भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी मनाई जाती है। इसे भादोषुदि भी कहते हैं। भगवान षिव एवं पार्वती का पूजन करते हैं। सूक्ष्म जीवो को आहार प्रदान किया जाता है। इसके लिए प्रातःकाल ब्रम्ह मुहूर्त में जागरण कर नदी का स्नान आदि कर गणेषजी तथा षिवपार्वती जी की पूजन करें। सोलह प्रकार के सप्तऋषियों की पूजा करें। इस दिन माता अरूंधति के नाम का जाप कर पूजन तथा हवन करने की भी प्रथा है। रात्रि में कथा सुनें तथा रात्रि जागरण करके षिव-पावर्ती, सप्तऋषि तथा माता अरूंधति की आरती करनी चाहिए। पूरे दिन व्रत रखते हुए मखाने तथा समा से व्रत का पारण करें। अतः इस दिन उनकी पूजा तथा आराधना करने से पाप का प्रायच्चित होता है तथा पाप-षाप से मुक्ति प्राप्त होती है एवं जीवन में सभी प्रकार की कमी दूर होकर समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस व्रत को पुरूष तथा स्त्रियाॅ दोनों समान रूप से कर सकते हैं। सप्तऋषियों की कृपा से देवलोक प्राप्त होता है तथा संसार के सभी पापों की निवृत्ति होती है।
Pt.P.S Tripathi
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