उपाय लेख

कौन सा उपाय कब करें!!!!!

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अपने भाग्य से किंचित ही कोई संतुष्ट होगा। जिसके पास जो है उससे अधिक पाने की चेष्टा सदैव रहती है। कष्टों का निवारण व भविष्य में आने वाले दुःखों से छुटकारा सभी प्राप्त करना चाहते हैं। ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की स्थिति व बलाबल के अनुसार अनेक प्रकार के उपाय बताए गए हैं जैसे:- रत्न धारण, रुद्राक्ष धारण, देव दर्शन, मंत्रोच्चारण, यंत्र व वास्तु स्थापना, दान, जड़ी बूटी उपयोग, स्नान, विसर्जन, हवन, जमीन में गाड़ना आदि। प्रत्येक उपाय का विशेष उपयोग है।
1.रत्न धारण-रत्न ग्रह से आ रही रश्मियों को सोखकर शरीर को प्रदान करता है। इसलिए शुभ ग्रहों की रश्मियों को अधिक मात्रा में प्राप्त करने के लिए उन ग्रहों के रत्नों को धारण किया जाता है। यदि ग्रह कमजोर हो तो रत्न धारण से तुरंत लाभ प्राप्त होता है।

2.रुद्राक्ष धारण शिवजी के आंसुओं से रुद्राक्ष की उत्पत्ति मानी गई है। अतः इसक¨ धारण करने से शिवजी की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है। दुर्लभ एक मुखी रुद्राक्ष तो पूर्ण रूप से शिवजी का ही प्रतीक है। रुद्राक्ष 1 से 21 मुखी तक पाए जाते हैं। इनमें 4, 5 व 6 मुखी रुद्राक्ष आम तौर पर पाए जाते हैं। इनमे भी 5 मुखी ही सबसे अधिक प्राप्त होता है। जो ग्रह अशुभ स्थान पर बैठा हो, उसकी अशुभता कम करने के लिए व शुभता बढ़ाने के लिए रुद्राक्ष धारण करते हैं। अतः जिन ग्रहों के रत्न धारण नहीं कर सकते उनके रुद्राक्ष धारण करना श्रेयस्कर होता है।

1 मुखी-सूर्य, 2 मुखी-चंद्र, 3 मुखी-मंगल, 4 मुखी-बुध, 5 मुखी-गुरु, 6 मुखी-शुक्र, 7 मुखी-शनि, 8 मुखी-राहु, 9 मुखी-केतु, 10 मुखी-व्यवसाय, 11 मुखी-लाभ, 12 मुखी-विदेश यात्रा, 13 मुखी- आकर्षण व नजर दोष, 14 मुखी-शनि का विशेष प्रभाव, 15 मुखी-अर्थ, 16 मुखी-राहु दोष मुक्ति, 17 मुखी-सर्वार्थसिद्धि, 18 मुखी- सर्व दोष मुक्ति, 19-सर्वकार्य सिद्धि, 20-धनार्जन व व्यावसायिक उन्नति, 21 मुखी-सर्वदोष निवारण व शनि दोष हनन हेतु पहनना चाहिए।
इसके साथ ही कुछ विशेष प्रकार के रुद्राक्ष प्राप्त होते हैं। जैसे- गणेश रुद्राक्ष – विघ्न नाशक, गौरी शंकर रुद्राक्ष- वैवाहिक सुख, गौरी गणेश रुद्राक्ष – संतान सुख व त्रिजुटी रुद्राक्ष – सर्वमंगल प्राप्ति हेतु धारण किए जाते हैं।

3.देव दर्शन- किसी भी ग्रह की अशुभता को न्यून करने में उस ग्रह के प्रतिष्ठित देव दर्शन से लाभ प्राप्त होता है। जैसे मंगल व शनि के लिए हनुमान जी की, गुरु के लिए विष्णु जी, बुध के लिए गणेश जी, शुक्र के लिए दुर्गा जी, चंद्र के लिए शिव जी या कृष्ण जी, सूर्य के लिए श्री रामजी आदि।

4.मंत्रोच्चारण- यदि ग्रह वायु तत्व राशि में बैठा हो, तो उसके मंत्रोच्चारण से शीघ्र लाभ प्राप्त होता है। ग्रह के तांत्रिक मंत्र विशेष लाभदायी हैं। पूर्ण कष्ट निवारण के लिए सवा लाख मंत्रों का जप, तदुपरांत हवन इत्यादि करना चाहिए।

5.यंत्र स्थापना-ग्रह या देव मंत्र जप के साथ यदि उसका यंत्र भी स्थापित कर लिया जाए तो जप का असर अनेक गुणा व अधिक समय तक प्राप्त होता है। कहते हैं यंत्र में देव मूर्ति से सौ गुणा ऊर्जा होती है। यंत्र भी मंत्र द्वारा जाग्रत होने के पश्चात ही फल दायक होते हैं

6.वास्तु स्थापना-अनेक दोषों को दूर करने के लिए विशेष चित्र, घंटिया, पिरामिड, आदि की स्थापना की जाती है जो कि वातावरण की अशुद्ध ऊर्जा को समाप्त कर शुद्ध ऊर्जा को बढ़ाते हैं।

7.दान-जो ग्रह अशुभ व बलवान हो, उनकी वस्तुओं के दान से उनकी अशुभता का हनन होता है जैसे सूर्य के लिए लाल मसूर दाल का दान, चंद्रमा के लिए जल का दान, मंगल के लिए गुड़ का दान, बुध के लिए हरे चारे का दान, गुरु के लिए पीली दाल का दान, शुक्र के लिए चावल, शनि के लिए सरसांे के तेल, राहू के लिए काले कंबल व केतु के लिए सप्त धान्य का दान।

8.जड़ी-बूटी उपयोग-प्रत्येक ग्रह की कुछ जड़ी बूटियां हैं। ग्रहों को बलवान करने के लिए उनकी जड़ी बूटियों का सेवन करना चाहिए या पानी में भिगोकर उनसे स्नान करना चाहिए।

9.विसर्जन-किसी भी जल तत्व राशि स्थित ग्रह की अशुुभता को दूर करने के लिए उस ग्रह की वस्तुओं का विसर्जन करना उत्तम उपाय है।
जैसे सूर्य के लिए लाल कपड़े में बांधकर मलका, मसूर की दाल का विसर्जन, चंद्रमा के लिए गंगाजी में दूध विसर्जन, मंगल के लिए गुड़ विसर्जन, बुध के लिए साबुत मूंग विसर्जन, गुरु के लिए हल्दी की गांठ, शुक्र के लिए दही व खीर विसर्जन, शनि के लिए काले चने, राहु के लिए कोयले व केतु के लिए नारियल विसर्जन।

10.हवन-अशुभ ग्रहों को शुभ बनाने के लिए हवन करना चाहिए। यदि ग्रह अग्नि तत्व राशि में बैठा है तो फल शीघ्र प्राप्त होते हैं।

11जमीन में गाढ्ना- यदि ग्रह भूमि तत्व राशि में हो तो ग्रह के पदार्थ भूमि में गाड़ने से उसकी अशुभता समाप्त होती है। कई बार अनजाने में हम शुभ ग्रह की वस्तुओं का विसर्जन या दान आदि कर देते हैं जिससे उसके बल में क्षीणता आती है व शुभता में न्यूनता आती है। अतः ग्रह किस राशि में किस भाव में स्थित है उसके अनुसार उसकी शुभता अशुभता का ज्ञान कर उपाय चयन करना चाहिए जिससे उस ग्रह के पूर्ण लाभ प्राप्त हो सकें।