धनु राशि पर शनि है:
साढ़े साती शनि
द्वादश, लग्न और द्वितीय भाव में शनि आये तो उसे साढे साती कहा जाता है।
आमतौर पर शनि एक राशि में ढाई वर्ष रहतें हैं इस तरह से तीन राशियों वे साढ़े सात वर्ष रहते हैं इसे ही साढ़े साती शनि कहते हैं इस समय धनु राशि के साथ-साथ वृश्चिक राशि और मकर राशि के जातक भी शनि देव की क्रूर दृष्टि का पूर्ण रूप से शिकार हैं,धनु, वृश्चिक और मकर पर चल रही शनि साढ़े साती चल रही है अब अगर कुंडली में अशुभ शनि की दशा चल रही हो या फिर साढ़े साती अथवा अढ़ैय्या शनि हों तो,उन्हें जल्द से जल्द उपाय करवा लेने चाहिए। अन्यथा मुसीबतें और भी बढ़ती चली जाएंगी।
शनि साढे साती के बुरे परिणाम:
सांप का डसना, शराब आदि का व्यसनी होना, मकान का बिक जाना या गिर जाना, घर में चोरी होना, पुलिस स्टेशन एवं कोर्ट के चक्कर खाना, वाहन गुम या चोरी हो जाना एवं वाहन का दुर्घटनाग्रस्त हो जाना, फैक्ट्री या मशीनों का बिक जाना या रुक जाना या बंद हो जाना।
शनि ढैय्या
वक्री शनि को प्रसन्न करने और शनि साढ़ेसाती,ढैय्या के प्रकोप से बचने के उपाय:
- शनि बीज मंत्र: ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः प्रतिदिन 108 बार अवश्य करें
- शनि स्तोत्र:नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते। नमस्ते विष्णु रूपाय कृष्णाय च नमोस्तुते।। नमस्ते रौद्र देहाय नमस्ते कालकायजे। नमस्ते यम संज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते। प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च। इस मंत्र का प्रतिदिन एक बार पाठ अवश्य करें
- काले घोड़े की नाल अथवा नाव की कील से बनी हुई अंगूठी को दाएं हाथ की मध्यमा अंगुलि में शनिवार के दिन प्रातः शनि बीज मंत्र की 108 बार स्तुति के पश्चात ही धारण करें। ध्यान रहे कि उस अंगूठी को शुक्रवार की रात में सरसो के तेल में डुबो कर रख दें और धारण करने के बाद उस तेल का दीपक जला दें।
- यदि कोई पीड़ित जातक उपरोक्त को करने में अक्षम हो, तो उसे हनुमान चालीसा, बजरंग बाण का पाठ अवश्य करना चाहिए
- शनि प्रकोप से मुक्ति के लिए सुंदर काण्ड का नियमित पाठ अवश्य करें।
- शिव आराधना से भी शनि प्रकोप से काफी हद तक छुटकारा मिल जाता है।
- शनि बीज मंत्र तथा स्तोत्र के पश्चात इसका पाठ शनि को सर्वाधिक प्रसन्न करता है। यदि कुण्डली में भी शनि की स्थिति काफी खराब हो तब इसका स्तवन जातक को बेहद राहत प्रदान करने में सक्षम है।
- जातक शनिवार का व्रत करें तथा शनिवार का व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से प्रारंभ करे और 19, 31 या 41 शनिवार तक करे।
- शनिवार के दिन प्रात: स्नान आदि करके काले रंग की बनियान धारण करे
- सरसो के तेल का दान करे
- तांबे के कलश मे जल, थोडे काले तिल, लोंग, दुध, शक्कर, आदि डाल के पीपल अथवा खेजडी के वृक्ष के दर्शन करते हुये पश्चिम दिशा कि तरफ़ मुख रखते हुये जल प्रदान करे. तथा “ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनये नम:” इस बीज मंत्र का यथाशक्ति जाप करे।
- इस दिन भोजन में उडद दाल एवं केले और तेल के पदार्थ बनाये।
- भोजन से पुर्व भोजन का कुछ भाग काले कूत्ते या भिखारी को दे उसके बाद प्रथम 7 ग्रास उपरोक्त पदार्थ ग्रहण करे बाद में अन्य पदार्थ ग्रहण करे।
- अंतिम शनिवार को हवन क्रिया के पश्चात यथाशक्ति तील, छ्त्री, जुता, कम्बल, नीला-काला वस्त्र, आदि वस्तुओ का दान निर्धन व्यक्ति को करे।
- व्रत के दिन जल, सभी प्रकार के फल, दूध एवं दूध से बने पदार्थ या औषध सेवन करने से व्रत नष्ट नहीं होता है।
- व्रत के दिन एक बार भी पान खाने से, दिन के समय सोने से, स्त्री रति प्रसंग आदि से व्रत नष्ट होता है।
- द्वादश भाव में शनि हो तो शराब व मांस का सेवन न करे,
- लग्न में शनि हो तो किसी भी एक शनिवार को 50 ग्राम सुरमा जमीन में दबाये, बन्दर को गुड दे,
- द्वितीय भाव में शनि हो तो नंगे पैर मंदिर में दर्शन हेतु जाये। सांप को दूध पिलाए, तेल का दान करे, लोहे का सामान, चिमटा, तवा, अंगीठी ( रोटी पकाने का सामान ) आदि का दान करे, लोहे का छल्ला दाये हाँथ की मध्यमा उंगली में धारण करे।
- ढैया : चतुर्थ भाव में शनि हो तो किसी भी एक शनिवार को 4 बोतल शराब नदी में प्रवाहित करे.
