जहां एक ओर साधारण जन-मानस शनि की साढ़े-साती व ढैय्या (कंटक शनि) को लेकर भयभीत रहता है, वहीं एक विद्वान व अनुभवी ज्योतिषी यह जानता है कि गोचर फल अध्ययन के लिए जातक की कुंडली को अनेक कसौटियों पर परखना पड़ता है। मात्र शनि के जन्मकालीन चंद्रमा, उससे 2 या 12 भावों पर 4 अथवा 8वें भाव पर गोचरस्थ होने से भयभीत होने का कोई कारण नहीं। गोचर का सूक्ष्मता से अध्ययन करने हेतु महर्षि पराशर द्वारा बताई अष्टकवर्ग की विधि का प्रयोग एक अनुभवी ज्योतिषी करना कभी नहीं भूलता। अष्टकवर्ग पद्धति में ग्रह की गोचर में स्थिति न केवल जन्मकालीन चंद्रमा तथा जन्म लग्न से संबंध रखते हैं, अपितु प्रत्येक ग्रह की स्थिति जन्मकालीन सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि से विभिन्न भावों में देखी जाती है। इनमें राहु-केतु जो कि छाया ग्रह है, को सम्मिलित नहीं किया जाता। महर्षि पराशर कृत बृहत पाराशर होरा शास्त्र में राहु-केतु के अष्टकवर्ग बनाने का कोई उल्लेख नहीं है। राहु-केतु का गोचर यद्यपि भृगु (नाड़ी) में बहुत महत्वपूर्ण है, परंतु शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार अष्टकवर्ग में इनका कोई स्थान नहीं। अष्टकवर्ग पद्धति में प्रत्येक ग्रह को लग्न तथा अन्य सभी ग्रहों से उसकी विभिन्न भावों में जन्मकालीन स्थिति के अनुसार विभिन्न राशियों में 0 (शून्य) अथवा 1 (एक) अंक प्राप्त होता है। इसी के आधार पर प्रत्येक ग्रह का भिन्नाष्टक वर्ग बनाया जाता है। तत्पश्चात् सभी सातों ग्रहों के भिन्नाष्टक वर्ग के आधार पर सर्वाष्टक वर्ग की गणना की जाती है। सर्वाष्टक वर्ग के आधार पर त्रिकोण शोधन तथा एकाधिपति शोधन के पश्चात शोध्य पिंड की गणना की जाती है। इसके बाद शुभ-अशुभ फल देने वाले नक्षत्रों की गणना की जाती है, जिसपर सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों के गोचर के परिणाम स्वरूप जातक को विभिन्न ग्रहों के कारक तत्व अनुसार फलों को भोगना पड़ता है। सामान्यतः सर्वाष्टक वर्ग में जिस राशि को 18 से कम अंक प्राप्त हांे वह राशि निर्बल मानी जाती है, 25 अंक पर मध्यम, 30 या उससे अधिक अंक पर शुभ। शनि तथा अन्य ग्रहों के गोचर में संबंधित फलादेश में सर्वाष्टक वर्ग तथा उनके अपने भिन्नाष्टक वर्ग में अच्छे बिंदु होने पर शुभ कम बिंदु होने पर अशुभ फल कहे गये हैं। ग्रहों के भिन्नाष्टक में 4 से कम बिंदु किसी राशि में होना अशुभ माना गया है तथा 4 या उससे अधिक बिंदु शुभ माने जाते हैं। परंतु इन सामान्य नियमों के कुछ अपवाद भी हैं। जैसे 6, 8 अथवा 12 भावों में सर्वाष्टक वर्ग तथा ग्रहों के भिन्नाष्टक वर्ग में कम बिंदु होना अच्छा माना जाता है। साथ ही यदि विंशोत्तरी दशा अच्छी चल रही हो तो अन्य भावों में (6, 8, अथवा 12 को छोड़) भी यदि कम बिंदु हों तब भी बुरे फल नहीं प्राप्त होते। अर्थात शुभ ग्रहों की प्रबल दशा में यदि शनि का गोचर अष्टकवर्ग में कम बिंदु लिये राशि से हो तब भी शुभ फल ही प्राप्त होंगे।
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