गणेश जी के मंत्र का स्मरण कर के यात्रा प्रारंभ करने से यात्रा निर्विघ्न एवं लाभप्रद होती है। शकुन विचार करना भी सफल यात्रा का रहस्य माना गया है। जब हम किसी भी यात्रा को प्रारंभ करते हैं, तो जो भी व्यक्ति, वस्तु, जीव हमारे सम्मुख होते हैं, वे शकुन कहलाते हैं, जैसे किसी स्त्री का दिखना, किसी का छींकना, जानवर दिखना आदि कई शुभाशुभ शकुन होते हैं। यात्रा में हाथी, घोड़ा, ब्राह्मण, जल से भरा हुआ बर्तन, दही, नेवला, पुत्रवती स्त्री, श्रृंगार किये हुए स्त्री, कन्या, सरसांे आदि शुभ शकुन माने गये हैं। बिड़ाल (बिल्ली) युद्ध, अथवा झगड़ा, विधवा स्त्री, बंध्या स्त्री, चमड़ा, सन्ंयासी, लकडि़यां, छींक, बुरे शब्द आदि यात्रा के समय अशुभ शकुन माने गये हैं। यात्रा में पहला अपशकुन हो, तो 11 श्वास ले कर, दूसरा अपशकुन हो, तो 16 श्वास ले कर जाएं और तीसरा अपशकुन हो, तो कभी न जाएं। एक कोस दूर जाने पर शुभ-अशुभ शकुनों का फल नहीं होता है।
यात्राओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: लघु यात्रा और दीर्घ यात्रा। लघु यात्राएं उन्हें कहते हैं, जो यात्राएं सौ योजन (1200 किमी.) से कम हों तथा दीर्घ यात्रा इससे अधिक दूरी की यात्रा मानी गयी है। लघु यात्रा मात्र होरा एवं राहु काल का विचार कर के आरंभ की जा सकती है।
सूर्योदय से सूर्यास्त तक के दिनमान को 8 भागों में विभाजित कर राहु द्वारा प्रतिनिधित्च किये गये लगभग डेढ़ घंटे के समय को राहु काल कहते हैं। राहु काल में किसी शुभ कार्य के लिए निकलना वर्जित है। जिस दिशा में यात्रा करनी हो, उस दिशा के स्वामी ग्रह की होरा में यात्रा करना शुभ माना गया है। होरा निकालने की विधि इस प्रकार है: सूर्योदय से एक घंटा पर्यंत उसी दिन की होरा होती है। तत्पश्चात एक घंटे तक उस वार से वार की होरा होती है। इसी क्रम में सूर्योदय से ले कर अगले दिन के सूर्योदय तक चैबीस होरा मानी गयी हैं।
दीर्घ यात्रा में योगिनी, काल राहु, गोचर, दिक्शूल, चंद्रमा, भद्रा एवं समय शूल का विचार किया जाता है। यात्रा के समय योगिनी का सम्मुख, अथवा दाहिने भाग में होना अशुभ माना गया है। काल राहु का भी सम्मुख एवं दाहिने होना अशुभ माना गया है। चंद्रमा का निवास मेष, सिंह एवं धनु राशियों की पूर्व दिशा में होता है। वृष, कन्या और मकर के चंद्रमा का निवास दक्षिण दिशा में होता है। मिथुन, तुला और कुंभ के चंद्रमा का निवास पश्चिम दिशा में होता है। कर्क, वृश्चिक, मीन राशि के चंद्र का निवास उत्तर दिशा में होता है। यात्रा के समय चंद्रमा सम्मुख, अथवा दाहिने भाग में अच्छा फल देता है।
सम्मुखे अर्थ लाभाय दक्षिणे सुख संपदा | पृष्ठतो मरणं चैव वामे चन्द्रे धनक्षय:
अर्थात, चंद्रमा सम्मुख हो, तो धन लाभ, दायें सुख-संपत्ति, पीछे हो, तो मरण एवं बायंे धन हानि देता है। गोचर में चंद्रमा यात्री की राशि से चतुर्थ, अष्टम एवं द्वादश होने से खराब फल देता है तथा अष्टम चंद्रमा में यात्रा वर्जित है। यात्रा में तीनो पूर्वा नक्षत्रों की प्रथम 16 घडि़यां, कृतिका की प्रथम 21 घडि़यां, मघा की 11 घडियां़, भरणी की 7 घडि़यां, स्वाती, विशाखा, ज्येष्ठा, अश्लेषा, इन नक्षत्रों की 14 घडि़यां निषिद्ध मानी गयी हैं। दिक्शूल में यात्रा करने से हानि होती है तथा दुर्घटना का भय बना रहता है। अतः लंबी यात्रा दिक्शूल में नहीं की जाती है। भद्रा में भी यात्रा अशुभ फल देती है। यात्रा में समय शूल पर भी विचार किया जाता है। पूर्व दिशा की यात्रा प्रातः काल नहीं करनी चाहिए। दक्षिण दिशा की यात्रा मध्याह्न में, पश्चिम दिशा की यात्रा संध्या काल में, उत्तर दिशा की यात्रा मध्य रात्रि में करने से विपरीत परिणाम मिलते हंै। अतः समय शूल में यात्रा करना वर्जित है। यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व रविवार को घृतयुक्त पदार्थ खाना चाहिएं। सोमवार को चंदन का लेप लगा कर यात्रा करनी चाहिए। मंगलवार को गुड़ खा कर यात्रा करनी चाहिए। बुधवार को काला तिल, गुरुवार को दही, अथवा दही से बना पदार्थ, शुक्रवार को घी अथवा घी से निर्मित पदार्थ, शनिवार को तिल से निर्मित पदार्थ खा कर यात्रा करने से यात्रा के अनेक दोष नष्ट होते हैं और यात्रा सफल होती है।
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