- अष्टम भाव में शनि हो तो किसी भी एक शनिवार को 8 किलो साबुत उड़द नदी में प्रवाहित करे.
- हनुमान चालीसा का पाठ: हनुमान चालीसा का नियमित पाठ शनिदेव के प्रकोप से बचने का रामबाण उपाय है। अगर आप ढैया या साढे साती से गुज़र रहे हैं और शनि द्वारा दिए कष्टों से पीड़ित हैं, तो हनुमान चालीसा आपके लिए अचूक औषधि की तरह है। जनश्रुति है कि हनुमान जी ने शनि देव को लंका में दशग्रीव के बंधन से मुक्त कराया था। ऐसा भी कहा जाता है कि कलियुग में अभिमानवश एक बार शनिदेव हनुमान जी के पास गए और बोले – “तुमने मुझे त्रेता में ज़रूर बचाया था, लेकिन अब यह कलिकाल है। मुझे अपना काम करना ही पड़ता है। इसलिए आज से तुम्हारे ऊपर मेरी साढ़े साती शुरू हो रही है। मैं तुमपर आ रहा हूँ।” यह कहते हुए वे हनुमान जी के मस्तक पर सवार हो गए। शनिदेव के कारण हनुमान जी को सर पर खुजली होने लगी, जिसे मिटाने के लिए उन्होंने सर पर एक विशाल पर्वत रख लिया। जिसके नीचे शनिदेव दब गए और “त्राहि माम् त्राहि माम्” चिल्लाने लगे। उन्होंने हनुमान जी से याचना की और कहा कि वे आगे से उन्हें या उनके भक्तों को कभी परेशान नहीं करेंगे। हनुमान चालीसा हनुमान जी के स्तोत्रों में बहुप्रचलित और अनन्त शक्तिसंपन्न है। इसका पाठ शनि के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला कहा गया है।
- तिल, तैल और छायापात्र का दानतिल, तैल और छायापात्र शनिदेव को अत्यन्त प्रिय माने जाते हैं। इन चीज़ों का दान शनि की शान्ति का प्रमुख उपाय है। मान्यता है कि यह दान शनि देव द्वारा दिए जाने वाले कष्टों से निजात दिलाता है। छायापात्र दान की विधि बहुत ही सरल है। मिट्टी के किसी बर्तन में सरसों का तैल लें; उसमें अपनी छाया देखकर उसे दान कर दें। यह दान शनि के आपके ऊपर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को दूर कर उनका आशीर्वाद लाता है।
- धतूरे की जड़ धारण करें वैदिक ज्योतिष में विभिन्न जड़ों की मदद से ग्रहों की शान्ति का विधान है। कई ज्योतिषियों का मानना है कि रत्न धारण करना नुक़सान भी पहुँचा सक्ता है, लेकिन जड़ धारण करने से ऐसी आशंका नहीं रहती है। रत्न ग्रह की शक्ति बढ़ाने का काम करते हैं, वहीं जड़ियाँ ग्रहों की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ने का कार्य करती हैं। शनिदेव को ख़ुश कर उनकी कृपा पाने के लिए ग्रन्थों में धतूरे की जड़ को धारण करने की सलाह दी गई है। धतूरे की जड़ का छोटा-सा टुकड़ा गले या हाथ में बांधकर धारण किया जा सकता है। इस जड़ी को धारण करने से शनि की ऊर्जा आपको सकारात्मक रूप से मिलने लगेगी और जल्दी ही आपको ख़ुद अन्तर महसूस होगा।
- सात मुखी रुद्राक्ष धारण करेंजड़ियों की ही तरह रुद्राक्ष को भी हानि रहित उपाय की मान्यता प्राप्त है। सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना न सिर्फ़ भगवान शिव को प्रसन्न करता है, बल्कि शनिदेव का आशीर्वाद भी दिलाता है। पुराणों के अनुसार सात मुखी रुद्राक्ष धारण करने से घर में धन-धान्य की कमी नहीं रहती है और लक्ष्मी मैया की कृपा हमेशा बनी रहती है। साथ ही सेहत से जुड़ी समस्याओं में भी इसे बहुत प्रभावी माना जाता है। इस रुद्राक्ष को सोमवार या शनिवार के दिन गंगा जल से धोकर धारण करने से शनि जनित कष्टों से छुटकारा मिलता है और समृद्धि प्राप्त होती है
- यहाँ बताए गए ये छोटे-छोटे उपाय करने में सरल हैं और जल्दी असर दिखाते हैं। अगर श्रद्धा के साथ इन उपायों को किया जाए, तो शनि देव की वक्र दृष्टि से बचकर उनकी कृपा सहज ही हासिल की जा सकती है। इन सरल उपायों को काम में लाएँ और शनि देव के आशीष से अपना जीवन सुखमय बनाएँ।
30 अप्रेल से हो रहे हैं शनि वक्री, क्या होगा ?
- आपकी राशि का हाल ?शनि गोचर यानि राशि परिवर्तन वैदिक ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम माना जाता है, इसमें शनि वक्री का भी खास महत्व है। चूंकि शनि को कर्म, सेवा, नौकरी और लोकतांत्रिक संस्थाओं का कारक माना जाता है, ऐसे में यह कॅरियर और आजीविका को प्रभावित करता है। शनि की चाल धीमी होती है, ऐसे में इसके परिणाम भी काफी ठोस और स्थिर होते हैं। इस साल 30 अप्रेल से शनि धनु राशि में वक्री होंगे और 18 सितंबर को वापस धनु राशि में मार्गी हो जाएंगे।