लगे- हे ब्रह्मन! आपकी मुझ पर अति कृपा है जो आपने मुझे इस व्रत का महत्व सुनाया। तब ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! यह देवी भगवती संपूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन नहीं जानता।