श्रावण मास की अष्टमी को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यदि इस दिन बुधवार हो तो उसे बुधाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान षिव के भैरव रूप की पूजा इस दिन की जाने की प्रथा है। भगवान भोलेनाथ के भैरव रूप की पूजा या स्मरण मात्र से सभी प्रकार के पाप, दोष ताप तथा कष्ट दूर होते हैं। विषेष कर जिनकी कुंडली में बुध राहु से पीडि़त हो उसे कालाष्टमी का व्रत तथा पूजन अवष्य करना चाहिए जिससे जीवन में सफलता प्राप्ति का रास्ता खुलता है। भगवान भैरवनाथ तंत्र-मंत्र की विद्याओं के ज्ञाता हैं साक्षात रूद्र हैं। षिवपुराण में भगवान षिव के भैरव रूप का वर्णन है कि सृष्टि की रचना, पालन और संहारक इनके द्वारा किया गया। इस रूप की पूजा से सभी प्रकार से रक्षा कर पाप से मुक्ति देते हैं।
षिवजी के भैरव रूप की पूजा के लिए षोड्षोपचार सहित पूजा कर आध्र्य देना चाहिए। रात के समय जागरण कर भोलेषंकर एवं माता पार्वती की कथा एवं भजन कीर्तन कर भैरवजी की कथा का श्रवण-मनन करना चाहिए। मध्य रात्रि होने पर शंख, नगाड़ा, घटा आदि बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए। भैरव भगवान का वाहन श्वान है अतः इस दिन कुत्ते को आहार देना चाहिए। कालभैरव स्त्रोत का पाठ तथा उपासना कर दान आदि देने से जीवन में सफलता प्राप्त होती है तथा कालसर्प दोष से दुषित बुध तथा षिक्षा में बाधा दूर होती है।
Pt.P.S Tripathi
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