astrologer

भगवान विष्णु का मास: वैशाख मास

149views

वैशाख मास परम पावन मास है। यह भगवान विष्णु का प्रिय मास है, इसलिए इस मास स्नान, तर्पण, मार्जन, पूजन आदि का विशेष महत्व है। वैशाख मास में जब सूर्य मेष राशि का होता है, तब किसी बड़ी नदी, तालाब, तीर्थ, सरोवर, झरने, कुएं या बावड़ी पर निम्नोक्त श्लोक का पाठ कर श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए। श्लोक ‘‘यथाते माधवो मासोवल्लभो मधुसूदन। प्रातः स्नानेन मे तस्मिन फलदः पापहा भव।। स्नान करने की विधि प्रातः काल उठकर सर्वप्रथम किसी नदी, तालाब, तीर्थ स्थान, कुएं या बावड़ी पर जाकर हाथ में कुश लेकर विधिपूर्वक आचमन करें, हाथ पांव धोकर भगवान नारायण का स्मरण करते हुए सविधि स्नान करें और ¬ नमो नारायणाय मंत्र का जप करें। फिर संकल्प करें तथा मन को एकाग्र कर शुद्ध चित्त से संवत, तिथि, मास, पक्ष, नक्षत्र, चंद्र, स्थान, तीर्थ, प्रांत, शहर, गांव, नाम, गोत्र, ऋतु, अयन, सूर्य तथा गुरु के नाम का उच्चारण करके संकल्प को छोड़ कर फिर स्नान करें और गंगा से प्राथना करें कि आप श्री भगवान विष्णु के चरणों से प्रकट हुई हैं, विष्णु ही आपके देवता हंै। इसलिए आपको वैष्णवी कहते हैं। हे देवि! आप सभी पापों से मेरी रक्षा करें। स्वर्ग, पृथ्वी और अंतरिक्ष में कुल साढ़े तीन करोड़ तीर्थ हैं और वे सभी आपके अंदर विद्यमान हैं। इसीलिए हे माता जाह्नवी! देव लोक में आपका नाम नन्दिनी और नलिनी है। इनके अलावा अन्य नामों से भी आपको जाना जाता है, जैसे दक्षा, पृथ्वी विपद्रंगा, विश्वकाया, शिवा, अमृता, विद्याधरी, महादेवी, लोक प्रसादिनी, क्षेमकरी, जाह्नवी, शांति प्रदायिनी आदि। स्नान करते समय इन पवित्र नामों का स्मरण व ध्यान करना चाहिए। ऐसा करने से त्रिपथ गामिनी भगवती गंगा प्रकट हो जाती हैं। दोनों हाथों में जल लेकर चार, छह और सात बार नामों का जप कर शरीर पर डालें, फिर स्नान करें। फिर आचमन कर शुद्ध वस्त्र पहनकर सबसे पहले सृष्टिकत्र्ता ब्रह्मा का, फिर श्री विष्णु, रुद्र और प्रजापति का और तब देवता, यक्ष, नाग, गंधर्व, अप्सरा, असुरगण, क्रूर सर्प, गरुड़, वृक्ष, जीव-जंतु, पक्षी आदि को जलांजलि दें। देवताओं का तर्पण करते समय यज्ञोपवीत को बायें कंधे पर रखें और ऋषि का तर्पण करते समय माला की तरह धारण करें। फिर पितृ तर्पण करें। सनक, सनन्दन सनातन और सनत्कुमार दिव्य मनुष्य हैं। कपिल, आसुरि, बोढु तथा पंचशिख प्रधान ऋषि पुत्र हंै। मरिचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, प्रचेता, वशिष्ठ, नारद तथा अन्यान्य देवर्षियों, ब्रह्मर्षियों आदि का अक्षत और जल से तर्पण करें और कहें कि मेरे द्वारा दिए गए जल से तृप्त हों और उसे स्वीकार कर आशीर्वाद दें। पितृ तर्पण में दक्षिणमुख होकर अपसव्य जनेऊ दाएं कंधे पर रखें। फिर बाएं घुटने को पृथ्वी पर टेककर बैठें और उनका तिल तथा जल से तर्पण करें। फिर पूर्वाभिमुख और सव्य होकर जनेऊ सीधी करके आचमन कर सूर्य देव को अघ्र्य दें और निम्नोक्त श्लोक का पाठ कर परिक्रमा करें तथा जल, अक्षत पुष्प, चंदन आदि अर्पित करते हुए प्रार्थना करें। श्लोक नमस्ते विश्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मरूपिणे। सहस्र रश्मये नित्यं नमस्ते सवतेजसे । नमस्ते रुद्र वपुषे नमस्ते भक्त वत्सल।। पद्मनाभ नमस्तेस्तु कुण्डलांगदभूषित। नमस्ते सर्वलोकानां सुप्तानामुपबोधन।। सुकृतं दुष्कृतं चैव सर्व पश्यसि सर्वदा।। सत्यदेव नमस्तेऽस्तु प्रसीदमम् भास्कर।। दिवाकर नमस्तेऽस्तु प्रभाकर नमोऽस्तुते।। भगवान की पूजा विधि भगवान केशव की कृपा के लिए उनकी पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए। पूजा तीन प्रकार की होती है – वैदिक, तांत्रिक और मिश्र। भगवान श्री हरि की पूजा तीनों ही विधियों से करनी चाहिए। शूद्र वर्ण के लिए पूजन की केवल तांत्रिक विधि विहित है। साधक को एकाग्रचित्त होकर निष्ठापूर्वक शास्त्रसम्मत विधि से भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। भगवान के विग्रह की चल और अचल दोनों रूपों से प्रतिष्ठा का विधान है। साधक सुविधानुसार किसी भी रूप से प्रतिष्ठा कर सकता है। पूजन में स्नान और अलंकरण आवश्यक है। प्रतिमा को शुद्ध जल, गंगाजल तथा पंचामृत से स्नान कराने के पश्चात वस्त्र धारण और अलंकरण कराकर सिंहासन पर स्थापित करें और फिर षोडशोपचार पूजन करें। फिर भोग लगाकर आरती करें। तत्पश्चात प्रार्थना, स्तुति व परिक्रमा कर दंडवत प्रणाम करें और अंत में उनकी झांकी स्वरूप का ध्यान करें। इस प्रकार पूजा करने के बाद सुख-शांति की प्राप्ति तथा धन-धान्य की वृद्धि के लिए हवन भी करें। भगवद्विग्रह की स्थापना करने से सार्वभौम पद की, मंदिर बनवाने से तीनों लोकों की और अनुष्ठान करने से भगवत्सायुज्य की प्राप्ति होती है। इस प्रकार वैशाख मास में शास्त्रानुसार सविधि स्नान कर तर्पण व पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस मास धार्मिक अनुष्ठान, व्रत जप, पूजा-पाठ आदि का भी अपना विशेष महत्व है और साधक को इनका अनंत गुणा फल प्राप्त होता है।