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शनि की शुभता और अशुभता

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ज्योतिष में शनि की बहुत बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है। मनुष्य जीवन को संचालित करने वाले अनेकों घटक शनि के अंतर्गत आते हैं और हमारे जीवन में आने वाले बड़े परिवर्तन शनि की गतिविधियों पर ही निर्भर करते हैं। जैसा कि हम जानते हैं शनि, सूर्य के पुत्र हैं और नव ग्रहों में उन्हें दण्डाधिकारी का पद भगवान शिव के द्वारा दिया गया है। भचक्र में मकर और कुम्भ राशि पर शनि का स्वामित्व है तथा तुला राशि में शनि को उच्च व मेष राशि में नीचस्थ माना जाता है। सूर्य, चंद्रमा, मंगल और केतु की शनि से शत्रुता, बृहस्पति सम व शुक्र, बुध, राहु से मित्रता मानी जाती है। शनि को हमारे कर्म, जनता, नौकर, नौकरी, अनुशासन, तपस्या, अध्यात्म आदि का कारक माना गया है। अब प्रश्न यह उठता है कि शनि की हमारे जीवन में शुभ भूमिका होगी या अशुभ। वास्तव में यह हमारी जन्मकुंडली में शनि की भिन्न-भिन्न परिस्थितियों पर निर्भर करता है सामान्यतया वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर तथा कंुभ लग्न वाले जातकों के लिए शनि को शुभ कारक ग्रह माना जाता है और मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु और मीन लग्न की कुण्डली में शनि को अकारक ग्रह माना जाता है। इसके अतिरिक्त शनि से मिलने वाला शुभ या अशुभ फल इस बात पर निर्भर करता है कि शनि हमारी कुण्डली में है किस स्थिति में। शनि यदि जन्मकुंडली में स्व, उच्च, मित्र आदि राशि में बलवान होकर बैठा है तो निश्चित ही ऐसा शनि जातक को दूरद्रष्टा, कर्मप्रधान, अनुशासित एवं अच्छे पद वाला व्यक्ति बनायेगा। ऐसा व्यक्ति कर्म करते हुए भी अपने जीवन को प्रभु चरणों में लगाएगा और यदि शनि नीच राशि (मेष), शत्रु राशि या शत्रु ग्रहों से प्रभावित होकर पीड़ित या कुपित स्थिति में है तो वह जातक को आलस्य, लापरवाही, नकारात्मक सोच, कर्मों को कल पर छोड़ने की प्रवृत्ति देकर जीवन को संघर्षों से भर देगा कमजोर शनि वाले जातक को अपने करियर में बहुत संघर्षों के बाद ही सफलता मिलती है। शनि की अन्य ग्रहों से युति: 1. शनि-सूर्य: शनि और सूर्य का योग शुभ फल कारक नहीं माना जाता विशेष रूप से पिता और पुत्र दोनों में मतभेद रह सकते हैं। ऐसे व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी रहेगी तथा यश प्राप्ति में बाधाएं आयेंगी। 2. शनि-चंद्रमा: ऐसे जातक को मानसिक शांति की कमी सदैव अनुभव होगी, मानसिक एकाग्रता नहीं रहेगी। जल्दी डिप्रेस हो जायेगा, स्वभाव में आलस्य रहेगा और माता के सुख में भी कमी हो सकती है। 3. शनि-मंगल: ऐसे जातक को अपने व्यवसाय या करियर में अपेक्षाकृत अधिक संघर्ष करना पड़ता है और कठिन परिश्रम से ही सफलता मिलती है। 4. शनि-बुध: ऐसे जातक अपनी बुद्धि, वाणी, बुद्धि परक कार्यों से सफलता प्राप्त करते हैं और गहन अध्ययन में रुचि रखते हैं। 5. शनि-बृहस्पति: यह बहुत शुभ योग होता है। ऐसे जातक अपने सभी कार्य काफी लगन से करते हैं तथा जीवन में अच्छे पद प्राप्त करते हैं। 