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कहीं आप अपने पूर्वजों के कर्मों का फल तो नहीं पा रहे जाने ज्योतिष से

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शास्त्रों के अनुसार देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण का जन्म-जन्मांतरों तक जातकों पर शुभ अथवा अशुभ प्रभाव रहता है, इसलिए ‘‘पितृदेवो भव’’, कहा गया है। कहने का उद्देश्य यह है कि पिता द्वारा लिया गया प्रत्येक ऋण पुत्र को चुकाना पड़ता है। व्यक्ति को अपने जीवन में तीन बातें सदैव स्मरण रखनी चाहिएं। वह है-फर्ज (कर्त्तव्य), कर्ज (ऋण) और मर्ज (रोग) जो भी इन बातों को स्मरण रखकर कर्म करता है, वह कभी कष्ट नहीं पाता। ऋणों के अध्ययन के लिए लाल किताब के आधार पर जन्मपत्रिका का बना होना परम आवश्यक है, तभी लाल किताब के अनुसार जातक के जन्म का ऋण ज्ञात किया जा सकेगा। लाल किताब के अनुसार बनाई गई कुंडली भारतीय ज्योतिष के अनुसार बनाई गई कुंडली से सर्वथा अलग होती है। यह सर्वथा सत्य है कि पूर्वजों के कर्मों का फल (शुभ-अशुभ) उनकी संतानों को भोगना ही पड़ता है। इसे ही हम ऋण कहते हैं। जातक किस ऋण से पीड़ित है तथा उसका निवारण क्या है, इस विषय में अनेक सिद्धांत हैं।

पितृ ऋण के लक्षण- समय से पहले बाल सफेद, सुख-समृद्धि समाप्त, बनते कार्यों में विलम्ब हो तो जातक पितृ ऋण से ग्रसित होता है।
उपाय- सूर्य को नमस्कार करें। यज्ञ करें। किसी कार्य को प्रारंभ करने से पहले मुंह मीठा करें और शीतल जल पीएं, फिर कार्य को प्रारंभ करें।

मातृ ऋण के लक्षण- घर की सम्पत्ति का नष्ट होना, पशुओं की मृत्यु, शिक्षा में बाधा, घर में अनेक प्रकार के रोग होना, अगर कोई व्यक्ति सहायता करने का प्रयत्न करता है, तो वह भी संकटों से घिर जाता है और प्रत्येक कार्य में असफलता का सामना करना पड़ता है।
उपाय- मातृ ऋण से ग्रस्त व्यक्ति द्वारा चांदी लेकर बहते पानी में बहाने से इस ऋण से मुक्ति मिलती है।

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स्त्री ऋण- अगर जातक की जन्मपत्रिका में द्वितीय सप्तम भावों में सूर्य, चंद्रमा एवं क्रूर राहू स्थित हो, तो जातक शुक्र ग्रह से पीड़ित होता है। उसे स्त्री ऋण का दोष लगता है।
उपाय- कुटुम्ब के प्रत्येक सदस्य से धन एकत्र कर 100 गायों को भोजन कराने से स्त्री ऋण से मुक्ति मिलती है।

गुरु ऋण- दूसरे, पांचवें, नौवें और बारहवें भाव में शुक्र, कुमार ग्रह बुध और राहू बैठे होने पर गुरु ऋण होता है। पीपल के वृक्ष को क्षति पहुंचाने अथवा कुटुम्ब के इष्ट का परिवर्तन करने से भी यह ऋण होता है। इसके फलस्वरूप जातक को विशेषकर वृद्धावस्था में अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं। उसके जीवनभर की संचित पूंजी नष्ट हो जाती है।
उपाय- परिवार के प्रत्येक सदस्य से धन एकत्र करके दान में देना। घर के निकट स्थित पीपल के पेड़ की श्रद्धापूर्वक देखभाल करें।

