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कालसर्पयोग निवृत्ति के उपाय

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कालसर्पयोग निवृत्ति के उपाय

1. किसी विद्वान् वेदपाठी ब्राह्मण से इस पुस्तक में वर्णित विधि करावें। इससे अवश्य लाभ होता है। तथा पूर्वजन्मकृत दोष मिट जाते हैं। यदि पूर्व जन्मकृत दोष अति उग्र हैं तो यह विधि दो-तीन बार बरानी चाहिए।

2. यदि किसी स्त्री की कुण्डली इस योग से दूषित है तथा उसको सन्तति का अभाव है, विधि नहीं करा सकती हो तो किसी अश्वत्थ (वट) के वृक्ष से नित्य 108 प्रदक्षित (घेरे) लगानी चाहिए। तीन सौ दिन में जब 28,000 प्रदक्षिणा पूरी होगी। तो दोष दूर होकर, स्वतः ही सन्तति की प्राप्ति होगी।

3. शिव-उपासना एवं निरन्तर रूद्रसूक्त से अभिन्त्रित जल से स्नान करने पर यह योग शिथिल हो जाता है। संकल्पपूर्वक लघुरूद्र करावे।
4. किसी शिवलिंग में चढ़ने योग्य तांबे का बडा सर्प लावे। उसे प्राण प्रतिष्ठित कर, ब्रह्ममुहूर्त में जब कोई न देखे, शिवालय पर छोड़ आवे तथा चांदी से निर्मित एक सर्प – सर्पिणी के जोड़े को बहते पानी में छोड़ दें। इससे भी कालसर्पयोग की चमत्कारिक ढंग से शान्ति हो जाती है तथा जातक को लाभ होने लगता है। यह प्रयोग अनेक बार अनुभूत है।

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5. पलाश के पुष्प गोमूत्र में कूट कर छांव में सुखावे। उसका चूर्ण बनाकर नित्य स्नान की बाल्टी में यह चूर्ण डाले। इस प्रकार 72 बुधवार (डेढ़ वर्ष)तक स्नान करने से कालसर्पयोग नष्ट हो जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि यदि 72000 राहु के जाप – रां राहवे नमः से किये जाएं तो भी कालसर्पयोग शान्त हो जाता है।

6. प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्र में उडद या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मन्त्र-जप कर किसी भीख मांगते वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न को छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार 72 बुधवार तक करते रहने से अवश्य लाभ होता है।

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7. कालसर्पयोग की विशिष्ट अंगूठी प्राणप्रतिष्ठित करके, बुधवार के दिन सूर्योदय के समय कनिष्ठिका अंगुली में धारण करनी चाहिए। जिस दिन धारण करे, उस दिन राहु की सामग्री का आंशिक दान करना चाहिए।इससे भी चमत्कारी ढंग से लाभ होता है। यह टोटका अनेक बार परीक्षित किया हुआ है।

8. नागपंचमी का व्रत करें। नवनाग स्तोत्र का पाठ करें।

9. जातक के शत्रु अधिक हों या कार्य में निरंतर बाधा आती हो तो जिस वैदिक मन्त्र से जल में सर्प छोड़ते हैं। उसको नित्य तीन बार स्नान,पूजापाठ करने के बाद पढ़े। भगवान शंकर की कृपा से उसके सारे शत्रु शीघ्र नष्ट हो जाएंगे। यह मन्त्र अमोघ व अनुभूत है पर इसका प्रयोग गुरू की आज्ञा लेकर ही करना चाहिए।

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