6. शनि-शुक्र: यह भी शुभफल कारक होता है। ऐसे जातक विवाह उपरान्त विशेष उन्नति पाते हैं तथा धन समाप्ति के लिए यह योग शुभ है। 7. शनि$राहु: यह बहुत अच्छा योग नहीं है। संघर्षपूर्ण स्थितियों के पश्चात् सफलता मिलती है, उतार-चढ़ाव अधिक आते हैं। 8. शनि$केतु: शनि की युति केतु के साथ हो तो जातक का ध्यान अध्यात्म या समाज सेवा की ओर उन्मुख हो सकता है परंतु ऐसे जातक को अपनी आजीविका चलाने के लिए अथक प्रयास करने पड़ते हैं। शनि और स्वास्थ्य: हमारे शरीर में शनि विशेषतः पाचनतंत्र और हड्डियों के जोड़ों को नियंत्रित करता है। इसके अतिरिक्त, दांत, नाखून, बाल, टांग, पंजे भी शनि के अंतर्गत आते हैं। जिन व्यक्तियों की कुंडली में शनि नीच राशि (मेष) में कुंडली के छठे या आठवें भाव में हो या अन्य प्रकार से पीड़ित हो तो ऐसे में पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं और जाॅइंट्स पेन की समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त दीर्घकालीन रोगों में भी शनि की भूमिका होती है। विशेष रूप से कर्क, सिंह और धनु लग्न वाले जातकों के लिए शनि अपनी दशाओं में स्वास्थ्य कष्ट उत्पन्न करता है। शनि और आजीविका: वर्तमान युग में शनि को एक तकनीकी ग्रह के रूप में देखा जाना चाहिए। यदि शनि कुंडली में अच्छी स्थिति में है तो निश्चित ही तकनीकी क्षेत्र में उन्नति देगा। इसके अंतर्गत मेकेनिकल इंजीनियरिंग, मशीनों से जुड़ा कार्य, लोहा, स्टील, कोयला पेट्रोल, गैस, कच्ची धातुएं, केमिकल प्रोडक्ट, सीमंेट तथा पुरातत्व विभाग से जुड़े कार्य आते हैं। शनि और साढ़ेसाती: साढ़ेसाती को लेकर सभी व्यक्ति भय से व्याप्त रहते हैं। जब शनि हमारी जन्म राशि से बारहवीं राशि में आते हैं तब साढ़ेसाती का प्रारंभ होता है। वास्तव में यह समय हमें संघर्ष की अग्नि में तपाकर हमारे पूर्व अशुभ कर्मों को स्वच्छ करने का कार्य करता है। परंतु ज्योतिषीय दृष्टिकोण से बात करें तो साढ़ेसाती का फल सबके लिए एक समान कभी नहीं होता। यह कुंडली में बनी ग्रह स्थितियों पर निर्भर करता है। यदि हमारी कुंडली में स्थित शनि बहुत पीड़ित व कमजोर और विशेषकर मंगल, केतु के प्रभाव में हो तो ऐसे में साढ़ेसाती बहुत संघर्ष और बाधापूर्ण होती है। कुंडली में चन्द्रमा यदि अतिपीड़ित हो तब भी साढ़ेसाती में दुष्परिणाम मिलते हैं। परंतु यदि कुंडली में शनि बृहस्पति या मित्र ग्रहों बुध, शुक्र के अधिक प्रभाव में शुभ स्थिति में है तो साढ़ेसाती में अधिक समस्याएं नहीं आतीं। इसके अलावा साढ़ेसाती के अंतर्गत गोचर का शनि यदि उन राशियों से गुजरता है जिनमें हमारे जन्मकालीन शुक्र, बुध व बृहस्पति बैठे हैं तब भी साढ़ेसाती शुभफल कारक होती है। शनि शांति के उपाय: यदि शनि की दशा या साढ़ेसाती में प्रतिकूल परिणाम मिल रहे हों तो निम्नलिखित उपाय अवश्य करें। 1. ऊँ शं शनैश्चराय नमः का 108 बार जाप करें। 2. शनिवार को पीपल के वृक्ष में जल दें। 3. लगातार पांच शनिवार साबुत उड़द का दान करें। 4. हनुमान चालीसा का पाठ करें। 5. सूर्यास्त के बाद घर की पश्चिम दिश में सरसों के तेल का दीया जलाएं। 6. माह में एक बार वृद्धाश्रम में कुछ धन या खाद्य सामग्री का दान अवश्य करें।

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