
बृहस्पतिवार का व्रत
हिंदू धर्म में सप्ताह के प्रत्येक दिन का अपना विशेष धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व होता है। इन्हीं दिनों में बृहस्पतिवार का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह दिन देवगुरु बृहस्पति को समर्पित होता है, जो ज्ञान, धर्म, विवेक, संतान सुख, वैवाहिक जीवन, धन और भाग्य के कारक ग्रह माने जाते हैं। जिन जातकों की कुंडली में गुरु कमजोर, अशुभ या अस्त अवस्था में होते हैं, उनके लिए बृहस्पतिवार का व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है। शास्त्रों के अनुसार श्रद्धा और विधि-विधान से किया गया बृहस्पतिवार का व्रत न केवल ग्रह दोषों को शांत करता है, बल्कि जीवन में स्थिरता, सम्मान और सकारात्मक ऊर्जा भी प्रदान करता है।
बृहस्पतिवार व्रत का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व
देवगुरु बृहस्पति को देवताओं का गुरु कहा गया है। वे ज्ञान, वेद, शास्त्र और नीति के अधिष्ठाता हैं। ज्योतिष में बृहस्पति को धर्म, भाग्य, शिक्षा, विवाह, संतान और धन का मुख्य कारक माना गया है। जब कुंडली में गुरु अशुभ हो जाते हैं, तो व्यक्ति को जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे—
- विवाह में देरी
- संतान सुख में बाधा
- शिक्षा में रुकावट
- धन की कमी
- निर्णय क्षमता कमजोर होना
- समाज में मान-सम्मान की कमी
ऐसे में बृहस्पतिवार का व्रत गुरु ग्रह को मजबूत करने का सबसे सरल और प्रभावी उपाय माना गया है।
बृहस्पतिवार व्रत कौन कर सकता है?
बृहस्पतिवार का व्रत स्त्री-पुरुष, विवाहित-अविवाहित, छात्र, नौकरीपेशा और व्यापारी, सभी कर सकते हैं। विशेष रूप से यह व्रत निम्न लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी होता है—
- जिनका विवाह नहीं हो रहा
- जिनकी कुंडली में गुरु नीच या कमजोर हो
- संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति
- शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता चाहने वाले
- आर्थिक संकट से गुजर रहे लोग

बृहस्पतिवार व्रत कब और कितने समय तक करें?
बृहस्पतिवार का व्रत किसी भी शुक्ल पक्ष के गुरुवार से शुरू किया जा सकता है। आमतौर पर यह व्रत 16 गुरुवार या 21 गुरुवार तक किया जाता है।
यदि विशेष समस्या हो, तो किसी विद्वान ज्योतिषी की सलाह से अवधि तय की जा सकती है।
बृहस्पतिवार व्रत से पहले की तैयारी
व्रत शुरू करने से एक दिन पहले ही मन और शरीर दोनों की शुद्धता पर ध्यान देना चाहिए।
- सात्विक भोजन करें
- मांस-मदिरा से पूर्ण परहेज करें
- क्रोध, नकारात्मक विचार और अपशब्दों से बचें
- ब्रह्मचर्य का पालन करें
- पीले रंग के वस्त्र और पूजा सामग्री तैयार रखें
बृहस्पतिवार व्रत की संपूर्ण विधि
प्रातः काल की विधि
बृहस्पतिवार के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठें। स्नान कर स्वच्छ पीले या हल्के रंग के वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थान को साफ करें और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
पूजा स्थल की स्थापना
- चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएँ
- भगवान विष्णु, श्री नारायण या देवगुरु बृहस्पति का चित्र या मूर्ति स्थापित करें
- कलश में जल भरकर उस पर हल्दी या पीले पुष्प रखें
पूजा सामग्री
- पीले फूल
- चने की दाल
- हल्दी
- पीला चंदन
- घी का दीपक
- केला
- गुड़
- पीली मिठाई (बूंदी, बेसन का लड्डू)
- विष्णु सहस्रनाम या बृहस्पति मंत्र की पुस्तक
पूजा विधि
सबसे पहले दीप प्रज्वलित करें। भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति का ध्यान करते हुए उन्हें पीले पुष्प अर्पित करें। इसके बाद हल्दी, चने की दाल, गुड़ और केले का भोग लगाएँ।
अब निम्न मंत्र का जाप करें—
“ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः”
इस मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। जाप के बाद विष्णु सहस्रनाम या बृहस्पतिवार व्रत कथा का पाठ करें।

बृहस्पतिवार व्रत कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्राचीन काल में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। उसके जीवन में दुखों का अंबार था। किसी संत की सलाह पर उसने बृहस्पतिवार का व्रत प्रारंभ किया। नियमपूर्वक पूजा और कथा सुनने से देवगुरु बृहस्पति प्रसन्न हुए और उसके जीवन से दरिद्रता दूर हो गई। उसके घर में सुख, शांति और समृद्धि आ गई। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा और नियम से किया गया व्रत अवश्य फल देता है।
व्रत के दिन क्या खाएँ?
बृहस्पतिवार के व्रत में एक समय भोजन करने का विधान है। भोजन में केवल सात्विक चीजें लें—
- पीली दाल
- चावल
- घी
- हल्दी युक्त सब्जी
- केला
नमक कम मात्रा में प्रयोग करें।
बृहस्पतिवार व्रत में क्या न करें?
- बाल और दाढ़ी न कटवाएँ
- पीले वस्त्रों का अपमान न करें
- झूठ, छल और निंदा से बचें
- स्त्रियों का अपमान न करें
- गुरुजनों और ब्राह्मणों का अपमान न करें
बृहस्पतिवार व्रत के लाभ
बृहस्पतिवार का व्रत करने से जीवन में अनेक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलते हैं—
- कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होता है
- विवाह संबंधी बाधाएँ दूर होती हैं
- संतान सुख की प्राप्ति होती है
- आर्थिक स्थिति मजबूत होती है
- शिक्षा और करियर में उन्नति होती है
- मानसिक शांति और आत्मविश्वास बढ़ता है
व्रत उद्यापन विधि
जब व्रत पूरे हो जाएँ, तो अंतिम गुरुवार को उद्यापन अवश्य करें।
- पीले वस्त्र दान करें
- चने की दाल, हल्दी और केला दान करें
- ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन कराएँ
- देवगुरु बृहस्पति से क्षमा और आशीर्वाद माँगें
निष्कर्ष
बृहस्पतिवार का व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाला आध्यात्मिक उपाय है। जब यह व्रत पूर्ण श्रद्धा, नियम और विश्वास के साथ किया जाता है, तो देवगुरु बृहस्पति की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। यदि जीवन में बार-बार बाधाएँ आ रही हों, भाग्य साथ न दे रहा हो या गुरु दोष के कारण समस्याएँ बनी हों, तो बृहस्पतिवार का व्रत अवश्य करना चाहिए।