स्वऋण- पंचम भाव में अशुभ ग्रहों के होने से जातक को स्वऋण का दोष लगता है। परम्पराओं को न मानने से यह ऋण होता है। इस ऋण के प्रभाव से जातक को कष्ट, मुकद्दमे में हार, राजदंड, जीवन में संघर्ष आदि प्रभावों से दो-चार होना पड़ता है।
उपाय- जातक को धन लेकर यज्ञ करना चाहिए।

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परिजनों का ऋण- यदि जातक की जन्मपत्रिका में प्रथम अष्टम में कुमार ग्रह बुध अथवा केतु हों परिजनों के ऋण का दोष लगता है। जातक संबंधियों से वार्तालाप नहीं करता। बालकों से घृणा करता है।
उपाय- अपने वंशजों से चांदी लेकर नदी में प्रवाहित करें। माता को सम्मान दें।

बहन का ऋण- लाल किताब के अनुसार, जन्मकुंडली में तीसरे या छठे भाव में कोमल चंद्रमा होने से बहन का ऋण होता है, बहन पर अत्याचार करने, उसे घर से निकालने से यह ऋण होता है। इस ऋण से धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जीवन नरक के समान हो जाता है और कहीं से भी उसे कोई सहायता नहीं मिल पाती।
उपाय- इस ऋण से मुक्ति के लिए जातक नित्य देसी फिटकरी से दांत साफ करें, नाक-कान छिदवाएं। पीली कौड़िया एकत्रित करके उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।

प्राकृतिक ऋण- अगर जातक के जन्मांग में षष्ठ भाव में कोमल चंद्र हो, तो जातक केतु से पीड़ित होता है। इस योग में जातक पर प्राकृतिक ऋण होता है। प्राय: ऐसे जातक की संतान आवारा होती है। इसके कारण परिवार में किसी की भी संतान अपाहिज होती है।
उपाय- किसी विधवा की सहायता करें। कुत्तों को भोजन करवाएं, काला कुत्ता पालें, नाक और कान छिदवाएं।

अत्याचार करने पर ऋण- जातक अगर किसी पर वृथा ही अत्याचार करता है। अगर उस जातक के जन्मांग में दशम एकादश भाव में सूर्य, चंद्र एवं मंगल हों, तो वह शनि से पीड़ित होता है। इस योग में अत्याचारी ऋण होता है। परिवार में विपत्तियों का आवागमन निरंतर बना लगा रहता है। घर टूटना, अपंगता, मृत्यु, बालों का असमय झड़ जाना आदि अशुभ फल होते हैं।
उपाय- सपरिवार मजदूरों को भोजन कराना चाहिए। मछली पकड़कर एक ही जलाशय में डालकर उन्हें आटे की गोलियां खिलाएं। तवा, चकला एवं बेलन दान देना चाहिए।

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जन्म से ऋणी- अगर जातक के जन्मपत्रिका के बारहवें घर में सूर्य, चंद्र या मंगल बैठे हों, तो वह राहु से पीड़ित होता है। इस योग में जन्म से आगे आने वाला ऋण होता है। जातक के भवन के दक्षिणी भाग की ओर शमशान भूमि होगी या फिर कोई भट्ठी होगी। राहु के प्रभाव से जातक पर आरोप लगते रहते हैं और मुकदमे भी चलते रहते हैं। राजदंड भुगतना पड़ता  है। पाले हुए पशु मरने लगते हैं। नाखून टूटने लगते हैं, क्षमता कम होने लगती है, शत्रु उभरने लगते हैं।
उपाय- नौ श्रीफल एकत्रित करके दरिया में प्रवाहित करें, मेल-जोल से रहें, चोटी रखें।

प्रभु ऋण- छठे भाव में चंद्र, मंगल होने से प्रभु ऋण होता है। लालच में आकर हत्या कर देने, विश्वासघात करने और नास्तिक प्रकृति का होने से यह ऋण होता है। यह ऋण होने पर जातक का कुटुम्ब बर्बाद हो जाता है। जातक की संतान नहीं होती। उसका संचित धन धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है।
उपाय- धन एकत्र करके काले कुत्तों को भोजन कराने से प्रभु ऋण से मुक्ति मिलती है।