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ज्योतिष में विवाह के लिए जन्म कुंडली में सातवां भाव मुख्य माना गया है और इस भाव पर ग्रहों के प्रभाव स्वरूप अनेक स्थितियां उत्पन्न होती हैं जिनके चलते शादी में देरी या बार-बार बनते रिश्तों का टूटना सहना पड़ता है। सातवां घर बताता है कि आपकी शादी किस उम्र में होगी। कई बार शादी नहीं होती और कई बार शादी के बाद सम्बन्ध खराब होकर अलगाव उत्पन्न हो जाता है, यह सब ग्रहों की अशुभ दृष्टि तथा ग्रहों के निर्बलता के कारण होता है। कुल मिलाकर जब एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव सातवें घर पर हो तो विवाह में विलम्ब होता है।
जब कुंडली में सप्तम भाव की दशा या फिर अन्तर्दशा, सातवें भाव में स्थित ग्रहों की दशा या अन्तर्दशा या सातवें भाव को देखने वाले ग्रहों की दशा तथा अन्तर्दशा हो, या फिर छठे भाव से सम्बंधित दशा या अन्तर्दशा चल रही हो तो विवाह में निश्चित रूप से विलम्ब होता है या फिर रुकावटें उत्पन्न होती है।
– छठा तथा दसवां घर विवाह में रूकावटे उत्पन्न करता है।
– सुखी वैवाहिक जीवन के लिए 12 वां तथा 11 वां भाव शुभ होना जरुरी होता है अन्यथा शादी में रूकावटे आती हैं।
– शुक्र, बुध, गुरु और चन्द्र ये शुभ ग्रह हैं, इनमे से कोई एक भी यदि सातवें घर में बैठा हो तो शादी में आने वाली रुकावटें समाप्त हो जाती हैं।
– यदि शुक्र, गुरु या चन्द्र आपकी कुंडली के सातवें घर में हैं तो 24-25 की उम्र में शादी होने की सम्भावना रहती है, अन्यथा शादी में विलम्ब होता है।
– गुरु सातवें घर में हो तो शादी 25 की उम्र तक हो जाती है। गुरु पर सूर्य या मंगल का प्रभाव हो तो एक साल या डेढ़ साल का विलम्ब हो सकता है और यदि राहू या शनि का प्रभाव हो तो 2 से 3 साल तक का विलम्ब होता है।
– चन्द्र सातवें घर में हो और उस पर मंगल, सूर्य में से किसी एक का प्रभाव हो तो शादी 26 -27 साल की उम्र में होने के योग बनते हैं
– शुक्र सप्तम हो और उस पर मंगल, सूर्य का प्रभाव हो तो शादी में दो तीन साल का विलम्ब होता है, इसी तरह शुक्र पर शनि का प्रभाव होने पर एक साल और राहू का प्रभाव होने पर शादी में दो साल का विलम्ब होता है।
वैदिक ज्योतिष में विवाह के लिए जन्म कुंडली में सातवां भाव मुख्य माना गया है और इस भाव पर ग्रहों के प्रभाव स्वरूप अनेक स्थितियां उत्पन्न होती हैं जिनके चलते शादी में देरी या बार-बार बनते रिश्तों का टूटना सहना पड़ता है।
सही आयु में और सही समय पर सही व्यक्ति के साथ विवाह हो जाना अपने आप मे एक सौभाग्य की बात है। यदि विवाह समय पर न हो रहा हो तो पहले उसके कारण को समझें।
वैदिक ज्योतिष में विवाह के लिए जन्म कुंडली में सातवां भाव मुख्य माना गया है और इस भाव पर ग्रहों के प्रभाव स्वरूप अनेक स्थितियां उत्पन्न होती हैं जिनके चलते शादी में देरी या बार-बार बनते रिश्तों का टूटना सहना पड़ता है।
सातवां घर बताता है कि आपकी शादी किस उम्र में होगी। कई बार शादी नहीं होती और कई बार शादी के बाद सम्बन्ध खराब होकर अलगाव उत्पन्न हो जाता है, यह सब ग्रहों की अशुभ दृष्टि तथा ग्रहों के निर्बलता के कारण होता है। कुल मिलाकर जब एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव सातवें घर पर हो तो विवाह में विलम्ब होता है।
अशुभ ग्रहों के कारण विवाह में बाधा
जब कुंडली में सप्तम भाव की दशा या फिर अन्तर्दशा, सातवें भाव में स्थित ग्रहों की दशा या अन्तर्दशा या सातवें भाव को देखने वाले ग्रहों की दशा तथा अन्तर्दशा हो, या फिर छठे भाव से सम्बंधित दशा या अन्तर्दशा चल रही हो तो विवाह में निश्चित रूप से विलम्ब होता है या फिर रुकावटें उत्पन्न होती है।
