अंगूठा लंबा हो, गुरु की अंगुली सूर्य की अंगुली से लंबी हो, हृदय रेखा साफ-सुथरी हो, मस्तिष्क रेखा शुरू व अंत में विभाजित हो, तो ऐसे लोगों की वाणी सम्मोहन का कार्य करती है- इनमें भाषा व बोलने की कला का अच्छा ज्ञान होता है। जिस प्रकार उठना बैठना, चलना फिरना प्रत्येक इंसान जानता है अगर हम इन क्रियाओं में शिष्टाचार का उपयोग करते हैं तो उसमें चार चांद स्वभाविक रूप से लग जाते हैं। ठीक उसी प्रकार बोलना तो हर कोई जानता है लेकिन बोलते समय अगर एक ‘भाषा शैली’ का उपयोग जिसमें मधुरता, धारा प्रवाह, रस, वाक्पटुता आदि हो तो, सुनने वाला अपने आप को कुछ पल के लिए ‘सम्मोहित’ सा महसूस करता है। बोलने की कला कुदरत ने सबको नहीं बख्शी होती है। अगर रेखाओं में जरा भी दोष आ जाता है तो उसका प्रभाव मनुष्य की भाषा शैली में आ जाता है और वे धारा प्रवाह व आत्म विश्वास के साथ अपनी बात कहने में असमर्थ सा महसूस करते हंै। कुछ लोग ऐसे हैं कि अपनी बात को एक या दो जनों तक की उपस्थिति में तो कह देते हैं किंतु जब उन्हें भाषण देने के लिए कहा जाता है तो वे उसमें अपने आपको असमर्थ महसूस करते हैं। ऐसा किन रेखाओं व ग्रहों में दोष होने पर होता है? इसके कई कारण है (1) मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो, उसमें जंजीरकार रेखा बनती हो, जीवन रेखा चाहे ठीक, बुध ग्रह उन्नत न हो तो ऐसे लोग अपनी वाणी में धारा प्रवाह व आत्म विश्वास की कमी पाते हैं। 2. दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा को राहु रेखाएं अगर काट दें, भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास हो, सूर्य की उंगली तिरछी हो, सूर्य पर कट-फट हो तो भी बोलने की कला एक लय पर नहीं होती है। 3. हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा में दोष, हाथ में धब्बे, उंगलियां टेढ़ी-मेढ़ी हो, ऐसे लोग भाषण या अपनी बात को दूसरे के सामने सही ढंग से नहीं रख पाते हैं। 4. अंगूठा कम खुलता हो, मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा का जोड़ लंबा हो, हाथ सख्त हो, पतला हो, सभी ग्रह दबे हों, ऐसे व्यक्ति की बोलने की कला से कोई भी प्रभावित नहीं होता है। 5. मस्तिष्क रेखा में विभाजन न हो, गुरु की अंगुली छोटी हो, सूर्य की अंगुली टेढ़ी हो, हृदय रेखा में दोष व मस्तिष्क रेखा को जब बारीक-बारीक रेखाएं काटती हों तो भी ऐसे लोग बोलने की कला नहीं जानते केवल बोलना ही जानते हैं। 6. हृदय रेखा से मोटी शाखाएं नीचे की तरफ मस्तिष्क रेखा को काटे, जीवन रेखा में दोष, चंद्र रेखाओं में द्वीप हो तो ऐसे लोग किसी को अपनी वाक् शैली द्वारा प्रभावित नहीं कर पाते हैं। 7. जोड़ लंबा हो (जीवन रेखा व मस्तिष्क रेखा का), सूर्य क्षेत्र व बुध क्षेत्र में कट-फट हो, सूर्य की उंगली टेढ़ी हो, अंगूठा हथेली की तरफ हो, ऐसे लोगों के सूर्य, बुध, शनि भी उत्तम न हो तो ऐसे लोग अपनी साधारण शैली में ही अपनी बात कह पाते हैं, इनकी बोली में कोई आकर्षण नहीं होता है। 8. भाग्य रेखा में द्वीप हो, भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रूके, मस्तिष्क रेखा में कोई शाखा न हो और उसमें दोष हो, हाथ का रंग काला हो, हाथ में मोटी रेखाओं का दोष हो (जाल हो) ऐसे मनुष्य दूसरों से तो प्रभावित हो जाते हैं पर खुद प्रभावित करने की कला नहीं जानते हैं। 9. अंगूठा छोटा, मोटा हो, अंगुलियां मोटी हों तो भी साधारण बोलने की आदत होती है। 10. सूर्य ग्रह दबा हो, शनि की स्थिति व बुध ग्रह की स्थिति भी ठीक न हो तो ऐसे लोग आत्म विश्वास व मानसिक तनाव की वजह से अपनी बात को कलात्मक रूप से प्रगट करने में असमर्थ होते हैं। बोलने की कला में सिद्धहस्त लोगों के हाथों के कुछ लक्षण 1. सूर्य, बुध व शनि ग्रह उत्तम हों, सूर्य रेखा मस्तिष्क रेखा को चीरकर चली जाये, अंगुलियां पतली व सीधी हों, मस्तिष्क रेखा द्विभाजित हो, भाग्य रेखा सीधे शनि क्षेत्र पर जाती हो, मस्तिष्क रेखा व जीवन रेखा में कोई बड़ा दोष न हो तो ऐसे लोगों की वाणी सम्मोहन का कार्य करती है, बरबस अपनी ओर लोगों का ध्यान खींच लेते हैं। 2. मस्तिष्क रेखा दोहरी हो, अंगूठा लंबा व पीछे की तरफ हो, अंगुलियां पतली व छोटी हों, गुरु ग्रह व गुरु की उंगली सूर्य से लंबी हो, जीवन रेखा साफ हो तो ऐसे लोगों की भाषा पर काफी पकड़ होती है। ये भाषण देने में माहिर होते हैं। 3. हृदय रेखा, मस्तिष्क रेखा में कोई दोष न हो, बुध की अंगुली टेढ़ी हो (थोड़ी सी), सूर्य रेखा डबल या साफ सुथरी हो, मस्तिष्क रेखा मंगल तक जाती हो, जीवन रेखा में कोई जोड़ न हो, सूर्य ग्रह व बुध ग्रह उन्नत हो तो भी ऐसे लोगों की बोलने की कला बहुत सम्मोहक होती है। 4. शनि और सूर्य की उंगली का आधार बराबर हो नीचे से, जीवन रेखा के साथ मंगल रेखा हो, हाथ का रंग साफ हो, हाथ भारी हो, अंगुलियां पतली हों, गुरु, सूर्य व बुध ग्रह ठीक हांे- ऐसे लोग अपनी भाषा शैली से सभी को प्रभावित करने वाले व घुमावदार जीवन शैली के लिए होते हैं। 5. अंगूठा लंबा हो, गुरु की अंगुली सूर्य की अंगुली से लंबी हो, हृदय रेखा साफ-सुथरी हो, मस्तिष्क रेखा शुरू व अंत में विभाजित हो, चंद्र उठा हो, अन्य ग्रह भी ठीक हों, हाथ भारी हो तो भी ऐसे लोगों की वाणी सम्मोहन का कार्य करती है- इनमें भाषा व बोलने की कला का अच्छा ज्ञान होता है। इसके अतिरिक्त अन्य कई लक्षण हैं जो हमारी बोलने की कला को प्रभावित करते हैं। कुछ दोषों व ग्रहों का निवारण करके हम बोलने की थोड़ी बहुत कमी को सफलता पूर्वक उपाय करवा कर दूर कर सकते हैं।
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