ये भी हो बनते हैं कारण
– छठा तथा दसवां घर विवाह में रूकावटे उत्पन्न करता है।
– सुखी वैवाहिक जीवन के लिए 12 वां तथा 11 वां भाव शुभ होना जरुरी होता है अन्यथा शादी में रूकावटे आती हैं।
– शुक्र, बुध, गुरु और चन्द्र ये शुभ ग्रह हैं, इनमे से कोई एक भी यदि सातवें घर में बैठा हो तो शादी में आने वाली रुकावटें समाप्त हो जाती हैं।
– यदि शुक्र, गुरु या चन्द्र आपकी कुंडली के सातवें घर में हैं तो 24-25 की उम्र में शादी होने की सम्भावना रहती है, अन्यथा शादी में विलम्ब होता है।
– गुरु सातवें घर में हो तो शादी 25 की उम्र तक हो जाती है। गुरु पर सूर्य या मंगल का प्रभाव हो तो एक साल या डेढ़ साल का विलम्ब हो सकता है और यदि राहू या शनि का प्रभाव हो तो 2 से 3 साल तक का विलम्ब होता है।
– चन्द्र सातवें घर में हो और उस पर मंगल, सूर्य में से किसी एक का प्रभाव हो तो शादी 26 -27 साल की उम्र में होने के योग बनते हैं।
– शुक्र सप्तम हो और उस पर मंगल, सूर्य का प्रभाव हो तो शादी में दो तीन साल का विलम्ब होता है, इसी तरह शुक्र पर शनि का प्रभाव होने पर एक साल और राहू का प्रभाव होने पर शादी में दो साल का विलम्ब होता है।
– अगर केतु सातवें घर में हो तो शादी में अड़चने पैदा होती हैं।
– शनि मंगल, शनि राहू, मंगल राहू, या शनि सूर्य या सूर्य मंगल, सूर्य राहू, एकसाथ सातवें घर या आठवें घर में हो तो विवाह में विलम्ब की सम्भावना बनी रहती है।
– शनि सातवें घर में हो तब भी विवाह में विलंब होता है।
– मांगलिक होना भी विवाह में विलम्ब का कारण होता है। आमतौर पर देखा गया है जो लोग मांगलिक होते है उनका विवाह आयु के 27, 29, 31, 33 तथा 37वें वर्ष में होता है।
गुरू को विवाह का प्रमुख कारक माना गया है कुण्डली में इनकी शुभता द्वारा आपको दांपत्य जीवन का सुख प्राप्त होता है अत: गुरू से संबंधित उपाय बेहद शुभ माने जाते हैं,
गुरू की शुभता हेतु आपको चाहिए की गुरूवार के दिन व्रत करें, पीला वस्त्र धारण करें तथा मंदिर में हल्दी का दान करें।
जिन जातकों के विवाह में विलम्ब हो रहा है या जिनकी शादी में रुकावटें आ रही हो उनको पारद शिवलिंग की पूजा जरुर करनी चाहिए। शिवलिंग भगवान शिव और मां पार्वती का अवतार यानि एकल रूप है।
शिवलिंग के इस स्वरूप को अत्यंत शुभ माना जाता है। पारद शिवलिंग की पूजा करने से व्यक्ति के विवाह में आने वाली बाधाएं शीघ्र ही समाप्त हो जाती हैं।
विवाह में यदि देरी हो रही हो तो ‘गौरी शंकर की पूजा’ नियमित रूप से करनी चाहिए साथ ही मां गौरी को श्रंगार की वस्तुएं भेंट करें।
मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए और हनुमान जी को सिन्दूर व चोला चढ़ाएं।
21 दिन तक संकल्प लेकर ‘दुर्गासप्तशती’ के ‘अर्गलास्तोत्रम्’ का पाठ करें व साथ ही कन्याएं मां कात्यायनी देवी की पूजा करें।
ज्योतिष शास्त्र में मंगल, शनि, सूर्य, राहू और केतु को विवाह में विलंब का कारक बताया गया है. कुंडली के सप्तम भाव में अशुभ व क्रूर ग्रह स्थित हो, तो सप्तम स्थान के कमजोर होने के कारण विवाह में बाधा आती है.
कुंडली के सप्तम भाव के स्वामी यानी सप्तमेश व उसके कारक ग्रह बृहस्पति और शुक्र के कमजोर होने से विवाह में बाधा आती है. जब चंद्र या शुक्र के साथ में सातवें भाव में मंगल और शनि विराजमान होता है, तो भी शादी में विलंब होता है. मांगलिक दोष के कारण भी शादी में भी देरी होती है.